पाकिस्तान में शहबाज शरीफ के नए कानून पर क्यों गहराया विवाद, विद्रोह रोकने का नया हथकंडा; इमरान खान से कनेक्शन
- महीनों से पाकिस्तान की आदियाला जेल में बंद इमरान को छुड़ाने के लिए हजारों पीटीआई समर्थक आज इस्लामाबाद में विशाल जुलूस निकालेंगे। पीटीआई आंदोलन पर नकेल कसने के लिए पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने दो दिन पहले संसद में विशेष कानून पास करवा लिया, जो अब विवाद पैदा कर रहा है।
पाकिस्तान में एक बार फिर इमरान खान और शहबाज शरीफ की लड़ाई तेज हो गई है। महीनों से पाकिस्तान की आदियाला जेल में बंद इमरान को छुड़ाने के लिए हजारों पीटीआई समर्थक आज इस्लामाबाद में विशाल जुलूस निकालेंगे। पीटीआई आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने दो दिन पहले संसद में विशेष कानून पास करवा लिया। इसके तहत किसी भी सार्वजनिक रैली से 7 दिन पहले परमिशन लेनी जरूरी होगी और उसकी मंजूरी मिलने पर भी यह नियमों के तहत किया जा सकता है। इस नए कानून में पकड़े जाने पर कठोर सजा का प्रावधान है। पीटीआई ने इस कानून को उन्हें रोकने का हथकंडा बताया। पाकिस्तान में 'सार्वजनिक व्यवस्था कानून' इसलिए भी विवाद पैदा कर रहा है क्योंकि संसद में इस बिल को जल्दबाजी में पास किया गया और कुछ ही घंटे में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भी मंजूरी दे दी।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस्लामाबाद में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों को कुचलने के लिए संसद के दोनों सदनों में पारित एक विवादास्पद विधेयक को मंजूरी दे दी। इस विधेयक को महज सप्ताह भर में संसद से पास करवाकर राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई। इस कानून के आनन-फानन में पास होने के बाद शहबाज शरीफ की सरकार और राष्ट्रपति जरदारी पर जल्दीबाजी के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि बिना सभी की सहमति और चर्चा के इस कठोर विधेयक को पास करवा दिया गया।
क्यों विवाद बन रहा शरीफ सरकार का सार्वजनिक व्यवस्था कानून
इस्लामाबाद में सार्वजनिक समारोहों को प्रतिबंधित करने के लिए शहबाज शरीफ सरकार ने स्पेशल और कठोर कानून पास करवा लिया है। डॉन के मुताबिक, 'शांतिपूर्ण सभा और सार्वजनिक व्यवस्था विधेयक 2024' को 2 सितंबर को ऊपरी सदन में पेश किया गया था, जिसे 3 सितंबर को संबंधित स्थायी समिति द्वारा अनुमोदित किया गया और 5 सितंबर को सीनेट द्वारा पारित किया गया। विपक्ष के विरोध के बावजूद 6 सितंबर को विधेयक को नेशनल असेंबली में पारित कर दिया गया और कुछ ही घंटों में राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी।
नया कानून क्या कहता है
पाकिस्तान के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के पास संसद द्वारा पारित विधेयक पर हस्ताक्षर करने या उसे पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेजने के लिए 10 दिन का समय होता है लेकिन, इसके उलट राष्ट्रपति जरदारी ने इस कुछ ही घंटे में मंजूरी दे दी। इस कानून में कहा गया है, "यदि किसी व्यक्ति को पाकिस्तान की किसी अदालत द्वारा इस अधिनियम के तहत तीन वर्ष या उससे अधिक अवधि का कारावास सुनाया जाता है, तो उसे प्रत्येक बाद के अपराध के लिए दस वर्ष तक के कारावास की सजा दी जा सकती है।"
इस नए कानून के अनुसार किसी सभा या प्रदर्शन की मंजूरी के लिए उसकी निर्धारित तिथि से कम से कम सात दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को लिखित में आवेदन करना होगा। कानून में प्रावधान है कि "आवेदन प्राप्त होने पर अनुमति देने से पहले जिला मजिस्ट्रेट मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति की जांच करेगा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से सुरक्षा मंजूरी रिपोर्ट प्राप्त करेगा।" नए कानून में परमिशन मिलेगी, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है।
फिर आमने-सामने शरीफ और इमरान की पार्टी
इस कानून को लाकर शरीफ सरकार ने संदेश दिया है कि वह राजधानी इस्लामाबाद को 'रेड जोन' या 'हाई सिक्योरिटी जोन' बना सकती है। इस कानून से इस इलाके में सभी तरह की सभाओं पर रोक लगाई जा सकती है। इस कानून के तहत किसी भी राजनीतिक या सार्वजनिक सभा, रैली या धरने में 15 से अधिक लोग नहीं जुट सकते। पीटीआई ने इस मामले में शरीफ सरकार पर 'कानून लाकर पीटीआई के शक्ति प्रदर्शन को विफल करने का आरोप' लगाया है।
संसद के दोनों सदनों में विपक्षी सांसदों ने इस कानून खारिज कर दिया था, बावजूद इसके सरकार ने इस पास करवा दिया। विपक्ष का आरोप है कि इसे इस्लामाबाद में 8 सितम्बर को होने वाले पीटीआई के शक्ति प्रदर्शन को रोकने के लिए दुर्भावनापूर्ण रूप से बनाया गया है। सीनेट में विपक्ष के नेता सीनेटर शिबली फ़राज़ ने डॉन से कहा कि संसद के दोनों सदनों से विधेयक को पारित करने में जल्दबाजी बरती गई। इसके अलावा राष्ट्रपति द्वारा दी गई मंजूरी से यह साबित होता है कि यह कानून पीटीआई विशेष के लिए है।
उन्होंने कहा कि पीटीआई का जनादेश चुराकर सत्ता में आई शरीफ सरकार अपने राजनीतिक और निजी हितों की रक्षा के लिए संसद के दोनों सदनों का लगातार इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने कहा कि यह कानून शांतिपूर्ण सभाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और दर्शाता है कि सरकार विपक्षी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से डरी हुई है।
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