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मुस्लिम देशों के संगठन ने पाकिस्तान में बुलाई समिट, तालिबान ने दिखाया ठेंगा; वजह भी जान लीजिए

  • पाकिस्तान ने दशकों तक तालिबान का समर्थन किया है। साथ ही ने 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद उम्मीद की थी कि वे टीटीपी पर कार्रवाई करेंगे। लेकिन तालिबान ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, इस्लामाबादSat, 11 Jan 2025 09:49 PM
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मुस्लिम देशों के सबसे बड़े संगठन द्वारा पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में बुलाई गई एक समिट में तालिबान ने शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल मुस्लिम-बहुल देशों में लड़कियों की शिक्षा पर चर्चा करने के लिए इस्लामाबाद में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में तालिबान नेतृत्व वाली अफगान सरकार ने भाग नहीं लिया। इस सम्मेलन का आयोजन इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने किया था, जिसका उद्देश्य तालिबान पर लड़कियों की शिक्षा पर लगे प्रतिबंध को हटाने का दबाव बनाना था।

इस समिट का शीर्षक था “मुस्लिम समुदायों में लड़कियों की शिक्षा: चुनौतियां और अवसर”। पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री खालिद मकबूल सिद्दीकी ने पुष्टि की कि तालिबान सरकार को निमंत्रण भेजा गया था, लेकिन कोई प्रतिनिधि सम्मेलन में उपस्थित नहीं हुआ।

पाक-अफगान तनाव के बीच तालिबान का रवैया

यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ा हुआ है। दिसंबर 2024 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा किए गए एक हमले में 16 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के बाद पाकिस्तान ने तालिबान पर आरोप लगाया है कि वह टीटीपी को अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की अनुमति दे रहा है।

पाकिस्तान ने दशकों तक तालिबान का समर्थन किया है। साथ ही ने 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद उम्मीद की थी कि वे टीटीपी पर कार्रवाई करेंगे। लेकिन तालिबान ने टीटीपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।

सम्मेलन में मलाला यूसुफजई का संबोधन

सम्मेलन में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और लड़कियों की शिक्षा की ब्रांड एंबेसडर मलाला यूसुफजई ने भाग लिया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के अधिकारों को सुरक्षित करने और अफगान महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ तालिबान के अपराधों के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराने पर जोर दिया।

मलाला को 2012 में टीटीपी द्वारा महिला शिक्षा का समर्थन करने के कारण गोली मारी गई थी। उन्होंने कहा, “मैं मुस्लिम नेताओं के साथ इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में शामिल होकर उत्साहित हूं। मैं रविवार को लड़कियों के स्कूल जाने के अधिकारों की रक्षा के बारे में बात करूंगी और तालिबान को उनके अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता पर जोर दूंगी।”

तालिबान के तहत शिक्षा में गिरावट: यूनेस्को की रिपोर्ट

यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान के शासन के बाद अफगानिस्तान में शिक्षा में पिछले दो दशकों की प्रगति पूरी तरह से समाप्त हो गई है। अफगानिस्तान को दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बताया गया है जहां लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से पूरी तरह वंचित किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के सत्ता में आने के बाद से 14 लाख लड़कियों को स्कूल जाने से रोका गया है। 25 लाख लड़कियों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया है, जो अफगान स्कूल-आयु वर्ग की 80% लड़कियों का प्रतिनिधित्व करता है। दिसंबर 2022 में तालिबान ने उच्च शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जिससे 1 लाख से अधिक युवतियों को विश्वविद्यालयों से बाहर कर दिया गया।

ओआईसी और अंतरराष्ट्रीय दबाव की आवश्यकता

1969 में स्थापित ओआईसी के 57 सदस्य हैं, जिनमें से 56 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी हैं। मुस्लिम-बहुल देशों के इस संगठन ने सम्मेलन के माध्यम से तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश की, ताकि अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा का अधिकार बहाल किया जा सके।

पाकिस्तान में 2.2 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हैं: प्रधानमंत्री शहबाज

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने शनिवार को कहा कि पाकिस्तान में 2.2 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। उन्होंने मुस्लिम देशों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। इस्लामाबाद में दो दिवसीय समिट का उद्घाटन करते हुए, प्रधानमंत्री शहबाज ने कहा कि मुस्लिम दुनिया लड़कियों के लिए शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है।

शहबाज ने कहा कि अगले दशक में लाखों युवा लड़कियां नौकरी के बाजार में प्रवेश करेंगी, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनमें “न केवल खुद को, अपने परिवार और राष्ट्र को गरीबी से बाहर निकालने की क्षमता है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने की भी क्षमता है।” उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में, महिलाएं कुल आबादी का आधे से अधिक हिस्सा बनाती हैं, फिर भी महिला साक्षरता दर केवल 49 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि चिंताजनक रूप से, पांच से 16 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 2.28 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

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