मुजीब को भुलाया, जिन्ना को अपनाया! यूनुस राज में पूर्वी पाकिस्तान बनने के कगार पर बांग्लादेश?
- कभी शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में उभरा यह राष्ट्र अब जिन्ना के नाम की माला जप रहा है। हालात ऐसे हैं कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश फिर से पूर्वी पाकिस्तान बनने की राह पर है।
बांग्लादेश जो अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक पहचान के लिए लड़ा था, आज खुद अपनी जड़ों को काटने पर आमादा दिख रहा है। कभी शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में उभरा यह राष्ट्र अब जिन्ना के नाम की माला जप रहा है। हालात ऐसे हैं कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश फिर से पूर्वी पाकिस्तान बनने की राह पर है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के मौके पर न केवल श्रद्धांजलि कार्यक्रम फीके रहे, बल्कि कई जगहों पर तो शहरों के बीच बसे ऐतिहासिक थरोहरों को ही तोड़ दिया गया। सवाल यह है कि क्या यह वही बांग्लादेश है, जो भाषा के लिए लड़ा और हजारों जानें कुर्बान कर दीं?
शहीदों को भुलाने का खेल
1952 में जब पाकिस्तान ने जबरन उर्दू थोपने की कोशिश की, तो बांग्लादेश ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह की चिंगारी ने 1971 के मुक्ति संग्राम को जन्म दिया और पाकिस्तान को हार माननी पड़ी। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। एक ओर उर्दू भाषा को बांग्लादेश में फिर से जगह दी जा रही है, वहीं जिन्ना की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं।
पिछले साल पहली बार बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जिन्ना की बरसी पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए गए, जहां उर्दू कविताएं पढ़ी गईं, गजलें गाई गईं और उनकी प्रशंसा में भाषण दिए गए। इस बार मामला और आगे बढ़ गया। सरकारी स्कूलों में उर्दू पढ़ाने की सिफारिशें हो रही हैं, और यहां तक कि पाठ्यक्रम से शेख मुजीबुर रहमान से जुड़ी सामग्री को हटाया जा रहा है।
बांग्लादेश में इस बार मातृभाषा दिवस अलग ही रंग में दिखा। हर साल रात 12 बजे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री का पद खाली होने के चलते यह परंपरा भी टूट गई। राष्ट्रपति मोहम्मद साहबुद्दीन शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे, लेकिन अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस उनके साथ नहीं आए। वे अलग से श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
यही नहीं, कट्टरपंथी समूहों को भी इस बार मातृभाषा दिवस के आयोजन में व्यवधान डालने का खुला मौका मिला। कुमिल्ला में एक ऐतिहासिक शहीद मीनार को कट्टरपंथियों ने तोड़ दिया, जबकि कई अन्य जगहों पर लोगों को पुष्पांजलि अर्पित करने से रोका गया।
मातृभाषा दिवस पर भारत और बांग्लादेश के बीच हमेशा सौहार्द देखने को मिलता था। हिली बॉर्डर पर दोनों देशों के लोग मिलकर इस दिवस को मनाते थे, लेकिन इस बार यह आयोजन नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि यह भारत की ओर से एक तरह का सांकेतिक विरोध था। भारत की नाराजगी साफ दिखी जब कोलकाता में बांग्लादेश के वाणिज्य दूतावास में भी कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ। यह सब संकेत हैं कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में दरार गहरी होती जा रही है।
क्या बांग्लादेश फिर बन रहा पूर्वी पाकिस्तान?
बांग्लादेश जिस तेजी से अपने इतिहास को मिटा रहा है, वह चिंता का विषय है। जिन्ना की याद में कार्यक्रम, उर्दू भाषा का बढ़ता प्रभाव, शेख मुजीब को भुलाने की कोशिशें यह सब संकेत दे रहे हैं कि बांग्लादेश अपनी पहचान खोकर फिर उसी पाकिस्तान की गोद में जाने को तैयार हो रहा है, जिससे उसने आजादी पाने के लिए खून बहाया था।
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