हिमाचल की तीन लोकसभा सीटों पर BJP के लिए खतरे की घंटी, कितना बड़ा है नुकसान
हिमाचल प्रदेश में 25 सीटें जीतने वाली भाजपा को शिमला, हमीरपुर और कांगड़ा संसदीय क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में करारा झटका लगा है। जानें कितना बड़ा है यह नुकसान...
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता छिन गई है। मोदी मैजिक, डबल इंजन सरकार के काम और स्टार प्रचारकों की रैलियों के बावजूद भाजपा 25 सीटों पर ही सिमट गई। कई दशकों बाद ऐसा हुआ है कि भाजपा अपने गढ़ हमीरपुर में खाता भी नहीं खोल सकी है। यह पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का गृह जिला है। इस चुनाव में लोकसभा के तीन सांसदों अनुराग ठाकुर, सुरेश कश्यप और किशन कपूर का ग्राफ काफी गिर गया है। सुरेश कश्यप प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी हैं। उनके शिमला संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है।
शिमला संसदीय क्षेत्र में भाजपा 17 में से 03 सीटें ही जीत पाई है। अनुराग ठाकुर के हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में भाजपा को 05 सीटों पर जीत मिली है। जबकि पिछले विस चुनाव में भाजपा ने यहां से 10 सीटें जीतीं थीं। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भी भाजपा 05 सीटें ही हासिल कर पाई है। इन तीनों संसदीय क्षेत्रों में भाजपा को जबरदस्त नुकसान हुआ है। हमीरपुर, शिमला और कांगड़ा संसदीय क्षेत्रों की 51 सीटों में से 38 सीटों पर भाजपा की हार हुई है। ऐसे में इन सीटों पर भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में खतरे की घंटी है। पार्टी को राहत एकमात्र मंडी संसदीय क्षेत्र में मिली है, जहां भाजपा को 17 में से 13 सीटें मिली हैं।
इस चुनाव में कई सीटों पर बड़े उलटफेर हुए हैं। भाजपा सरकार के सात मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं। हारने वाले भाजपा मंत्रियों में कुसुंपटी से सुरेश भारद्वाज, फतेहपुर से राकेश पठानिया, कुटलैहड़ से वीरेंद्र कंवर, शाहपुर से सरवीण चौधरी, कसौली से राजीव सैहजल, घुमारवीं से राजेंद्र गर्ग और लाहौल-स्पीति सीट से रामलाल मार्कंडेय शामिल हैं। वहीं कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बड़े चेहरे आशा कुमारी और कौल सिंह ठाकुर चुनाव हार गए हैं।
पिछले 35 वर्षों से कुटलैहड़ विधानसभा में भाजपा का परचम लहराता रहा है। यहां से मंत्री वीरेंद्र कंवर की सीट सबसे सेफ मानी जा रही थी। मगर जैसे-जैसे चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ी, कंवर की राह मुश्किल होती चली गई और उन्हें चुनाव परिणाम में कांग्रेस के देवेंद्र भुट्टो से हार का सामना करना पड़ा। कांगड़ा से एकमात्र महिला मंत्री सरवीण चौधरी शाहपुर से कांग्रेस प्रत्याशी केवल पठानिया से पराजित हो गईं। वहीं, घुमारवीं से खाद्य आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग को भी हार का सामना करना पड़ा। उन्हें कांग्रेस के राजेश धर्माणी ने परास्त किया। एक अन्य मंत्री सुरेश भारद्वाज को इन चुनावों में हार मिली। हालांकि उनका विधानसभा क्षेत्र बदला गया, जिसके चलते उनका हारना लगभग तय था।
जनजातीय क्षेत्र लाहौल-स्पीति से कैबिनेट मंत्री रहे रामलाल मार्कंडेय कांग्रेस के रवि ठाकुर से चुनाव हार गए। स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल भी इस बार लगभग 7 हजार मतों से चुनाव हारे। वन मंत्री रहे दबंग नेता राकेश पठानिया को फतेहपुर से हार का मुंह देखना पड़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण उनका निर्वाचन क्षेत्र बदल कर नूरपुर से फतेहपुर करने का भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ा है। इसी तरह भाजपा के पूर्व मंत्रियों रमेश धवाला और रविंद्र सिंह रवि को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इन दोनों नेताओं के हल्के भी बदल दिए गए थे।
नाहन से विधायक रहे व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को भी पहली बार हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें कांग्रेस के अजय सोलंकी से मात मिली है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 1990 से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन के रिवाज को कायम रखते हुए मतदाताओं ने भाजपा के हाथ से सत्ता की चाबी खींचकर कांग्रेस को सौंप दी है। कांग्रेस ने कुल 68 सीटों की विधानसभा में 40 सीटें जीत कर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। राज्य में सरकार बनाने के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 35 है। भाजपा इस चुनाव में 25 पर सिमट गई है। भाजपा की हार को सत्ता विरोधी लहर माना जा रहा है। मोदी मैजिक और डबल इंजन सरकार के काम के बावजूद भाजपा मिशन रिपीट नहीं कर पाई।
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