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कांग्रेस की सुक्खू सरकार को बड़ा झटका, छह मुख्य संसदीय सचिवों पर गिरी गाज; CPS कानून निरस्त- हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव अधिनियम 2006 को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही वर्तमान छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां भी रद्द हो गई हैं और इन्हें हटाने के आदेश दे दिए गए हैं।

Ratan Gupta लाइव हिन्दुस्तान, शिमलाWed, 13 Nov 2024 05:31 PM
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हिमाचल प्रदेश में छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव अधिनियम 2006 को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही वर्तमान छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां भी रद्द हो गई हैं और इन्हें हटाने के आदेश दे दिए गए हैं। अब ये लोग बतौर मुख्य संसदीय सचिव काम नहीं कर पाएंगे, क्योंकि हाईकोर्ट ने मुख्य संसदीय सचिव की तैनाती को अवैध ठहराया है। साथ ही मुख्य सचिव को आदेश दिए हैं कि मुख्य संसदीय सचिव के तौर पर इन्हें दी जा रही सभी सुविधाएं तत्काल प्रभाव से वापिस ले ली जाएं। इस पूरे मामले के आने के बाद हिमाचल सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

कांग्रेस की सुक्खू सरकार को बड़ा झटका

जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर व जस्टिस बीसी नेगी की खंडपीठ ने बुधवार को तीन अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए ये आदेश सुनाए। इस फैसले के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस की सुक्खू सरकार को बड़ा झटका लगा है। सुक्खू सरकार ने पिछले साल छह विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था। मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था की ओर से वर्ष 2016 में याचिका दायर की गई थी। अदालत में दूसरी याचिका कल्पना और तीसरी भाजपा नेता पूर्व सीपीएस सतपाल सत्ती सहित अन्य 11 भाजपा के विधायकों की ओर से दायर की गई थी।

भाजपा ने दी थी इन नियुक्तियों को चुनौती

भाजपा नेता सतपाल सत्ती सहित 12 भाजपा विधायकों की ओर से दायर याचिका में अर्की विधानसभा क्षेत्र से सीपीएस संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की मुख्य संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। प्रार्थियों की ओर से सीपीएस नियुक्ति से जुड़े कानून को चुनौती देते हुए इस कानून को बनाने की सरकार की योग्यता पर प्रश्न चिह्न उठाया गया था।

याचिका में प्रार्थियों ने उठाई थी ये मांगे

प्रार्थियों की ओर से कहा गया कि प्रदेश में सीपीएस की नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत हैं। इसलिए इनके द्वारा किया गया कार्य भी अवैध है। इतना ही नहीं इनके द्वारा गैरकानूनी तरीके से लिया गया वेतन भी वापिस लिया जाना चाहिए। प्रार्थियों की ओर से सीपीएस की नियुक्तियों पर रोक लगाने की गुहार लगाते हुए कहा गया कि इन्हें एक पल के लिए भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।

भाजपा ने कोर्ट के फैसले का किया स्वागत

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि हम हिमाचल प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं। न्यायालय के महत्वपूर्ण फैंसले ने साबित कर दिया कि हिमाचल प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार किस प्रकार गैर कानूनी तरीके से मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति करते हुए दो साल व्यतीत कर दिए। उन्होंने कहा कि लगातार हिमाचल प्रदेश के पैसे का दुरूपयोग हुआ, शक्तियों का दुरूपयोग हुआ, 6 मुख्य संसदीय सचिव बनाकर उनको मंत्रियो के बराबर शक्तियां देना गैर कानूनी रहा। ये संविधान के खिलाफ रहा।

इन्होंने रखी विधायकी रद्द करने की मांग

नेता प्रतिपक्ष व पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी पहले दिन से ही सीपीएस बनाने के फैसले के खिलाफ थी क्योंकि यह असंवैधानिक था और यह संविधान के विरुद्ध निर्णय था। उन्होंने कहा कि जब 2017 में हम सरकार में थे तो हमारे समय भी यह प्रश्न आया था। तब हमने इसे पूर्णतया असंवैधानिक बताते हुए सीपीएस की नियुक्ति नहीं की थी। आज हाईकोर्ट द्वारा फिर से सरकार के तानाशाही पूर्ण और असंवैधानिक फैसले को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि हम मांग करते हैं कि इस पद का लाभ लेने वाले सभी विधायकों की सदस्यता भी समाप्त हो।

एडवोकेट जनरल बोले सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे पक्ष

हिमाचल हाईकोर्ट में एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी और सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। हाई कोर्ट ने सीपीएस एक्ट 2006 को खत्म कर सीपीएस को हटाने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने आसाम केस का हवाला देते हुए अपना निर्णय सुनाया है जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी क्योंकि हिमाचल प्रदेश में सीपीएस एक्ट असम एक्ट से अलग था। असम एक्ट में मंत्री के समान शक्तियां और सुविधाएं सीपीएस को मिल रही थीं, लेकिन हिमाचल में सीपीएस को इस तरह की शक्तियां नहीं थी ऐसे में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

रिपोर्ट : यूके शर्मा

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