अपनी जिम्मेदारी पर आएं, राजकोट गेम जोन आने वाले हर शख्स से भरवाया जाता था खास फॉर्म
हर शख्स से एक फॉर्म साइन कराया जाता था जिसमें लिखा हुआ था कि यहां आने वालय लोगों को किसी भी तरह का नुकसान हुआ तो वो गेम जोन को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।
गुजरात के राजकोट में गेम जोन में लगी भीषण आग 28 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। जिसमें 12 साल से कम उम्र के चार बच्चे भी शामिल थे। यह सभी गर्मियों की छुट्टी का मजा उठाने यहां पहुंचे थे। इस बीच जिस टीआरपी गेम जोन में यह हादसा हुआ, उसे लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि इस गेमजोन में आने वाले हर शख्स से एक फॉर्म साइन कराया जाता था जिसमें लिखा हुआ था कि यहां आने वालय लोगों को किसी भी तरह का नुकसान हुआ तो वो गेम जोन को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। गेमिंग जोन में एंट्री लेने के लिए इस फॉर्म पर साइन करना जरूरी था।
इस फॉर्म में साफ लिखा था कि अगर गेम खेलते वक्त कोई घायल होता है या अन्य किसी भी तरह का नुकसान होता है जो लोग गेम जोन को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। वह खुद अपनी जिम्मेदारी पर इस गेम जोन में एंट्री ले रहे हैं। इस फॉर्म को साइन कराने का सिर्फ एक ही मकसद था, कोई भी हादसा होने पर, इसकी आंच गेम जोन के संचालकों पर ना आ सके। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने आज सुबह यहां दुर्घटना स्थल का दौरा किया और मामले में जांच के आदेश भी दिए
पटेल ने एक्स पर पोस्ट में लिखा है कि इस घटना में नगर निगम और प्रशासन को तत्काल बचाव और राहत कार्य के निर्देश दिए गए हैं और घायलों के तत्काल इलाज की व्यवस्था को प्राथमिकता देने के भी निर्देश दिए गए है। राज्य सरकार मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये सहायता राशि देगी। कहा है कि यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि ऐसी घटना दोबारा न हो। इस घटना में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस संबंध में एक एसआईटी का गठन कर पूरे मामले की जांच का जिम्मा सौंपा गया है।
उधर गुजरात हाई कोर्ट की एक विशेष पीठ ने रविवार को राजकोट के एक गेम जोन में आग लगने की घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे प्रथम दृष्टया "मानव निर्मित आपदा" बताया है। जस्टिस बीरेन वैष्णव और न्यायमूर्ति देवन देसाई की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे गेमिंग जोन और मनोरंजक सुविधाएं सक्षम अधिकारियों से आवश्यक मंजूरी के बिना बनाए गए हैं। पीठ ने अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत और राजकोट नगर निगमों के अधिवक्ताओं को निर्देश दिया कि वे सोमवार को उसके समक्ष इस निर्देश के साथ उपस्थित हों कि कानून के किन प्रावधानों के तहत अधिकारियों ने इन इकाइयों को अपने अधिकार क्षेत्र में स्थापित किया या संचालित करना जारी रखा।
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