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सिर्फ बयानों के आधार पर केस दर्ज कर नहीं ले सकते हिरासत में, हाई कोर्ट ने कहा- मानव की स्वतंत्रता सर्वोच्च

गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल एफआईआर दर्ज कर लेने से उसे सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा नहीं बताया जा सकता है। कोर्ट ने पुलिस के निवारक निरोध आदेश को किया रद्द।

Admin लाइव हिन्दुस्तान, अहमदाबादTue, 18 June 2024 01:27 AM
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सिर्फ बयानों के आधार पर केस दर्ज कर नहीं ले सकते हिरासत में, हाई कोर्ट ने कहा- मानव की स्वतंत्रता सर्वोच्च

गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल एफआईआर दर्ज कर लेने से उसे सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा नहीं बताया जा सकता है। दरअसल, पुलिस ने एक व्यक्ति को खिलाफ निवारक निरोध अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर उसे हिरासत में ले रखा था। 

गुजरात हाई कोर्ट में एक आदमी ने पुलिस द्वार एफआईआर दर्ज कर उसे हिरासत में रखने को चुनौती दी थी। उसने अपनी याचिका में कहा था कि पुलिस ने सिर्फ सामान्य बयानों के आधार पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे हिरासत में लिया है। हाई कोर्ट के जस्टिस इलेश जे वोरा और जस्टिस विमल के व्यास की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि केवल एफआईआर दर्ज कर लेने से सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन का कोई संबंध नहीं है।

खंडपीठ ने कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सुबूत और सामग्री होना चाहिए कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति समाज के लिए एक खतरा बन गया है। उससे समाज की पूरी गति बाधित हो रही है। ऐसे व्यक्ति के बाहर रहने से सार्वजनिक व्यवस्था बिगड़ जाएगी या उससे सामाजिक तंत्र खतरे में पड़ जाएगा। खंडपीठ ने कहा कि हिरासत में लेने वाले अधिकारी द्वारा सिर्फ व्यक्तिपरक संतुष्टि को कानूनी, वैध और कानून के अनुसार नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि एफआईआर में आरोपित अपराधों का सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई असर नहीं हो सकता है, जैसा कि अधिनियम के तहत प्रावधान है। 

वर्डिक्टम में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने टिप्पणी की कि यह नहीं कहा जा सकता कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जो निवारक निरोध अधिनियम की धारा 2(सी) के अर्थ में आता है। सामान्य बयानों को छोड़कर, रिकॉर्ड पर कोई अन्य सामग्री नहीं है जो दर्शाती है कि याचिकाकर्ता-बंदी ने इस तरह से काम किया है या करने वाला है जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है।

पीठ ने दोहराया कि मानव-जाति की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। इसे तब तक सीमित या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता जब तक कि हिरासत अत्यंत आवश्यक न हो और हिरासत में लिए गए व्यक्ति की गतिविधियों से सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित न हो। कोर्ट ने कहा कि हिरासत के आदेश पारित करते समय अधिकारियों को अधिनियम की विशेषताओं का ध्यान रखना चाहिए। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर चर्चा की, जो यह सुनिश्चित करता है कि निवारक निरोध केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही लागू किया जाता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 22 को अनुच्छेद 21 के अपवाद के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, जो केवल उन स्थितियों में लागू होता है जहां स्थापित प्रक्रिया का सावधानीपूर्वक पालन किया गया हो। इन टिप्पणियों के साथ पीठ ने निवारक निरोध के आदेश को रद्द कर दी।

हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने इस आधार पर हिरासत को चुनौती दी कि यह केवल उसके खिलाफ दर्ज तीन एफआईआर पर आधारित था। ये एफआईआर आईपीसी की धारा 324, 323, 294बी, 506(2) और 114 तथा गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 135(1) के तहत दर्ज किए गए थे। हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने तर्क दिया कि एफआईआर निवारक निरोध अधिनियम के लागू होने को उचित नहीं ठहराते, क्योंकि वे ऐसी गतिविधियों से संबंधित नहीं थे जो सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करती हों।

क्या है निवारक निरोध अधिनियम

निवारक निरोध अधिनियम 1950 एक ऐसा कानूनी उपकरण है जो राज्य को किसी व्यक्ति को भविष्य में संभावित अपराध करने से रोकने के लिए हिरासत में लेने की अनुमति देता है। यह आमतौर पर तब लागू किया जाता है जब सार्वजनिक सुरक्षा के लिए कोई बड़ा खतरा हो।

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