गुजरात : RTI एक्टिविस्ट अमित जेठवा मर्डर केस में BJP के पूर्व सांसद को राहत, हाईकोर्ट ने रद्द किया CBI कोर्ट का फैसला
आरटीआई एक्टिविस्ट अमित जेठवा हत्याकांड में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा पाए भाजपा के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी को आज गुजरात हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिल गई।
आरटीआई एक्टिविस्ट अमित जेठवा हत्याकांड में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा पाए भाजपा के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी को आज गुजरात हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिल गई। सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ दीनू सोलंकी और छह अन्य की अपील सोमवार को स्वीकार कर ली। जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस विमल के. व्यास की बेंच ने सीबीआई कोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उपरोक्त सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने गौर किया कि निचली अदालत ने ‘‘दोषी ठहराने की पूर्व निर्धारित धारणा’’ के साथ कार्यवाही की और प्रतीत होता है कि अपराध को लेकर की गई जांच में शुरुआत से ही ‘‘सावधानी नहीं बरती गई तथा यह पूर्वाग्रहपूर्ण है।’’
हाईकोर्ट परिसर के बाहर 20 जुलाई 2010 को अमित जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। दीनू सोलंकी और छह अन्य को हत्या तथा आपराधिक साजिश के मामले में 2019 में सीबीआई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही 15 लाख रुपये का जुर्माना भरने का भी आदेश दिया था।
हाईकोर्ट ने बाद में दीनू सोलंकी और इस मामले में दोषी ठहराए गए उनके भतीजे की आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने मामले के मुख्य आरोपी दीनू सोलंकी और छह अन्य की अपील को सोमवार को स्वीकार कर लिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाने वाले सीबीआई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
सीबीआई कोर्ट द्वारा 7 जून 2019 को दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ दीनू सोलंकी ने याचिका दायर की थी, जिसके बाद सितंबर 2021 में हाईकोर्ट ने अपील के लंबित रहने तक सोलंकी की सजा पर रोक लगा दी थी।
पिछले साल, हाईकोर्ट ने उनके भतीजे शिवा सोलंकी की आजीवन कारावास की सजा पर भी रोक लगा दी थी और सीबीआई कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई होने तक उन्हें जमानत दे दी थी।
आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी मांगकर कथित तौर पर दीनू सोलंकी की संलिप्तता वाली अवैध खनन गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश के बाद 20 जुलाई 2010 को गुजरात हाईकोर्ट के बाहर जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद दो अज्ञात हमलावरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी गई। सीआईडी ने इस मामले में आरोपपत्र दायर किया।
सितंबर 2012 में हाईकोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई कोर्ट ने 7 जून 2019 को सातों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
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