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अवैध तरीके से लाई भारत, मुझे दीजिए बेटे की कस्टडी; HC ने क्यों खारिज की पाकिस्तानी नागरिक की याचिका

गुजरात हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक की एक याचिका खारिज कर दी है। शख्स ने याचिका में पत्नी से अपने 4 साल के बेटे की कस्टडी लेने की मांग की थी, जो उसे लेकर भारत लेकर आई है। कपल ने 2019 में पाकिस्तान के कराची में शादी की थी।

Sneha Baluni लाइव हिन्दुस्तान, अहमदाबादThu, 7 Nov 2024 02:08 PM
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गुजरात हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक की एक याचिका खारिज कर दी है। शख्स ने याचिका में पत्नी से अपने 4 साल के बेटे की कस्टडी लेने की मांग की थी, जो उसे लेकर भारत लेकर आई है। हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीयता, संस्कृति और मूल्यों को लेकर केवल दावे के अलावा, आवेदक के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि बच्चे की कस्टडी उसकी मां के पास अवैध है।

कपल ने 2019 में पाकिस्तान के कराची में शादी की थी और अगले साल उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ। 23 सितंबर को महिला बच्चे के साथ टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी। उसके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट है। पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए हाईकोर्ट में दायर याचिका में महिला के पति ने दावा किया कि वह उनके बेटे को अवैध रूप से भारत लेकर आई है और सूरत में अपने मायके में रह रही है।

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, पति ने याचिका में दावा किया कि भारत आने के बाद उसने उससे बातचीत करना बंद कर दिया। उसे बच्चे की चिंता है क्योंकि उसकी पत्नी ने ऐसे संकेत दिए हैं कि वह भविष्य में पाकिस्तान वापस नहीं लौटेगी। शख्स ने अपनी याचिका में कहा कि बच्चा एक विदेशी देश में है और उसे उसके सांस्कृतिक मूल्यों से वंचित किया जा रहा है।

बच्चे के पिता का मानना ​​है कि उसके बेटे को जबरन कैद में रखा गया है और इसलिए उसने वकील के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। हाईकोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने 15 अक्टूबर को कराची फैमिली कोर्ट में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के प्रावधानों के तहत अपने बेटे की कस्टडी के लिए याचिका दायर की है। पत्नी से 9 नवंबर तक जवाब मांगने के लिए नोटिस जारी किया गया है और जवाब न मिलने पर कोर्ट बच्चे की कस्टडी पर एकतरफा फैसला करेगा। चूंकि महिला भारत में है, इसलिए वह उसे कोर्ट का नोटिस नहीं दे सका।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस संगीता विशेन और जस्टिस संजीव ठाकर की पीठ ने कहा, 'नाबालिग अपनी मां की कस्टडी में है और इसलिए, यह मानना ​​मुश्किल है कि बच्चे का कल्याण और हित दांव पर है। अदालत ने बार-बार विद्वान वकील से अवैध कस्टडी, कल्याण और हित के दावे को प्रमाणित करने का अनुरोध किया है। हालांकि, विद्वान वकील राष्ट्रीयता, संस्कृति और मूल्यों के बारे में केवल दावे के अलावा कुछ भी नहीं बता सके। इसलिए, याचिकाकर्ता का दावा कि नाबालिग को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है, स्वीकार नहीं किया जा सकता।'

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