Heeramandi Review: रोंगटे खड़े कर देने वाले सीन पर संजीदा शेख का किरदार सोनाक्षी जैसी एक्ट्रेस पर भारी पड़ा
- हीरामंडी की तवायफें मुजरा छोड़ आजादी की जंग में लड़ती देखी जा सकती है। शानदार म्यूजिक के बीच किरदारों की ये कहानी सालों याद की जाएगी।
वेब सीरीज: हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार
कास्ट: सोनाक्षी सिन्हा, मनीषा कोइराला, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शरमिन सहगल, संजीदा शेख, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन, ताहा शाह, फरदीन खान
डायरेक्टर: संजय लीला भंसाली
‘सजा हम जिस्म को नहीं रूह को देते हैं।’ ‘सिर्फ घुंघरू पहनने से औरत तवायफ नहीं बनती, दिन और रात के सारे हुनर सीखने पड़ते है।’ ‘मोहब्बत और बगावत के बीच कोई लकीर नहीं होती, इश्क और इंकलाब के बीच कोई फर्क नहीं होता।’ ये हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार के डायलॉग्स हैं। इन डायलॉग्स से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि संजय लीला भंसाली की ड्रीम प्रोजेक्ट हीरामंडी कैसी होगी। शानदार स्टारकास्ट, कलाकारों, खूबसूरत सेट, भारी लेकिन दमदार डायलॉग से भरी हीरामंडी आज से नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है। आठ एपिसोड की ये सीरीज देखने से पहले ये रिव्यू पढ़िए।
हीरामंडी
हीरामंडी देखने से पहले इतना धैर्य जरूर रखना कि किरदारों के इंट्रोडक्शन वाला पहला एपिसोड आपको बोझिल न लगे। एक बार आप कहानी का हिस्सा बन गए तो ये सीरीज बीच में छोड़ नहीं पाएंगे। पहले हीरामंडी के आलीशान सेट, किरदारों की साफ़-सुथरी उर्दू भाषा में कहे गए डायलॉग्स, पहनावा और उस पर इतनी सारी कमाल की खूबसूरत एक्ट्रेसेज। शानदार सीरीज।
किरदार का इंट्रोडक्शन
इस वेब सीरीज की हीरामंडी बाजार की सबसे बड़ी तवायफ रिहाना बेगम से होती है जिसका किरदार सोनाक्षी सिन्हा ने निभाया है। एक ऐसा किरदार जिसे देखने के बाद बाज़ार की सारी तवायफें खौफ खाती हैं। कहानी की अगली कड़ी में यही सबसे बड़ा औदा मल्लिकाजान यानी मनीषा कोइराला संभालती हैं। कहानी में इतना बड़ा बदलाव क्यों और कैसे आता है ये स्पॉइलर का हिस्सा है जो हम आपको बताना नहीं चाहते। माँ, बहन, बेटी के किरदार में ये तवायफें एक दूसरे पर भारी पड़ती दिखती हैं। सबके किरदार में कुछ न कुछ खासियत है जो कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है। इस पर नवाबों का तड़का लगा है। नवाब जुल्फिकर के किरदार में शेखर सुमन, नवाब वली मोहम्मद के किरदार में फरदीन खान कमाल करते हैं।
कहानी
हीरामंडी की कहानी दो तवायफों के बीच की जंग है। एक ही परिवार की ये दो तवायफें अपने परिवार और बाज़ार की बाकी तवायफों के साथ अपना माहौल बनाती हैं। माँ के दिल में बेटियों के लिए कोई हमदर्दी नहीं। एक बेदर्द माँ मल्लिकाजान जो पहले बेटियों को कोठे की शान बनाना चाहती है, बहनों को घर की नौकरानी। कुछेक सीन में मल्लिकजान के इसी किरदार से नफरत हो जाएगी। लेकिन यही हीरामंडी की खासियत है नफरत भी है लेकिन वफादारी उससे ज्यादा है। इसी वफादारी की वजह से मल्लिकाजान की दी हुई जिल्लत वाली जिंदगी भी अच्छी लगती है।
खासियत
हीरामंडी की खासियत है संजय लीला भंसाली का डायरेक्शन, विजन, डायलॉग और दमदार परफॉरमेंस। हर एक सीन पर ध्यान दिया गया है। चेहरे पर जुल्फें आने के बाद एक तवायफ के एक्सप्रेशन कैसे होने चाहिए, ये बारीकी आपको संजय लीला भंसाली के काम में ही नज़र आएगी। हर एक किरदार को अलग कहानी देने की कोशिश की गई है। ऑडियंस का तय करना मुश्किल हो सकता है कि इतनी सारी एक्ट्रेसेज में से उन्हें किस का किरदार ज्यादा पसंद आया। ग्रैंड सेट, उर्दू भाषा का यही उपयोग। सिनेमाटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक, पंजाबी बोलते शाही नौकर, आलीशान घराने सब शानदार है। आखिर का सीन और म्यूजिक रोंगटे खड़े कर देता है।
परफॉरमेंस
सोनाक्षी सिन्हा इस सीरीज की अहम कड़ी है, जिनके किरदार में सस्पेंस है। इस किरदार के बारे में ज्यादा कुछ बताना स्पॉइलर होगा। मल्लिकाजान मनीषा कोइराला का किरदार एपिसोड के साथ बदलता दिखता है। शुरू के एपिसोड में उनसे हुई नफरत आगे दया, प्यार में बदल जाती है। ऋचा चड्ढा अपने छोटे रोल में छा जाती है। उन्हें ऐसे किरदारों में ज्यादा देखने की उम्मीद बढ़ गई है। शरमिन सहगल का किरदार कुछ जगह पर बोझिल लगता है। उनके जबरदस्ती के एक्सप्रेशन पसंद नहीं आते। इस सीरीज में जो एक्ट्रेस अपनी परफॉरमेंस से हैरान और खुश करती हैं वो है संजीदा शेख। एक्ट्रेस वहीदा के किरदार में नजर आती हैं जो दुश्मनी के साथ अपनी वफादारी भी पालती हैं। संजीदा अपने हर सीन और डायलॉग में कमाल करती हैं। अदिति राव हैदरी तवायफ से आज़ादी की जंग लड़ती हैं। बाकी सब नवाब ही बने नज़र आए। फरदीन खान, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन और ताहा शाह।
कमियां
हीरामंडी एक लंबी कहानी है जिसे देखने और कहानी से बंधे रहने के लिए धैर्य और अधिक समय की जरूरत है। कुछ भारी डायलॉग सीन के हिसाब से जरुरी नहीं लगेंगे। हर सीन को रॉयल बनाने की कोशिश कुछ जगह फिजूल लगती है। दो तवायफों की जंग के बीच अचानक इंकलाब जिंदाबाद और आज़ादी के नारे शुरू हो जाते हैं। दो कहानियां एक साथ चलती हैं। दुश्मनों के दिलों में अचानक पनपा प्यार हजम होने में दिक्कत होती है। हर सीन को ग्रैंड, रॉयल और उर्दू के भारी डायलॉग से सजाने की कोशिश की गई है जिसकी जरूरत नहीं थी। कुछ गैर गैर जरुरी सीन को काटा जा सकता है जिससे लगभग 1 घंटे से ज्यादा का एपिसोड थोड़ा छोटा होता।
जरुर देखिये
अगर आप संजय लीला भंसाली के काम को पसंद करते आए हैं तो इन कमियों को इग्नोर किया जा सकता है। ये सीरीज सालों याद रखी जाएगी। डायरेक्टर, एक्टर्स, लेखकों की मेहनत साफ़ देखी जा सकती है। इस सीरीज को बनाने और ऑडियंस तक पहुंचाने में इतना समय क्यों लगा ये आपको देखने के बाद समझ आ जाएगा।
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