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पहले 'आदिपुरुष' और अब 'ओपनहाइमर' का सेक्स सीन...जानिए कैसे काम करता है Censor Board?

Censor Board Certification: पहले 'आदिपुरुष' के सीन्स और डायलॉग्स के जरिए लोगों की भावनाओं को आहत किया गया। वहीं अब ओपेनहाइमर में दिखाए गए भगवद गीता और सेक्स सीन ने लोगों को भड़का दिया है।

Vartika Tolani लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 24 July 2023 10:30 AM
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आखिर भारत में सेंसर बोर्ड काम कैसे करता है? ये सवाल इस वक्त हर किसी के मन में उठ रहा है। दरअसल, पहले सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म 'आदिपुरुष' पर बवाल हुआ। लोगों ने फिल्म के सीन्स और डायलॉग्स पर आपत्ति जताई। फिर सेंसर बोर्ड ने OMG 2 को रिव्यू कमेटी के पास भेज दिया। वहीं अब हॉलीवुड फिल्म 'ओपेनहाइमर' पर हंगामा हो रहा है। ऐसे में हर कोई यह जानने के लिए आतुर है कि सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट किस आधार पर देता है? आइए जानते हैं। 

कौन देखता है फिल्म?
सेंसर बोर्ड के पूर्व चेयरमैन पहलाज निहलानी ने दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में इस बात की पूरी जानकारी दी है। उन्होंने बताया, "जब कोई प्रोड्यूसर फिल्म दिखाने के लिए सेंसर बोर्ड के पास आता है तब उस फिल्म को एग्जामिनिंग कमेटी के पास भेज दिया जाता है। एग्जामिनिंग कमेटी के चार मेंबर्स पूरी फिल्म देखते हैं और रील दर रील अपने पॉइंट्स नोट करते हैं। इस चार मेंबर्स की कमेटी में दो महिलाएं और दो पुरुष होते हैं। इसमें बोर्ड का कोई मेंबर नहीं होता है। 

ऐसे तय होते हैं कट्स
पहलाज निहलानी ने आगे बताया, "पॉइंट्स नोट करने के बाद सभी सदस्य आपस में डिस्कशन करते हैं और फिर फाइनल रिपोर्ट भेजते हैं। इस रिपोर्ट में वे फिल्म में फाइनल कट्स या कोई डिस्क्लेमर लगाने की सिफारिश देते हैं। यदि किसी सीन पर चारों मेंबर्स की सहमति नहीं बनती है तो चेयरमैन सेकेंड व्यूइंग के तौर पर फिल्म खुद देखकर फैसला करते हैं। इसके बाद प्रोड्यूसर को बुलाया जाता है और उन्हें शो कॉज नोटिस दिया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि फिल्म में क्या-क्या चेंजेज किए जाने हैं। अगर प्रोड्यूसर को किसी कट या डिस्क्लेमर पर आपत्ति होती है तो वह अपनी बात रखता है।"

इसके बाद मिलता है सर्टिफिकेट
पूर्व चेयरमैन ने कहा, "सेंसर बोर्ड से मिली रिपोर्ट के मुताबिक कट्स या डिस्क्लेमर प्रपोज करने के बाद, प्रोड्यूसर एक बार फिर सेंसर बोर्ड की रिवाइजिंग कमेटी को फिल्म दिखाते हैं। ये कमेटी ओरिजिनल फिल्म का फुटेज देखती है और फिर मॉडिफाइड फुटेज देखती है। पूरे चेंजेज को देखने के बाद रिवाइजिंग कमेटी फाइनल फिल्म फुटेज पर साइन और सील करती है। सर्टिफिकेट देने के बाद रिवाइजिंग कमेटी फिल्म को डिजिटल फॉर्मेट में प्रोड्यूसर को सौंपती है।

इतनी लम्बी प्रोसेस के बाद भी ऐसा क्याें हो रहा है?
पहलाज निहलानी बोले, "फिल्म की भाषा को बोर्ड कई बार सीरियसली नहीं लेता है। दरअसल, कमेटी के मेंबर्स लिबरल विचारधारा अपनाते हैं। इसी वजह से ये गलतियां हो जाती हैं। वैसे तो ये सीनियर ऑफिसर्स या CEO की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह ऐसी फिल्मों को रिव्यू करने के लिए एक्सपर्ट्स को बैठाएं।"

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