Maidaan Day 2 Box Office: दनादन ऊपर जा रही 'मैदान' की कमाई, लेकिन यह आंकड़ा छूना है बहुत जरूरी
- Maidaan Box Office Collection Day 2: अजय देवगन की फिल्म मैदान की कमाई का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। लेकिन इसे प्रॉफिट जोन में आने के लिए इस खास आंकड़े को छूना बहुत जरूरी है।
Maidaan Day 2 Box Office Collection: अजय देवगन की फिल्म 'मैदान' को बॉक्स ऑफिस पर एक शानदार शुरुआत मिली है। अमित शर्मा के निर्देशन में बनी इस बायोग्राफिकल स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म में आपको इमोशन्स और थ्रिल दोनों एक साथ महसूस होते हैं। अजय देवगन की अदाकारी फैंस का दिल जीतने में कामयाब रही है और IMDb पर 10 में से 9 रेटिंग पाने वाली इस फिल्म को माउथ पब्लिसिटी का भी फायदा मिलता साफ नजर आ रहा है। ओपनिंग डे पर फिल्म ने 2 करोड़ 6 लाख रुपये का बिजनेस किया था और दूसरे ही दिन फिल्म की कमाई का ग्राफ काफी तेजी से ऊपर गया।
कितना हुआ 'मैदान' का अभी तक का कलेक्शन?
फिल्म का दूसरे दिन (गुरुवार) का कलेक्शन 4 करोड़ 50 लाख रुपये रहा। फिल्म की कमाई में शुक्रवार को और बेहतरी देखने मिली और ट्रेड विशेषज्ञों के मुताबिक फिल्म ने बीते रोज 5 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए हैं। फिल्मों की कमाई के आंकड़े जारी करने वाले प्लेटफॉर्म सैकनिल्क के मुताबिक 'मैदान' का शुक्रवार तक का कुल कलेक्शन 10 करोड़ 70 लाख रुपये हो चुका है। फिल्म की कमाई के ग्राफ का लगातार ऊपर जाना बता रहा है कि इसे माउथ पब्लिसिटी का फायदा मिल रहा है।
BMCM की वजह से 'मैदान' को हो रहा नुकसान?
हालांकि ईद के ही दिन अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ की फिल्म 'बड़े मियां छोटे मियां' भी रिलीज हुई थी, जिसकी वजह से फिल्म को थोड़ा नुकसान हो रहा है। प्रॉफिट का बॉक्स ऑफिस पर डिवाइड होना साफ पता चल रहा है क्योंकि जहां इधर 'मैदान' को अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ वासु भगनानी की फिल्म BMCM भी कमाल कर रही है। देखना होगा कि प्रॉफिट मार्जिन की रेस में कौन किसे मात देता है।
कितना ही 'मैदान' का बजट, और क्या है कहानी?
फिल्म 'मैदान' के बजट की बात करें तो TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म को बनाने में लगभग 100 करोड़ रुपये की लागत आई है। यानि प्रॉफिट बनाने के लिए इसे कम से कम 120 करोड़ रुपये का कलेक्शन करना जरूरी है। हैवी वीएफएक्स के साथ फिल्म को बनाने में कहीं कमी ना रहे इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है। फिल्म की कहानी फुटबॉल कोच सय्यद अब्दुल रहीम की कहानी के जरिए आपको उस दौर की सैर पर ले जाती है जब 1952 से 1962 के बीच भारत फुटबॉल के मामले में अपना गोल्डन युग जी रहा था।
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