मां कहती थी तू नागर ब्राह्मण है, जब डर लगे तो या अली मदद कह दिया कर…महेश भट्ट ने याद किया बचपन
महेश भट्ट ने बताया कि मां मुस्लिम थीं तो हिंदू घरवाले इस बात को कलंक समझते थे। वे मां-बाप का रिश्ता छिपाते थे। मां नहलाते वक्त उन्हें उनका गोत्र बताती थीं पर बोलती थीं कि डर लगे तो वह या अली मदद बोल सकते हैं।

महेश भट्ट की कई फिल्में उनकी असली जिंदगी के अनुभवों से प्रेरित हैं। उनके पिता हिंदू थे और मां मुस्लिम। जख्म मूवी उनकी कहानी से इंस्पायर्ड बताई जाती है। एक इंटरव्यू के दौरान महेश भट्ट ने अपने बचपन और जिंदगी के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि जिंदगी में बहुत विरोधाभास देखा। बचपन में जो घटा उसका असल जिंदगी पर बहुत असर पड़ा। यही वजह है कि फिल्मों में कहीं न कहीं उस हकीकत से प्रेरणा ली।
अलग-अलग संस्कृति के बीच बड़े हुए
महेश भट्ट बीबीसी से बातचीत कर रहे थे। उनसे जब बचपन के बारे में पूछा गया तो बोले, '1948 में एक आजाद भारत में हमारा जन्म हुआ। हमारी वालिदा जो थीं, मां वो शिया मुसलमान थीं। बाप हमारे नागर ब्राह्मण भट्ट फिल्ममेकर थे। मुंबई का एक फेमस पार्क है शिवाजी पार्क, हम उसके पास रहते थे। वहां हमारा जन्म हुआ। बचपन में जब स्कूल जाने से पहले मां नहलाती थी तो कहती थी, बेटा तू एक नागर ब्राह्मण का बच्चा है। तेरा भार्गव गोत्र है, अश्विन साखा है। मगर डर लगे तो या अली मदद बोल दिया कर। फिर हम डॉन बॉस्को में पढ़े। हम तो उस वक्त के हिंदुस्तान की मिसाल थे। कभी हमने सोचा नहीं था कि एक दौर ऐसा आएगा कि जो प्लूरल तहजीब हमारे रोम-रोम की सच्चाई है, उसे घाव की तरह लेकर घूमेंगे।'
घरवाले छिपाते थे सच
महेश भट्ट आगे बताते हैं, 'मगर मैं आज भी छाती ठोंककर कहता हूं कि ये बहुसंस्कृति ही हमारी पहचान है। मैं किसी भी एक हिस्से से कट गया तो आधा-अधूरा रह जाऊंगा। बचपन की ये गूंज साथ रहती है। मेरा बचपन बहुत रिच था। एक किस्म की बेचैनी थी, एक तकलीफ थी। एक घाव की तरह हम सच को छिपाते थे। हमारे वालिद साहब ने समाज की नजरों में हमारी वालिदा से ब्याह नहीं किया था। ये एक कलंक की तरह था जिसे पूरा परिवार छिपाता था। मुझे समझ नहीं आता था कि ये क्या है। एक तरह तो सिखाया जाता है कि सच बोलो। हम बेबाकी से इस बात का जिक्र करते थे तो घरवाले खफा होते थे कि घर की बातें बाहरवालों से नहीं करते।'
पढ़ाई में नहीं लगता था मन
महेश बोले, 'मैं बाहरवालों को अलग ही नहीं समझता था। ये सारी बातें साये की तरह मेरा पीछा करती रहती थीं। मैं पढ़ाई में इतना अच्छा नहीं था। मैथ्स पढ़ाई जाती थी तो समझ नहीं आता था कि ये क्या है। मैं सड़कों पर बाहर भागता था। स्ट्रीट लाइफ और वेंडर्स की लाइफ ये सब देखने में ज्यादा मन लगता था। स्कूल में जो सिखाया जाता था वो असल जिंदगी में दिखता नहीं था सिर्फ पुस्तकों में था। बच्चे विरोधाभास समझते हैं।' उन्होंने बताया कि वह इसलिए अपनी फिल्मों में हकीकत दिखाने लगे। बता दें कि महेश भट्ट की फिल्म जख्म उनकी मां शिरीन मोहम्मद अली की असल जिंदगी से प्रेरित है।
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