Review: कंगना रनौत ने ‘इमरजेंसी’ के जरिए इंदिरा गांधी की छवि सुधारी या कलंकित की? पढ़ें रिव्यू
- कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म में कंगना के अलावा अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, विषाक नायर, महिमा चौधरी, मिलिंद सोमन और सतीश कौशिक ने मुख्य भूमिका निभाई है।
बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर खूब बवाल हुआ। सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट पाने के लिए पापड़ बेलने पड़े, कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, फिल्म का विरोध करने वालों को रिलीज से पहले फिल्म दिखानी पड़ी। जब ये सब हो रहा था तब आम जनता के मन में बस एक ही सवाल चल रहा था, आखिर कंगना ने इस फिल्म में ऐसा क्या दिखाया है? आइए आपको बताते हैं कि कंगना ने अपनी फिल्म के जरिए इंदिरा गांधी के कार्यों को छिपाने की कोशिश की है या फिर उनकी छवि को कलंकित करने की?
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म की शुरुआत 1929 से होती है। छोटी-सी इंदिरा अपनी दादा से इंद्रप्रस्थ की कहानी सुन रही होती है। दादी की बताई कहानी इंदिरा के दिल और दिमाग में घर कर जाती है। वह समझ जाती है कि दिल्ली जिसकी, देश उसका। फिर धीरे-धीरे कहानी आगे बढ़ती और बात भारतीय राजनीति के उस काले अध्याय तक आ पहुंचती है जब लोकतंत्र की जड़ों को हिलाकर रख दिया गया था। फिल्म में बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध, ऑपरेशन ब्लू स्टार, खालिस्तानी आंदोलन और इंदिरा गांधी की हत्या जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया जाता है।
फिल्म की कहानी और डायरेक्शन
कंगना ने ‘इमरजेंसी’ में वही गलती की जो मेघना गुलजार ने ‘सैम बहादुर’ में की थी। लार्जर दैन लाइफ शख्सियत के जीवन के हर पहलू को दिखाने की लालच में कहानी को लंबा और बोरिंग बना दिया। फिल्म में जब इंदिरा गांधी इमरजेंसी लगाने की घोषणा करती हैं तब इंटरवल होता है। उससे पहले इतिहास में घटित इतनी सारी घटनाएं दिखा दी जाती हैं कि समझ ही नहीं आता कि ये पॉलिटिकल साइंस की क्लास चल रही है या फिर फिल्म। हालांकि, इंटरवल के बाद कहानी जोर पकड़ती है और अंत तक लोगों को कुर्सी से बांधे रखती है। फिल्म की अच्छी बात ये है कि फिल्म कहीं भी इंदिरा गांधी के कामों को छिपाने या उन्हें बदनाम करने की कोशिश नहीं करती है। पूरी निष्पक्षता से भारतीय राजनीति के जटिल पहलुओं को सामने रखती है।
एक्टिंग
कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के किरदार को बहुत बेहतरीन तरीके से निभाया। अनुपम खेर ने जयप्रकाश नारायण के संघर्षशील व्यक्तित्व को बेहद सटीक तरीके से दर्शाया। महिमा चौधरी, इंदिरा गांधी की करीबी मित्र, पूपुल जयकर की भूमिका में खूब जमीं। मिलिंद सोमन, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के किरदार के लिए परफेक्ट लगे। वहीं, सतीश कौशिक ने जगजीवन राम के किरदार में लोगों के दिलों में छाप छोड़ दी।
फिल्म देखें या नहीं?
अगर राजनीति में आपकी रुचि है तो आप ये फिल्म देख सकते हैं। अगर आप एक्टिंग करना चाहते हैं तो फिल्म देखकर इन कलाकारों से एक्टिंग के गुण सीख सकते हैं। लेकिन, अगर आप मनाेरंजन चाहते हैं तो ये फिल्म आपको निराश कर सकती है।
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