Hindi Newsएंटरटेनमेंट न्यूज़बॉलीवुडDeepika Padukone opened up about her struggle with depression And she told Her Mother Mujhe Jeena Hi Nahi Hai

डिप्रेशन से बुरी तरह टूट गई थीं दीपिका पादुकोण, मां से रोते हुए कहा था- 'मुझे जीना ही नहीं है...'

  • दीपिका ने बताया कि एक पल उनकी जिंदगी में ऐसा आया था जब वो पूरी तरह से हार चुकी थीं और जीना नहीं चाहती थी। लेकिन बाद में उन्होंने डिप्रेशन से लड़ने का फैसला किया। एक्ट्रेस की इस कहानी ने छात्रों को मोटिवेट किया।

Priti Kushwaha लाइव हिन्दुस्तानThu, 13 Feb 2025 06:39 AM
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डिप्रेशन से बुरी तरह टूट गई थीं दीपिका पादुकोण, मां से रोते हुए कहा था- 'मुझे जीना ही नहीं है...'

बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'परीक्षा पे चर्चा' के दूसरे एपिसोड में छात्रों संग बातचीत की है। इस दौरान छात्रों ने दीपिका से कई सवाल पूछे, जिसका एक्ट्रेस ने बड़ी ही सरलता के साथ जवाब दिया। इसी दौरान कुछ छात्रों ने दीपिका से डिप्रेशन को लेकर सवाल किया। जिसके बाद उन्होंने छात्रों को अपनी डिप्रेशन वाली कहानी के बारे में बताई। दीपिका ने बताया कि एक पल उनकी जिंदगी में ऐसा आया था जब वो पूरी तरह से हार चुकी थीं और जीना नहीं चाहती थी। लेकिन बाद में उन्होंने डिप्रेशन से लड़ने का फैसला किया। एक्ट्रेस की इस कहानी ने छात्रों को मोटिवेट किया। आइए जानते हैं दीपिका ने क्या बताया?

मुझे एहसास हुआ मैं डिप्रेशन में हूं

दीपिका पादुकोण ने कहा, 'मैंने स्कूल में सबसे पहले स्पोर्ट में हिस्सा लिया और खेला, फिर मॉडलिंग किया और उसके बाद एक्टिंग की दुनिया की ओर कदम बढ़ाया। मैं खुद को तब तक धकेलती रही जब तक कि 2014 में मैं अचानक बेहोश नहीं हो गई। बाद में ही मुझे एहसास हुआ कि मैं डिप्रेशन से जूझ रही थी। डिप्रेशन के बारे में बात यह है कि यह किसी को दिखाई नहीं देता है - आप इसे हमेशा नहीं देख सकते हैं। हमारे आस-पास ऐसे लोग हो सकते हैं जो चिंता या डिप्रेशन से जूझ रहे हों, फिर भी हमें कभी पता नहीं चल पाता, क्योंकि बाहर से वे खुश और सामान्य दिखते हैं।'

मुझे जीना ही नहीं है...

दीपिका ने आगे बताया कि मुंबई में अकेले रहते हुए उन्होंने लंबे समय तक चुपचाप डिप्रेशन से संघर्ष किया। लेकिन उनकी मां समझ गई थीं कि मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है और वो मदद के लिए आगे आईं। उन्होंने कहा, 'जब मेरी मां मुझे देखने मुंबई आईं, जिस दिन वो बैंगलोर के लिए निकल रही थीं, मैं अचानक टूट गई। मेरे परिवार ने मुझसे मेरे काम के बारे में कई तरह के सवाल पूछे, लेकिन मैं बस इतना ही कह पाई, 'मुझे नहीं पता। मैं बस खुद को कमजोर और निराश महसूस करती हूं। मुझे जीना ही नहीं है।’ शुक्र है कि मेरी मां ने मेरे लक्षणों को पहचान लिया और मुझे मनोवैज्ञानिक से मिलने का सुझाव दिया। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य को कलंक माना जाता है, जिसके कारण इस पर बात करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन जैसे ही मैंने इसके बारे में बात करना शुरू किया, मुझे हल्का महसूस हुआ। चिंता, तनाव और डिप्रेशन किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं, और इसके बारे में बात करने से वास्तव में बोझ हल्का होता है।'

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