बीच में ही बंद हो गई थी जो जीता वही सिकंदर की शूटिंग, एक्टर्स ने कर लिया किनारा; फिर आमिर खान की मदद करने आए थे दीपक
दीपक तिजोरी एक समय पर कई फिल्मों में हीरो के दोस्त का किरदार निभाते थे। इतना ही नहीं उनके हर किरदार को काफी पसंद भी किया जाता था।
एक्टर दीपक तिजोरी 1990 के दशक में कई बॉलीवुड फिल्मों में सपोर्टिंग रोल कर चुके हैं, जिसके बाद वे काफी चर्चित हो गए थे। अब उन्होंने आमिर खान की जो जीता वो ही सिकंदर फिल्म के बारे में एक जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि शुरुआत में उन्हें ऑडिशन के बाद फिल्म में रोल देने से मना कर दिया गया था, लेकिन कुछ महीने बाद मालूम हुआ कि प्रोजेक्ट रुक गया है और फिर उन्हें बताया गया कि मिलिंद सोमन वाला रोल उन्हें करना होगा और प्रोडक्शन को बचाना होगा।
आमिर खान ने बुलाया
'रेडियो नशा' से बात करते हुए दीपक तिजोरी ने कहा, 'फिल्म लगभग बंद हो चुकी थी। 75 फीसदी काम पूरा हुआ था। जो जीता वो सिकंदर फिल्म मैं वास्तव में करना ही चाहता था, लेकिन जब नहीं मिली तो काफी परेशान हो गया। फिर कुछ समय बाद इससे आगे बढ़ गया। कुछ महीने बाद अफवाहें सुनीं कि ऊटी में चीजें पटरी से उतर गई हैं और फिल्म के एक्टर्स सेट छोड़कर चले गए हैं। एक दिन ऊटी में दिल है कि मानता नहीं फिल्म की शूटिंग कर रहे भट्ट साहब ने मुझे बुलाया और कहा कि मुझे जो जीता वो ही सिकंदर फिल्म के सेट पर जाना चाहिए, क्योंकि आमिर खान और मंसूर खान ने बुलाया है।'
भट्ट साहब ने दिया फिल्म का ऑफर
दीपक तिजोरी के पास चूंकि यह रिक्वेस्ट सीधे उनके गुरु महेश भट्ट के पास से आई थी, इसलिए वह ऊटी चले गए। वहां पर फिल्म के प्रॉड्यूसर नासिर हुसैन ने दीपक को बताया कि उन्हें शेखर का रोल करना होगा। दीपक ने पहले यह पता कर लिया कि मिलिंद सोमन को यह जानकारी है कि उन्हें फिल्म में रिप्लेस किया जा रहा है, तभी उन्होंने हां किया। दीपक ने कहा, 'मुझे पता चला था कि फिल्म रुक गई है। मैं नासिर साहब से मिला और उन्होंने कहा कि बेटा, आपको यह करना है। मैंने उन्हें जवाब दिया कि सर, आपने बोल दिया तो बात खत्म हो गई। भट्ट साहब, आमिर खान और सभी ने मुझे करने के लिए कहा था तो मैं यह फिल्म करने जा रहा था।''
मिलिंद ने लगाए आरोप
उधर, वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त से मिलिंद सोमन ने इसके बारे में बात की थी। उन्होंने कहा था कि वह फिल्म से इसलिए बाहर हो गए थे, क्योंकि उनके साथ अच्छा ट्रीटमेंट नहीं किया जा रहा था। समय पर खाना नहीं दिया जाता था। मैंने अपने साइकिल फेंकते हुए कहा था कि मेरा ब्रेकफास्ट कहां है? उन्होंने मुझे कुछ नहीं दिया था। मैं चूंकि घर पर नहीं था, इसलिए खाने को लेकर प्रोडक्शन पर ही डिपेंड था। मेरे लिए यह जरूरी था कि जो कुछ कर रहा हूं, उसमें खुश रहूं और अगर नहीं हूं तो काम नहीं करता।
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