ऋतिक ने इस फिल्म के लिए सीखी थीं गालियां, घंटों तक चलती थी ट्रेनर के साथ प्रैक्टिस
- ऋतिक रोशन को अपने एक किरदार की तैयारी के दौरान बिहार की स्थानीय बोली की जमकर प्रैक्टिस करनी पड़ी। इतना ही नहीं, सक्रिप्ट में गालियां नहीं होने पर भी उन्होंने गालियों की जमकर प्रैक्टिस की।
बॉलीवुड एक्टर्स को कई बार अपने किरदारों की तैयारी करने के लिए अतरंगी काम करने पड़ते हैं। ऋतिक रोशन को भी फिल्म 'सुपर 30' के दौरान कुछ ऐसा ही करना पड़ा था। विकास बहल के निर्देशन में बनी बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म 'सुपर 30' साल 2019 में आई थी, और इसमें ऋतिक रोशन ने बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार का रोल प्ले किया था। फिल्म के लिए ऋतिक रोशन को क्योंकि बिहार की स्थानीय बोली सीखनी थी तो इसके लिए उन्होंने ट्यूटर रखा था और खुद कई-कई घंटों तक लोकल जुमले और वहां के एक्सेंट में बातें करते थे। चाल-ढाल से लेकर उठने-बैठने तक ऋतिक रोशन ने हर चीज की प्रैक्टिस की थी।
जब ऋतिक ने जमकर की थी गालियों की प्रैक्टिस
कम लोग जानते हैं कि ऋतिक रोशन ने इस फिल्म में अपने किरदार की तैयारी करने के लिए गालियों की भी जमकर प्रैक्टिस की थी। जाहिर है आप सोच रहे होंगे कि आनंद कुमार के किरदार का गालियों से क्या लेना-देना। ऋतिक रोशन ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि बिहार के लोकल स्लैंग में कम्फर्टेबल होने के लिए उन्होंने गालियों का सहारा लिया ताकि उस एक्सेंट को पकड़ सकें। ऋतिक रोशन ने गालियों की जमकर प्रैक्टिस की, ताकि लोकल बोली पर कमांड पक्का कर सकें।
कई बार बन जाती थी शर्मिंदगी वाली सिचुएशन
फिल्म के मेकिंग वीडियो में ऋतिक रोशन ने खुद बताया है कि मुझे इस किरदार में समा जाने के लिए एक तरकीब का इस्तेमाल करना पड़ा, जिसे कहते हैं गालियों भरी भाषा का इस्तेमाल। ऋतिक रोशन ने कहा कि यह उनके लिए कई बार थोड़ा शर्मिंदगी भरा हो जाता था क्योंकि उन्हें बिलुकल उसी लहजे में रहना था। हालांकि यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट रही थी, लेकिन फिल्म में ऋतिक रोशन के एक्सेंट को लेकर कई लोगों ने निराशा भी जाहिर की थी। फिल्म को IMDb पर 10 में से 7.9 की रेटिंग मिली है।
फिल्म का बजट और कुल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन
तकरीबन 60 करोड़ रुपये की लागत में बनी इस फिल्म का कुल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 208 करोड़ रुपये रहा था। ऋतिक रोशन के अलावा फिल्म में मृणाल ठाकुर, पंकज त्रिपाठी, आदित्य श्रीवास्तव और अमित साद ने अहम किरदार निभाए थे। फिल्म की कहानी आनंद कुमार के खुद के संघर्ष और उनके उस कोचिंग इंस्टीट्यूट के बारे में बताती है जहां वो आर्थिक रूप से काफी कमजोर बच्चों को आज भी पढ़ाते हैं।
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