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छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में होगी कांग्रेस की परीक्षा; क्या बन रहे समीकरण?

Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। विश्लेषकों की मानें तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में कांग्रेस की कड़ी परीक्षा होगी।

Krishna Bihari Singh रितेश मिश्रा, रायपुरTue, 10 Oct 2023 12:59 AM
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निर्वाचन आयोग ने सोमवार को छत्तीसगढ़ में वोटिंग की तिथियों का ऐलान कर चुनावी शंखनाद कर दिया। छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में मतदान होगा। सूबे में सात और 17 नवंबर को वोटिंग होगी जबकि मतगणना बाकी राज्यों के साथ तीन दिसंबर को होगी। कांग्रेस ने 15 साल के भाजपा शासन के बाद 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों में 90 सदस्यीय विधानसभा में 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देकर कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया है। इस रिपोर्ट में जानें सूबे में क्या बन रहे चुनावी समीकरण...

जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर
कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं क्योंकि इससे उसकी सेक्यूलर राजनीतिक छवि को बढ़ावा मिलेगा। राज्य में चुनावी सफलता कांग्रेस के लिए साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिहाज से भी बेहद अहम होगी। इससे INDIA गठबंधन में उसे काफी मजबूती मिलेगी। मौजूदा वक्त में कांग्रेस के पास 71 विधायक हैं। भाजपा के पास 13, जेसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) के पास 3 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पास दो विधायक हैं। वहीं दुर्ग जिले की वैशाली नगर सीट विधायक के दो महीने पहले हुए निधन के कारण खाली है।

क्या कहते हैं आंकड़े
साल 2018 में कांग्रेस ने राज्य में अभूतपूर्व वापसी की और कुल 90 में से 67 सीटें जीतीं। बाद में हुए उपचुनावों में कांग्रेस विधायकों संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई। साल 2018 में जीत के बाद कांग्रेस ने भूपेश बघेल को सूबे का सीएम बनाया। वह राज्य के पहले ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) मुख्यमंत्री बने, जहां समुदाय की संख्या कुल आबादी की 40 फीसदी से अधिक है। 

भूपेश ने मजबूत की कांग्रेस की स्थिति
पांच साल पहले कांग्रेस की जीत की मुख्य वजहों में सत्ता विरोधी लहर और नेतृत्व के प्रति भाजपा कार्यकर्ताओं के असंतोष को बताया जाता है। मौजूदा वक्त में आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर क्षेत्र में सभी सीटें सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास हैं। वहीं चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि बीते पांच वर्षों के दौरान बघेल ने राज्य के क्षेत्रीय त्योहारों, खेल और कला और संस्कृति को बढ़ावा देकर छत्तीसगढ़ियावाद को मजबूती दी है। इससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। 

भ्रष्टाचार की ओर ध्यान दिलाने का प्रयास
दूसरी ओर, भाजपा ने लोगों का ध्यान भ्रष्टाचार की ओर दिलाने का प्रयास किया है। भाजपा इसे मुद्दा बनाते हुए लगातार कांग्रेस सरकार पर हमला कर रही है। भाजपा ने प्रवर्तन निदेशालय के छापों का हवाला देकर कांग्रेस की सरकार पर हमले किए हैं। भाजपा ने महादेव ऐप घोटाला, कोयला और शराब घोटाले का जिक्र कर भूपेश बघेल सरकार को घेरने की कोशिशें की हैं। हालांकि चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों, खासकर राज्य के आदिवासी इलाकों में 2018 के चुनावों की तुलना में चुनावी रूप से कमजोर नजर आ रही है।

आदिवासी इलाकों में बड़ी परीक्षा
इस मसले पर कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा- 2018 के चुनावों में हमें जो सीटें मिली थीं, उसकी तुलना में कांग्रेस को सभी चार क्षेत्रों (सरगुजा, बिलासपुर, बस्तर और दुर्ग) में सीटें खोने की संभावना है। पहला कारण यह है कि बड़ी संख्या में पहली बार के विधायकों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। नतीजतन इन क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर है। 

छिटक साकता है साहू समाज 
कांग्रेस के नेता ने कहा- कुछ जातियां जिन्होंने 2018 में कांग्रेस को वोट दिया था, उनका झुकाव (इस बार) भाजपा की ओर है। इन जातियों में साहू समाज शामिल है। साल 2018 में साहू समाज के लगभग 12 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस को इस उम्मीद के साथ वोट दिया था कि उसके नेता ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। चूंकि अब यह साफ हो गया है कि यदि कांग्रेस जीतती है तो बघेल मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे साहू भाजपा की ओर चले गए हैं।

कई सीटों के चुनाव नतीजों पर पड़ेगा असर
भाजपा के खेमे में भी एक कमी साफ नजर आ रही है। भाजपा पिछले पांच साल में कांग्रेस पर आक्रामक हमला बोलने में नाकाम रही है। हाल के महीनों में ही भाजपा भ्रष्टाचार को एक मुद्दे के रूप में पेश करने में कामयाब रही, लेकिन विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान कितना प्रभावी होगा, इस पर सवाल अभी भी बरकरार हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा की जिला इकाइयां केंद्र के खिलाफ कांग्रेस के हमलों का मुकाबला करने में विफल रही हैं। इसका असर कई सीटों के चुनाव नतीजों पर भी पड़ सकता है।

भाजपा के सामने भी बड़ी चुनौती
हालांकि इस बार चुनावों में बीजेपी ने अपनी स्थानीय इकाइयों पर ही भरोसा जताया है। बीजेपी के एक पदाधिकारी ने कहा- पार्टी ने आरएसएस और उसके सदस्यों से जमीन पर पार्टी के लिए काम करने की उम्मीद जताई है। साल 2018 के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने 68 सीटें और 42.8 फीसदी वोट हासिल किए थे जो भाजपा से 10% अधिक था। चुनाव पर्यवेक्षकों के मुताबिक, बीजेपी को इस बड़े अंतर को पाटने और 46 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

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