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UP board exam 2020: परीक्षा से पहले अभिभावक ऐसे बढ़ाएं बच्चों का मनोबल  

बोर्ड परीक्षा मंगलवार से शुरू हो रही है। परीक्षा देने से पहले ही छात्र-छात्राएं परिणाम को लेकर हार मान ले रहे हैं। अच्छे नंबर लाने के लिए अभिभावकों की ओर से बनाए जा रहे दबाव से वह जूझ रहे हैं।...

Anuradha Pandey नईम सिद्दीकी, प्रयागराजTue, 18 Feb 2020 11:04 AM
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बोर्ड परीक्षा मंगलवार से शुरू हो रही है। परीक्षा देने से पहले ही छात्र-छात्राएं परिणाम को लेकर हार मान ले रहे हैं। अच्छे नंबर लाने के लिए अभिभावकों की ओर से बनाए जा रहे दबाव से वह जूझ रहे हैं। ऐसे में मनोचिकित्सकों की सलाह है कि अभिभावक बच्चों को बिल्कुल तनाव न दें। परीक्षा की इस घड़ी में उनका सहयोग करें। उनका मनोबल गिराने की बजाय बढ़ाएं। खुद के साथ बच्चों के अंदर भी सकारात्मक सोच पैदा करें। 

डिप्रेशन या अवसाद के ये हैं लक्षण : उलझन होना, अपने दोस्तों व रिश्तेदारों से दूरी बना लेना, उदासी का अनुभव करना, निर्णय लेने की शक्ति कम पड़ना, किसी भी काम को करने में रुचि न रहना, नींद और भूख में अनियमितता आना। इसी तरह परीक्षा में नकारात्मक परिणामों के बारे में सोचते रहना और दोष की भावनाओं से ग्रसित रहना। ऐसे में अभिभावक बच्चों का ध्यान रखें। 

बच्चों को परीक्षा के समय तनाव न दें। उन्हें पूरी तरह इससे दूर रहने में मदद करें। उनके व्यवहार व गतिविधियों पर नजर रखें। जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सक व मनोवैज्ञानिक के पास उपचार के लिए जाएं। 
-डॉ. अजय मिश्र, मनोचिकित्सक, कॉल्विन अस्पताल। 

12 से 19 वर्ष की आयु मनोसामाजिक विकास की पांचवी अवस्था होती है। इस वक्त उसे सकारात्मक रूप, दिशा व माहौल की जरूरत होती है। अभिभावकों को तनाव देने की जगह इसी पर ध्यान देना चाहिए। -इशान्या राज, नैदानिक मनोवैज्ञानिक, कॉल्विन अस्पताल। 
ये करें परीक्षार्थी 

छात्र खुद पर विश्वास व सकारात्मक सोच रखें। 
आने वाले परिणाम को स्वीकार करने की हिम्मत रखें।
नकारात्मक विचार न आने दें स्व अभिप्रेरित वाले वाक्यों को दोहराएं।
पठन-पाठन के तरीकों को नियमित समय से योजनाबद्ध रखें।
कम से कम आठ घंटे की नींद जरूर पूरी करें।
परफेक्ट बने रहने के ख्यालों पर ध्यान न दें। 

परीक्षा के समय तनाव न लें, लोगों से जुड़ें। 


ये करें अभिभावक 

अच्छे नंबर लाने के लिए अनावश्यक दबाव न डालें। 
पढ़ाई के समय घरेलू जिम्मेदारियों से मुक्त रखें। 
बच्चों व उनके शिक्षकों से नियमित संवाद बनाए रखें। 
बच्चों को चिंतन के साथ स्वत: समझने का मौका दें। 
बच्चों को बताएं कि एक परीक्षा उनकी जीवनलीला तय नहीं करती। 
 

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