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RRB ग्रुप डी भर्ती का मुद्दा संसद में उठा, जानें क्या है पूरा मामला

रेलवे भर्ती बोर्ड ( RRB ) की ओर से ग्रुप डी ( RRB Group D ) के पदों के लिए आयोजित लिखित परीक्षा में चयन के बाद भी नौकरी न मिलने के विरोध में पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी में दिव्यांगों द्वारा...

Pankaj Vijay एजेंसी, नई दिल्लीSun, 1 Dec 2019 10:08 AM
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रेलवे भर्ती बोर्ड ( RRB ) की ओर से ग्रुप डी ( RRB Group D ) के पदों के लिए आयोजित लिखित परीक्षा में चयन के बाद भी नौकरी न मिलने के विरोध में पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी में दिव्यांगों द्वारा प्रदर्शन किए जाने का जिक्र करते हुए राज्यसभा में शुक्रवार को द्रमुक के एक सदस्य ने कहा कि इन लोगों को सहानुभूति या संवेदना नहीं चाहिए बल्कि अपने अधिकार चाहिए। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए द्रमुक सदस्य तिरुचि शिवा ने कहा कि कानून में दिव्यांगों के लिए अधिकार हैं। उन्होंने कहा ''यह लोग किसी भी तरह की सहानुभूति या संवेदना नहीं चाहते। ये लोग अपने अधिकार चाहते हैं। 

शिवा ने कहा कि रेलवे की ग्रुप डी कैटेगरी की नौकरी के लिए परीक्षा में इन लोगों को उत्तीर्ण कर दिया गया लेकिन नौकरी नहीं दी गई। ये दिव्यांग रेलवे की Group D की नौकरी के लिए नियुक्ति किए जाने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों को हर क्षेत्र में समान अधिकार मिलने चाहिए। उनकी शारीरिक अक्षमता उनके अधिकारों की राह में बाधक नहीं बननी चाहिए। 

शिवा ने कहा कि अगर दिव्यांगों को परीक्षा नहीं देने दी जाती तब अलग बात होती। परीक्षा में उनके बैठने के बाद यह स्थिति है। द्रमुक सदस्य ने सरकार से इस ओर तत्काल ध्यान दिए जाने की मांग की। विभिन्न दलों के सदस्यों ने उनके इस मुद्दे से स्वयं से संबद्ध किया। 

शून्यकाल में ही तेदेपा के कनकमेदला रवींद्र कुमार ने आंध्रप्रदेश की राजधानी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश के विभाजन के बाद गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और राज्य की राजधानी अमरावती को बनाने का फैसला किया गया। कुमार ने कहा कि अमरावती को आंध्रप्रदेश की राजधानी बनाने के लिए 29 गांवों के 28,000 किसानों ने 33,000 एकड़ जमीन दी। शिलान्यास भी हो गया और अवसंरचना निर्माण भी आरंभ हो गया। लेकिन वाईएसआर कांग्रेस की सरकार ने नयी राजधानी के निर्माण का काम रुकवा दिया।
        
भाजपा के ही शिव प्रताप शुक्ला ने निजी शिक्षण संस्थाओं में भारी भरकम फीस का मुद्दा उठाते हुए कहा कि नर्सरी में तक बच्चों के दाखिले के लिए एक एक लाख रुपये लिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोचिंग संस्थानों का भी लगभग यही हाल है। भारी फीस के कारण शिक्षा मुश्किल होती जा रही है। शुक्ला ने निजी संस्थानों में फीस के लिए सरकार से एक फ्रेमवर्क तय किए जाने की मांग की। 

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