Republic Day 2020: भारतीय संविधान से ये 5 चीजें जरूर सीखनी चाहिए
Republic Day 2020 : 70 साल की उम्र में सिर्फ संविधान, कछुए और व्हेल को ही युवा कहा जाता है। देखा जाए तो इन सात दशकों में युवा संविधान ने बहुत सारे परिवर्तन देखे हैं। शुरुआत में संविधान में 395...
Republic Day 2020 : 70 साल की उम्र में सिर्फ संविधान, कछुए और व्हेल को ही युवा कहा जाता है। देखा जाए तो इन सात दशकों में युवा संविधान ने बहुत सारे परिवर्तन देखे हैं। शुरुआत में संविधान में 395 अनुच्छेद और आठ अनुसूचियां थी। लेकिन 104 संशोधनों के बाद अब 450 से ज्यादा अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। इन संशोधनों ने गणतंत्र के अहम पहलुओं जैसे कि मौलिक अधिकार, संघवाद, लोकतांत्रिक भागीदारी, न्यायिक समीक्षा आदि को काफी बदल दिया है। ये संशोधन आमतौर पर संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए लागू नहीं किए गए थे। बल्कि जब अदालतों ने व्यक्तिगत अधिकारों और संवैधानिक गारंटी को बरकरार रखते हुए सरकार के एजेंडे को अमान्य करार दिया तो इसके जवाब में संसद ने संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से इन अवरोधों को हटाकर जवाब दिया। विशेष रूप से आपातकाल के दौरान हमलों के बावजूद संविधान में काफी लचीलापन देखने को मिला।
1. शुरुआती यात्रा
संविधान को अपनाने के तुरंत बाद ही विभिन्न सरकारी नीतियों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें चुनौती दी गई थी। रोमेश थापर द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी साप्ताहिक ‘क्रॉस रोड्स' को सरकार की आलोचना करने पर मद्रास में प्रतिबंधित कर दिया गया था। वहीं प्रकाशक बृज भूषण के ऑर्गेनाइजर को मुस्लिम विरोधी भावनाओं के चलते दिल्ली में प्रतिबंधित कर दिया गया था। जब इसे चुनौती दी गई तो उच्चतम न्यायालय ने रोमेश थापर और बृज भूषण के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखा।
एक और समस्या भूमि सुधारों के क्रियान्वयन को लेकर थी। जमींदारी उत्पीड़न को खत्म करने के बाद कुछ राज्यों ने अमीर जमींदारों को कम मुआवजा दिया। इसे कुछ उच्च न्यायालयों द्वारा असंवैधानिक ठहराया गया था। क्योंकि अनुच्छेद 14 के तहत सभी को समान सुरक्षा की गारंटी मिली हुई थी। यह अमीर जमींदारों से भेदभाव की अनुमति नहीं देता था। लेकिन दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह जैसे जमींदारों को पूर्ण मुआवजे का भुगतान करते हुए भूमि सुधार के एजेंडे को लागू किया गया।
कानून से जुड़े लोगों ने संविधान को बड़े उत्साह के साथ अपनाया लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरकार के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी कर दी थीं। तत्कालीन संसद ने अदालतों के हस्तक्षेप के बाद मौलिक अधिकारों को सख्ती से लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किया। जमींदारी एक बड़ी समस्या थी और यह अनुच्छेद 14 द्वारा गारंटीकृत समान सुरक्षा को कमजोर कर रही थी। इसके चलते भूमि अधिग्रहण से संबंधित अनुच्छेद 31 में अपवादों को जोड़ने के अलावा, तत्कालीन संसद ने अनुच्छेद 31बी के तहत एक नया संवैधानिक प्रावधान बनाया जिसे नौवीं अनुसूची कहा जाता है। नौवीं अनुसूची में शामिल कोई भी कानून न्यायिक समीक्षा से परे है। भले ही यह असंवैधानिक हो और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
2. बदलाव
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने दस सूत्री कार्यक्रम के तहत समाजवादी एजेंडे को बड़ी तेजी से आगे बढ़ाया। इसमें राष्ट्रीयकरण, एकाधिकार पर अंकुश लगाना, भूमि सुधार, शहरी क्षेत्र में सीलिंग, ग्रामीण आवास आदि शामिल थे। इनमें से बहुत से समाजवादी एजेंडे संविधान में निर्देशित सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी हो रहा था।
इसके जवाब में 25वें संविधान संशोधन को एक बड़ा झटका माना गया जिसने मौलिक अधिकारों को छीन लिया। इंदिरा गांधी ने नौवीं अनुसूची में कई चीजें शामिल कीं। राष्ट्रीयकरण, मुद्रा नियंत्रण, भूमि सीलिंग, किराये पर नियंत्रण, एकाधिकार को विनियमित करने और यहां तक कि उसकी लोकसभा सीट की रक्षा करने के लिए 124 कानून इसमें शामिल हुए। उन्होंने कहा था कि हमें इसके लिए सतर्क रहना चाहिए कि प्रगति में संविधान के नाम पर कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।
इंदिरा सरकार ने संविधान में इतनी बार संशोधन किया कि उच्चतम न्यायालय ने 1967 में गोलक नाथ मामले में मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की संसद की क्षमता को सीमित कर दिया। कोर्ट के फैसले के प्रतिक्रिया स्वरूप सरकार ने संविधान में संशोधन करने के अधिकार को हासिल करने के लिए अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया में संशोधन किया।
3. लोकतांत्रिक संरचना
संविधान के तहत प्रत्येक राज्य को अपनी जनसंख्या के अनुपात में विधायी सीटें प्राप्त हों। इसके तहत प्रत्येक जनगणना के बाद सीटों के निर्धारण की परिकल्पना की गई। 42वें संविधान संशोधन के तहत 1971 की जनगणना के आधार पर प्रति राज्य निर्वाचन क्षेत्रों को फ्रीज कर दिया गया और 42वें संशोधन ने 1971 की जनगणना के आधार पर प्रति राज्य निर्वाचन क्षेत्रों को फ्रीज कर दिया। 2001 की जनगणना के बाद तक सीटों के संशोधन को निलंबित कर दिया था। 2002 में 84वें संशोधन के माध्यम से संसद ने एक बार फिर 2031 की जनगणना तक इस समस्या को स्थगित कर दिया। भारतीय अब भी आधी सदी पहले हुई जनगणना के आंकड़ों के आधार पर तय किए गए निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करते हैं। तमिलनाडु के संसद सदस्यों के पास प्रति लोकसभा सीट पर 18 लाख मतदाता है। वहीं यूपी में औसतन प्रति लोकसभा सीट 30 लाख मतदाता हैं। इसके चलते राजनीतिक प्रतिनिधित्व में एक बड़ी विषमता पैदा हुई है और यह भविष्य में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बहस होगी।
4. आरक्षण की फिर से व्याख्या
मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद 1990 के दशक में भी आरक्षण का बोलबाला रहा। वीपी सिंह सरकार ने 1992 में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए मौजूदा 22.5 फीसदी आरक्षण के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सभी सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी कोटा निर्धारित किया। इसे चुनौती देने पर उच्चतम न्यायालय ने माना की आरक्षण नीति संवैधानिक रूप से सही है। लेकिन कहा कि सभी सरकारी नौकरियों मे आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता।
बाद में संबंधित संशोधनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई बाधाओं को पलट दिया। इनमें 77वें संशोधन के आधार पर आरक्षित वर्ग में पदोन्नति की अनुमति, 82वें संशोधन के तहत एक अलग श्रेणी के रूप में अपूर्ण रिक्त पदों में बैकलॉग और 85वें संशोधन के तहत आरक्षण के नियम के मुताबिक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों की पदोन्नति शामिल है। वंचित समूहों के लिए आरक्षण की अवधारणा समानता और विरोधी भेदभाव के मूल में थी जबकि हाल के संशोधनों की आलोचना की गई। एक दूसरी प्रवृत्ति उन समूहों को जोड़ने की है जो ऐतिहासिक रूप से वंचित नहीं हैं। मोदी सरकार ने 103वें संशोधन के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण जोड़कर मंडल आयोग की सीमाओं को तोड़ा है। जबकि संविधान निर्माताओं ने सदियों पुरानी जाति उत्पीड़न को खत्म करने के प्रावधान बनाए थे।
5. व्याख्या के जरिए संशोधन
संसद द्वारा संशोधन करना ही संविधान बदलने का एकमात्र तरीका नहीं है। कई बार यह न्यायपालिका द्वारा व्याख्या के माध्यम से भी किया जाता है। उदाहरण के लिए शीर्ष कोर्ट ने स्वच्छ पर्यावरण, आजीविका, भोजन, पानी, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ वायु, शिक्षा, चिकित्सा देखभाल, आश्रय और गोपनीयता के अधिकार की व्याख्या कर मौलिक अधिकारों को बढ़ाया है। लेकिन इसके लिए कोर्ट हमेशा खुद ज्यादा उत्साह नहीं दिखाता है। हालांकि, स्व-हित का सबसे बड़ा मामला अनुच्छेद 124 और 217 की पुनव्र्याख्या है। जो न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को रेखांकित करता है, जिससे राष्ट्रपति को न्यायपालिका के परामर्श से न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति मिलती है।
1993 में शीर्ष कोर्ट ने परामर्श की पुनव्र्याख्या की। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को एक बाध्यकारी सिफारिश करने की शक्ति वाले वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक कॉलेजियम की स्थापना की। लेकिन मोदी सरकार ने कॉलेजियम प्रणाली में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से निपटने के लिए 99वें संशोधन के जरिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) बनाया। इसके जरिए जजों को चुनने के लिए एक आयोग बनाया गया जिसमें चुने हुए प्रतिनिधि और अन्य प्रतिष्ठित लोग शामिल थे। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने 99वें संशोधन और एनजेएसी ऐक्ट को आधारभूत संरचना का उल्लंघन करने वाला बताते हुए इसे असंवैधानिक ठहरा दिया।
जिन परिस्थितियों के चलते 104 औपचारिक संशोधन हुए और व्याख्या द्वारा सैकड़ों संशोधन किए गए वे निराशाजनक हो सकते हैं। लेकिन संसद और न्यायपालिका द्वारा कई हमलों के बावजूद संविधान सात दशकों से हमारा साथ दे रहा है। एक भारतीय के रूप में इस लंबे और अपूर्ण दस्तावेज के सभी प्रक्रियात्मक विवरणों को हमेशा नहीं जाना जा सकता। यह कि वे राजनीतिक द्वेष के आधार पर शासित नहीं हैं, बल्कि संविधान के शब्द हैं। लेकिन वे जानते हैं कि वे राजनीतिक द्वेष से नहीं, बल्कि संविधान से संचालित होते हैं। और यही हमें गणतंत्र दिवस मनाने की प्रेरणा देता है।
क्या
पूरे देश में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में युवा संविधान की प्रति हाथों में लिए शामिल हो रहे हैं। इस दस्तावेज ने 104 संशोधन देखें हैं और इससे इसका लोकाचार बदल गया है।
कैसे
ये संशोधन आमतौर पर संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए लागू नहीं किए गए थे। इसके बजाय वे मौलिक अधिकारों से दूर हो गए और लोकतांत्रिक ढांचे को कुछ हद तक बदल दिया।
लेकिन
तमाम संशोधनों के बावजूद संविधान सात दशकों से हमारा साथ दे रहा है। और लोग जानते हैं कि वे संविधान के शब्दों द्वारा संचालित हो रहे हैं।
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ऐसे बना संविधान
- 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में देश का संविधान तैयार हुआ
- 02 भाषाओं हिंदी और इंग्लिश में संविधान की मूल प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखी, कॉपी हस्तलिखित और कैलीग्राफ्ड थी
- 06 महीने की अवधि में लिखे गए संविधान में टाइपिंग या प्रिंट का इस्तेमाल नहीं किया गया
- 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे संविधान लागू होने के समय
- 284 सदस्य थे इस संविधान को बनाने वाली समिति में, जिन्होंने 24 नवंबर 1949 को संविधान पर दस्तखत किए थे। इसमें से 15 महिला सदस्य थीं
- - 395 अनुच्छेद वाला हमारा पूरा संविधान हाथ से लिखा गया था
- - भारतीय संविधान की पांडुलिपि एक हजार से ज्यादा साल तक बचे रहने वाले सूक्ष्मजीवी रोधक चर्मपत्र पर लिखकर तैयार की गई है। पांडुलिपि में 234 पेज हैं जिनका वजन 13 किलो है।
ऐसे हुई शुरुआत
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। इसके ठीक दो महीने बाद यानि 26 जनवरी 1950 को ये देश में लागू भी कर दिया गया। 9 दिसंबर, 1946 को संविधान निर्माण के लिए पहली सभा संसद भवन में हुई थी, जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था। वहीं, डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था।
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