राजस्थान: सरकारी शिक्षकों पर उठ रहे सवाल, स्टूडेंट से ज्यादा टीचर, फिर भी छात्र फेल
राजस्थान बोर्ड के 12वीं साइंस के रिजल्ट ने कुछ सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में शिक्षा की पुख्ता व्यवस्था के दावों के बीच कई स्कूलों के रिजल्ट 25 से 30 प्रतिशत तक...
राजस्थान बोर्ड के 12वीं साइंस के रिजल्ट ने कुछ सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में शिक्षा की पुख्ता व्यवस्था के दावों के बीच कई स्कूलों के रिजल्ट 25 से 30 प्रतिशत तक रहे. वहीं एक स्कूल का रिजल्ट तो शून्य रहा। बता दें कि कोटा जिले के कैथूदा सीनियर सेकंडरी स्कूल में साइंस का रिजल्ट सिर्फ 25 फीसदी रहा। यहां 12वीं साइंस में 4 में से 3 छात्र फेल हो गए।
मिली जानकारी के अनुसार इस स्कूल में 11वीं और 12वीं में कुल 11 स्टूडेंट हैं। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए पांच फर्स्ट ग्रेड टीचर हैं. इन टीचर को औसत वेतन करीब 60 हजार रुपए मासिक मिलता है। यानी साल भर में सिर्फ शिक्षकों के वेतन पर 36 लाख खर्च होता है। बावजूद इसके 4 में से 3 छात्र फेल होने से सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े होना लाज़मी है।
कैथूना सरकारी स्कूल के छात्राओं की मार्कशीट भी चौंकाने वाली है। 12वीं में 5 सब्जेक्ट के 100 नंबर के पेपर हैं। प्रैक्टिकल सब्जेक्ट में थ्योरी के 56 सेशनल के 14 और प्रैक्टिकल के 30 नंबर होते हैं। वहीं अन्य सब्जेक्ट में थ्योरी के 80 और सेशनल के 20 नंबर होते है। कैथूदा स्कूल की एक छात्रा 2 विषयों में फेल है।
उसे इंग्लिश पेपर में कुल 21 नंबर मिले हैं, जिसमें थ्योरी में केवल एक नंबर और सेशनल में 20 नंबर मिले हैं। वहीं मैथ्स में कुल 28 नंबर मिले हैं। जिसमें थ्योरी में 8 और सेशनल में 20 नंबर प्राप्त हुए हैं। इस छात्रा को कुल मिलाकर 500 में से 190 नंबर हासिल हुए हैं। दूसरी छात्रा को कुल मिलाकर 200 नंबर मिले हैं। ये दोनों छात्राएं 2 विषयों में फेल हैं।
किराए के भवन में टिनशेड के नीचे लगती है क्लास
इसके साथ ही किशोरपुरा का सेकंडरी स्कूल 1947 से किराए के भवन में चल रहा है। जेठिया का अखाड़ा परिसर में स्थित इस स्कूल में पर्याप्त कमरे न होने से पेड़ या टीनशेड के नीचे क्लास लगती है। कोटा के इस स्कूल की खबर तो बानगी भर है। प्रदेश की सरकारी स्कूलों की क्या स्थिति है. इसको लेकर कहने की जरुरत नहीं है। प्रदेश की शिक्षा विभाग को सरकार बदलते ही पाठ्यक्रम बदलने की फुर्सत मिले। तो शिक्षकों पर ध्यान दे, जिससे बच्चों की पढ़ाई की स्थिति में सुधार लाया जा सके।
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