नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 फॉर्मूला गलत नहीं, पर लागू करने की योजना नहीं: सिसोदिया
New Education Policy 2020: नई शिक्षा नीति के तहत 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा। उसमें बदलाव लाकर उसके महत्व को कम किया जाएगा। इसके अलावा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के...
New Education Policy 2020: नई शिक्षा नीति के तहत 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा। उसमें बदलाव लाकर उसके महत्व को कम किया जाएगा। इसके अलावा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत देश भर के विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए एक कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा। हालांकि यह विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य नहीं होगा। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी ( National Testing Agency - NTA ) यह परीक्षा कराएगी। अब सवाल उठता है कि अगर उच्च शिक्षा के लिए एनटीए कॉमन एंट्रेस टेस्ट करवा रहा है तो क्या 12वीं बोर्ड परीक्षा खत्म कर देना चाहिए? इस प्रश्न का जवाब देते हुए दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी मूल्यांकन की व्यवस्था है। हमें मूल्यांकन करना नहीं आया। उसका खामियाजा क्या हुआ कि परीक्षा में जो आया उसी हिसाब से पढ़ाई होगी। अभी जो साल के अंत में परीक्षा होती है उसमें रटंत शिक्षा को आगे बढ़ाती है। हमें सतत मूल्यांकन की व्यवस्था को अपनाना होगा। शिक्षा नीति ने बस यही बदलाव किया है अब एक के बजाए दो पार्ट में बोर्ड परीक्षा होगी। बोर्ड परीक्षा के बाद भी आप आगे पढ़ाई के लिए तैयार हैं कि नहीं एनटीए देना होगा। मेरा मानना है कि ये सो कॉल्ड बोर्ड परीक्षा खत्म होनी चाहिए और सतत मूल्यांकन की व्यवस्था हो। हाल यह है कि बोर्ड परीक्षा देने के बाद भी बच्चे को एनटीए देना होगा। अगर एनटीए देना है, तो बोर्ड परीक्षा की जरूरत नहीं है।
शिक्षा नीति से क्या वास्तव में बदलाव आएगा? इसे लेकर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया से वरिष्ठ संवाददाता बृजेश सिंह और सज्जन चौधरी ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं अन्य प्रमुख अंश…
प्रश्न: आपने फिनलैंड के शिक्षा मॉडल को नजदीक से देखा है। वहां पर फॉर्मल शिक्षा 7 साल की उम्र में शुरू होती है। नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 का जो फार्मूला है। उसमें तीन साल में यह शुरू हो जाता है। आपको क्या लगता है कि इसमें उम्र को लेकर थोड़ी राहत मिलनी चाहिए थी।
उत्तर: मैं फिलहाल इसे गलत नहीं मानता हूं, मगर यह कैसे लागू करेंगे यह देखना होगा। मैंने फिनलैंड, जापान, चाइना सिंगापुर के शिक्षा मॉडल को देखा है। जिसे हम फाउंडेशन लर्निंग कह रहे हैं, उसे वे अर्ली चाइल्डहुड लर्निंग कहते हैं। जब बच्चा सात साल का होगा तब वह कहते हैं स्कूल जाएगा। स्कूल से पहले ये देश बच्चों को पढ़ना नहीं सिर्फ एक्टिविटी सिखाते हैं। वहां एबीसीडी नहीं पढ़ाते हैं। हमारे यहां यह नर्सरी से शुरू हो जाता है। अब हमें यह देखना होगा कि हमारी शिक्षा नीति में फाउंडेशन लर्निंग को लागू कैसे करते हैं। शिक्षा नीति में यह खामी है इसे लागू कैसे करेंगे। यही समझ में नहीं आता है।
प्रश्न: देश में 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव हो रहा है। आप सफल शिक्षा मॉडल वाले राज्य के शिक्षा मंत्री है। आप इससे कितना सहमत हैं।
उत्तर: इसमें कुछ चीजें अच्छी हैं। इसमें वह सब बातें हैं, जो शिक्षा पर बात होते समय कही जाती है। मगर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति से किसी की अपेक्षा यह नहीं है कि शिक्षा की अच्छी बातें एक जगह एकत्रित करके रखें। नीति का मतलब है कि शिक्षा की जो अच्छी बाते हैं उसे लागू कैसे करेंगे। मगर इसमें शिक्षा नीति की अच्छी बातों को लागू करने का खाका रखा ही नहीं गया है। सरकार को यह तय करना पड़ेगा की आप देश को सरकारी स्कूल के जरिए बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं या फिर निजी स्कूलों के माध्यम से। हमारी जो शिक्षा नीति आई है उसमें सरकारी स्कूल पूरी तरह से गायब हैं। वहीं, निजी स्कूल को कहा जाता है कि उसे एनकरेज करेंगे। इसका मतलब साफ है कि वह सरकारी स्कूल के बजाए निजी स्कूलों के जरिए शिक्षा नीति को आगे ले जाना चाहते हैं।
प्रश्न: शिक्षा नीति में कहा गया है कि केंद्र सरकार शिक्षा में सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी खर्च करेगी, जो अभी 4.43 फीसदी है। फिर भी आपको क्यों लगता है कि यह निजी स्कूल के जरिए बढ़ाया जाएगा।
उत्तर: शिक्षा पर 6 फीसदी खर्च करने की बात पहली बार नहीं कही गई है। 1966 में कोठारी कमीशन ने कहा, फिर 1986 में बदलाव किया गया तब कहा गया। अब 2020 में फिर कहा जा रहा है। इसलिए मैंने कहा ना कि नई शिक्षा नीति में हमें पुरानी गलतियों से सबक सीखना होगा। यह नहीं करेंगे तो 30 साल बाद भी कोई नीति बना रहा होगा तब भी यही बात होगी। जब हमारी केंद्र के साथ बैठक हुई तो मैंने यही कहा था कि सिर्फ 6 फीसदी खर्च से कुछ नहीं होगा। शिक्षा पर न्यूनतम बजट खर्च करने का कानून होना चाहिए। जब तक कानून नहीं बनेगा तब तक कोई राज्य व केंद्र इसे मानने को तैयार नहीं है। शिक्षा नीति की अच्छी-अच्छी बात को लागू करने के लिए पैसा चाहिए। आज भी हम उतने ही पैसे की बात कर रहे हैं जो 1966 में कही गई थी। इसलिए मेरा कहना है कि अगर देश में न्यूनतम राजकोषीय घाटा तय करके कानून बनाया जा सकता है तो शिक्षा बजट के लिए क्यों नहीं बनाया जा सकता है।
प्रश्न: ग्लोबल एजुकेशन की बात करते हैं तो आपको क्या लगता है कि हम इस शिक्षा नीति में कहां पीछे रह गए हैं। केंद्र को इसपर दोबारा विचार करना चाहिए।
उत्तर: पहला, सरकार को शिक्षा बजट पर राज्यों के लिए न्यूनतम बजट तय करके कानून बनाना चाहिए, इसके लिए विकसित देशों से सीखना चाहिए। दूसरा, शिक्षा नीति का हमें लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए की हम सारे बच्चों को सरकारी स्कूलों के माध्यम से गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा देंगे। अगर हम शिक्षा नीति में यह नहीं दे पा रहे हैं तो जो व्यवस्था अब चल रही है वह आगे भी चलती रहेगी। अच्छी बातें करना बहुत अच्छी बात है, मगर उसे करेंगे कैसे। यह पार्ट इस नीति से गायब है। इसमें एक अच्छी बात है फाउंडेशन लर्निंग (नर्सरी, केजी, 1, क्लास), समान शिक्षा। मगर फिर कहते हैं कि इसके लिए वह आंगनबाड़ी केंद्र व प्राइमरी शिक्षा में लगे लोगों की मदद लेंगे। अब आंगनबाड़ी वर्कर पढ़ाएंगी, वहीं, दूसरी ओर निजी स्कूल में एक प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ाएगा तो दोनों में कितना अंतर होगा सबको पता है। आंगनबाड़ी वर्कर का काम अच्छा खाना खिलाना, देखभाल करना है। उसका काम शिक्षण नहीं है। यही इस पॉलिसी की खामियां हैं।
प्रश्न : त्रि भाषा फार्मूला को लेकर आपकी क्या राय है। जब सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी की अलग से कक्षाएं चल रही हैं। अभिभावक अपने बच्चों को वैकल्पिक विषय के रूप में विदेशी भाषाएं पढ़ा रहे हैं। उस दौर में कक्षा पांच तक स्थानीय भाषा या मातृभाषा में पढ़ाई कराने के लिए बाध्य करना कितना सही मानते हैं।
उत्तर: वैश्विक स्तर पर आपको आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी बहुत जरूरी है। मगर मेरा मानना है कि ये अप्रोच अच्छी है कि फाउंडेशन ईयर में हम स्थानीय व मातृभाषा का प्रयोग कर रहे हैं। नर्सरी, प्राइमरी बच्चों के लिए सिर्फ सीखने का समय होता है। एक बार वह सीखना सीख गया तो अंग्रेजी भी उसके लिए आसान हो जाएगा। यह प्रयोग पहली बार नहीं हो रहा है। जितने भी नॉन इंग्लिश स्पीकिंग देश हैं, वहां इस तरह के प्रयोग कई वर्षों पहले हो चुके हैं। अगर हमने बच्चे को स्थानीय भाषा में सीखना सिखा दिया तो उसकी लर्निंग क्षमता काफी बढ़ जाती है। वह आगे जाकर बेहतर सीख और समझ सकता है।
प्रश्न: नई शिक्षा नीति क्या शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। ऐसे में क्या निम्न वर्गीय परिवार शिक्षा से और दूर हो जाएगा।
उत्तर: दुर्भाग्यवश हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था निजीकरण को बढ़ावा देने वाली है। नई शिक्षा नीति से अपेक्षा थी कि यह निश्चित करेगा की शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है। मगर इस शिक्षा नीति में यह होता नहीं दिख रहा है।
प्रश्न: शिक्षा नीति में ड्रापआउट खत्म करने को लेकर एक लिंग समावेधी समिति का गठन किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 17 फीसदी लड़कियां स्कूल ही छोड़ देती हैं। क्या लगता है इस नीति से ड्रापआउट कम होगा।
उत्तर: आप सिर्फ कहीं लिख दो कि ड्रापआउट कम करेंगे। इससे काम नहीं चलेगा। आप इसे कैसे करोगो, ये बताना होगा।
प्रश्न: कोरोना महामारी के दौर में क्या ऑनलाइन शिक्षा स्कूल का विकल्प बन पाएगी?
उत्तर: जब हमने इसकी शुरुआत की थी तब हमें भी बहुत डर लगता था। मगर जब मैंने इसकी समीक्षा की तो पाया कि आज 70-80 फीसदी बच्चों के पास संसाधन हैं। 10 फीसदी के करीब ऐसे हैं जिनके पास मोबाइल है पर ऑनलाइन के लिए संसाधन नहीं है। हम सेमी ऑनलाइन की व्यवस्था कर रहे हैं। हम उनके अभिभावक को बुलाकर हार्ड कॉपी दे रहे हैं। शिक्षक फोन पर सीधे संपर्क में हैं। करीब 10-15 फीसदी लोग ऐसे हैं जो माइग्रेट कर गए हैं। वह बताए पते पर नहीं मिल रहे हैं। उनके मोबाइल नंबर बंद हैं। इसमें बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो छठी कक्षा में है।
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पांच बड़ी बातें जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल करना चाहते हैं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया
1. शिक्षा नीति की पहली जिम्मेदारी तय हो कि शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है।
2. फाउंडेशन लर्निंग की शिक्षा के लिए शिक्षकों का पूरा कैडर तैयार करने की कार्ययोजना बने।
3. शिक्षक जो स्कूल चला रहे हैं, उनके अधिकार बढ़ाकर फैसले लेने की आजादी देनी होगी।
4. वोकेशनल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को डीयू, यूपीएससी जैसी परीक्षा में बैठने की छूट।
5. शिक्षा नीति में किस काम को कब तक करना है इसपर लक्ष्य व कार्ययोजना भी बनानी होगी।
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