Hindi Newsकरियर न्यूज़New Education Policy 2020: Discontinuation of MPhil and Welcome to Disagreement

नई शिक्षा नीति 2020: एमफिल को समाप्त करने का कहीं स्वागत तो कहीं असहमति

नई शिक्षा नीति में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। इनमें से एक है एमफिल को समाप्त करना। एमफिल को समाप्त करने को लेकर राजधानी के केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है...

Anuradha Pandey प्रमुख संवाददाता, नई दिल्लीFri, 31 July 2020 07:44 AM
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नई शिक्षा नीति में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। इनमें से एक है एमफिल को समाप्त करना। एमफिल को समाप्त करने को लेकर राजधानी के केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है कि एमफिल का महत्व उतना अधिक नहीं है जितना पीएचडी का। एमफिल करने के बाद भी छात्र पीएचडी के लिए ही नामांकन कराता है। वहीं कुछ प्रोफेसर एमफिल को शोध से पहले का एक बेहतरीन प्रशिक्षण मानते हैं। वहीं एमफिल कर चुके या एमफिल करने वाले छात्र इसकी वैधता को लेकर चिंतित हैं। उन्हें यह चिंता है कि आगे उनकी डिग्री को कितनी मान्यता मिलेगी। इसके आधार पर उनको नौकरी में सुविधा होगी कि नहीं। 

एमफिल हटाना गलत: 
जेएनयू में हिंदी के प्राध्यापक डॉ.गंगा सहाय मीणा का कहना है कि एमफिल को खत्म करने का फैसला गलत है। एमफिल में शोधार्थी की ट्रेनिंग हो जाती है, वह शोध करना सीखता है। इसलिए भारत जैसे देश में, जहां शोध का स्तर काफी खराब है, एमफिल होना जरूरी है। एमफिल खत्म करने से पहले सरकार सुनिश्चित करे कि स्नातक चौथे वर्ष और स्नातकोत्तर में शोध की थोड़ी ट्रेनिंग हो जाए। डीयू में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. बिपिन तिवारी का कहना है कि एमफिल हटाने के निर्णय को मैं उचित नहीं मानता। न केवल सोशल साइंस के विषय बल्कि अन्य विषयों के छात्र सीधे एमए करके यदि शोध करने के लिए आते हैं तो उनको रिसर्च मेथोडोलॉजी में दिक्कत होती है। एमफिल उनको बेहतर शोध के लिए तैयार करता है। 

एमफिल का अंत स्वागत योग्य कदम : 
डीयू में हिंदी के प्रोफेसर चंदन चौबे का कहना है कि नई शिक्षा नीति के बदलाव स्वागत योग्य हैं। एमफिल को हटाना भी एक स्वागत योग्य कदम है। इससे समय की बर्बादी होती थी। बाद में पीएचडी के लिए छात्र को कोर्स वर्क करना होता है ऐसे में एमफिल बहुत फायदेमंद नहीं था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एक प्रोफेसर का कहना है कि एमफिल के बाद भी छात्र पीएचडी के लिए ही आवेदन करता है। छात्र का लक्ष्य अंतत: पीएचडी ही होता है। इसलिए इसे हटाने का फैसला स्वागत योग्य है। डीयू में ही हिंदी विभाग से एमफिल कर रहे छात्र साहिल ने एमफिल हटाने के फैसले का स्वागत किया है लेकिन साथ में यह चिंता भी जाहिर की है हमारी डिग्री का क्या होगा। या जिन लोगों ने एमफिल की डिग्री पूरी कर ली है अब उनकी डिग्री मान्य होगी कि नहीं। 

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