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नई शिक्षा नीति: 1.5 लाख बीपीएड-डीपीएड बेरोजगारों को जगी उम्मीद

नई शिक्षा नीति से प्रदेशभर के 1.5 लाख से अधिक बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन), डीपीएड (डिप्लोमा इन फिजिकल एजुकेशन) और सीपीएड (सर्टिफिकेट इन फिजिकल एजुकेशन) बेरोजगारों में उम्मीद जगी है। नई नीति के...

Alakha Ram Singh वरिष्ठ संवाददाता, प्रयागराजFri, 7 Aug 2020 06:54 PM
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नई शिक्षा नीति से प्रदेशभर के 1.5 लाख से अधिक बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन), डीपीएड (डिप्लोमा इन फिजिकल एजुकेशन) और सीपीएड (सर्टिफिकेट इन फिजिकल एजुकेशन) बेरोजगारों में उम्मीद जगी है। नई नीति के मुताबिक अब खेल, कला, संगीत, शिल्प, योग और सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम (को-करिकुलर) या अतिरक्त पाठ्यक्रम (एक्स्ट्रा-करिकुलर) की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। इससे शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षित बेरोजगारों को लग रहा है कि कक्षा एक से आठ तक के स्कूलों में उनकी नियुक्ति का रास्ता खुलेगा।

वर्तमान में केवल 100 से अधिक छात्रसंख्या वाले परिषदीय उच्च प्राथमिक स्कूलों में शारीरिक शिक्षा विषय के अनुदेशक नियुक्त हैं। 100 से कम छात्रसंख्या वाले स्कूलों में भी शारीरिक शिक्षा विषय के 32022 अनुदेशकों की नियुक्ति प्रक्रिया 19 सितंबर 2016 को शुरू हुई थी जो कानूनी विवाद में उलझने के कारण अब तक पूरी नहीं हो सकी है। इस भर्ती के लिए 1.54 लाख बीपीएड, डीपीएड और सीपीएड अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। ये बेरोजगार नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत शारीरिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए छह साल से आंदोलन कर रहे हैं। 

बीपीएड संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष पंकज यादव का कहना है कि एक सितंबर 2015 को विधानसभा के सामने प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज में कई बेरोजगार घायल हुए थे। प्रदर्शन कर रहे 101 अभ्यर्थियों को 39 दिन जेल की सजा काटनी पड़ी। लेकिन आज तक हम सात रुपये प्रतिमाह मानदेय पर अंशकालिक अनुदेशक की नौकरी नहीं पा सके हैं।

बीपीएड संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष धीरेन्द्र यादव का कहना हैै कि नई शिक्षा नीति में खेल व योग को भी पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। उम्मीद करते हैं कि सरकार खेल या शारीरिक शिक्षा विषय के शिक्षकों की नियुक्ति परिषदीय विद्यालयों में करेगी। यह सवाल हम हमेशा से पूछते रहे हैं कि जब नौकरी नहीं देनी थी तो ये पाठ्यक्रम चलाया ही क्यों जा रहा हैं।

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