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NEET और JEE Main छात्रों की राह होगी आसान, यूपी, बिहार, राजस्थान, एमपी समेत विभिन्न बोर्डों के तौर-तरीके बदलने की तैयारी

शिक्षा मंत्रालय ने पाया है कि देश के विभिन्न बोर्डों के परिणामों, छात्रों के प्रदर्शन और पास प्रतिशत में बड़ा अंतर है। कहा गया है कि बोर्डों को सिंगल बोर्ड में लाने से छात्रों को मदद मिल सकती है।

Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 31 May 2023 01:09 PM
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केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पाया है कि देश के विभिन्न बोर्डों के कक्षा 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणामों, छात्रों के प्रदर्शन और पास प्रतिशत में बड़ा अंतर है। मंत्रालय ने छात्रों के लिए समान अवसर नहीं होने जैसी चुनौतियों की पहचान की है। शिक्षा मंत्रालय ने अपने अध्ययन में इस बात को भी नोट किया है कि शीर्ष पांच बोर्ड ( यूपी बोर्ड UP Board, सीबीएसई CBSE, महाराष्ट्र बोर्ड, बिहार बोर्ड Bihar Board और पश्चिम बंगाल बोर्ड) में लगभग 50 प्रतिशत छात्र आते हैं और शेष 50 प्रतिशत छात्र देशभर के 55 बोर्ड में पंजीकृत हैं। अध्ययन में कहा गया है कि छात्रों के प्रदर्शन में अंतर विभिन्न बोर्ड द्वारा अपनाए गए विभिन्न स्वरूप के कारण हो सकते हैं और एक राज्य में 10वीं और 12वीं के बोर्ड को सिंगल बोर्ड में लाने से छात्रों को मदद मिल सकती है।

शिक्षा मंत्रालय के मूल्यांकन में यह भी पाया गया कि बोर्ड द्वारा अपनाए जाने वाले अलग-अलग सिलेबस के चलते राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के लिए बाधाएं उत्पन्न हुई हैं। स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार के अनुसार, विभिन्न राज्यों के पास प्रतिशत में अंतर के कारण शिक्षा मंत्रालय अब देश के विभिन्न राज्यों के सभी 60 स्कूल बोर्ड के लिए मूल्यांकन स्वरूप को मानकीकृत (standardising assessment pattern ) करने पर विचार कर रहा है।
    
वर्तमान में, भारत में तीन केंद्रीय बोर्ड हैं - केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ( CBSE ), काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशंस (सीआईएससीई) और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ओपन स्कूलिंग ( NIOS )। इनके अलावा, विभिन्न राज्यों के अपने राज्य बोर्ड हैं, जिससे स्कूल बोर्ड की कुल संख्या 60 हो गई है।

रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य बोर्ड केंद्रीय बोर्डों के साइंस के सिलेबस को फोलो कर सकते हैं ताकि छात्रों को जेईई मेन ( JEE Main ) और नीट ( NEET ) जैसी बड़ी कॉमन प्रवेश परीक्षाओं के लिए समान अवसर मिले। स्टैंडर्डाइजिंग के प्रयास के पीछे दूसरा कारण कक्षा 10वीं के बाद ड्रॉपआउट को रोकना है। रिपोर्ट में कहा गया है, "10वीं कक्षा के 45 लाख छात्र 11वीं कक्षा तक नहीं पहुंच रहे हैं, 27.5 लाख छात्र फेल हो रहे हैं और 7.5 लाख छात्र परीक्षा में शामिल नहीं हो रहे हैं।"

इसमें कहा गया है कि ड्रॉपआउट में अधिकतम 85 प्रतिशत का योगदान यूपी, बिहार, एमपी, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और छत्तीसगढ़ सहित 11 राज्यों से है।

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