गणित से बच्चों को डराएं नहीं, खेल-खेल में ऐसे पढ़ाएं
गणित का डर बच्चों के दिमाग पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो इससे दूर भागने लगते हैं। घर और स्कूल में वे इससे पीछा छुड़ाने में लगे रहते हैं। इससे वे गणित फोबिया से ग्रसित हो जाते हैं। लेकिन, देशभर के तम
गणित का डर बच्चों के दिमाग पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो इससे दूर भागने लगते हैं। घर और स्कूल में वे इससे पीछा छुड़ाने में लगे रहते हैं। इससे वे गणित फोबिया से ग्रसित हो जाते हैं। लेकिन, देशभर के तमाम प्रिंसिपल और शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि खेल-खेल में पढ़ाने और कंसेप्ट स्पष्ट करने से शिक्षक बच्चों का यह डर दूर कर सकते हैं।
एसोसिएशन ऑफ इंडियन प्रिंसिपल और मैटिफिक द्वारा आयोजित वेबिनार में गुरुवार को जीडी गोयनका स्कूल, इंदिरापुरम की प्रिंसिपल तरुणा कपूर, द श्रीराम यूनिवर्सल स्कूल पालवा की प्रिंसिपल राधिका श्रीनिवासन और मैटिफिक इंडिया के चीफ बिजनेस ऑफिसर साहिल कपूर ने इस पर अपनी राय रखी और अपने अनुभव भी साझा किए। वेबिनार में प्राइमरी के छात्रों के बीच गणित का फोबिया, इसके दीर्घकालिक प्रभाव और इससे लड़ने में मदद पर चर्चा की गई।
बच्चों से ज्यादा अपेक्षा करना गलत
कार्यक्रम का संचालन कर रहीं स्किल एंड रिफॉर्म प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक चेतना सबरवाल के सवाल पर तरुणा कपूर ने कहा कि स्कूल में गणित की कक्षा शुरू होते ही कई बच्चे बहाना बनाने लगते हैं। ऐसे बच्चों का डर प्रोत्साहन, धैर्य और नवाचार के जरिये दूर किया जा सकता है। उन्हें खेल-खेल में सिखाने की जरूरत है। उनमें जोश भरना होगा कि वे यह कर सकते हैं। हम करेंगे और नहीं करने का कोई कारण ही नहीं है। सकारात्मक सोच, धैर्य और रचनात्मक कार्य के जरिये उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। एक बच्चे की दूसरे से तुलना नहीं करें और दबाव नहीं डालें। अभ्यास करने से बदलाव आने लगेगा। अच्छा माहौल देंगे तो उनका डर निकल जाएगा। बच्चों से ज्यादा अपेक्षा करना अपराध है।
छात्र हितैषी होना होगा
राधिका श्रीनिवासन ने कहा कि बच्चों में इस तरह की समस्या घर से ही शुरू हो जाती है, जब परिजन ही कहते हैं कि गणित पढ़ना मुश्किल है। यह बहुत आम है। ऐसे में डिजिटल टूल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), और खेल-खेल में पढ़ाई बच्चों के लिए काफी मददगार साबित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि फोबिया बड़ों में भी होता है। हमें शिक्षक के रूप में छात्र हितैषी होना होगा। अच्छा व्यवहार करके और प्यार से उन्हें सिखाना होगा। फोबिया से निपटने के लिए हमेशा आकलन करते रहना होगा। राधिका ने मैथ का मतलब समझाया। कहा एम-मीनिंग ऑफ कंसेप्ट को समझना होगा। ए-एडॉप्ट टीचिंग एंड लर्निंग, टी-ट्रेंड योरसेल्फ एंड टीचर और एच-हैव फेथ एंड पेशेंस।
ओलंपियाड में सभी भाग लें
साहिल कपूर ने कहा कि हमें चौतरफा ध्यान देना होगा। खेल-खेल में पढ़ाई परिणाम में भी मदद करते हैं। औसत से नीचे वाले बच्चे गणित कक्षा में फंसा महसूस करते हैं। उनका मूल्यांकन करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को अपने विचार साझा करने देना चाहिए। साहिल ने कहा ओलंपियाड में एक कक्षा से पांच ही नहीं बल्कि सभी छात्रों को भाग लेना चाहिए। इसके बाद शिक्षक भी सभी बच्चों की रिपोर्ट रखे। पीपीटी भी इसके लिए मददगार साबित होता है।
गणना में तेज होना काफी नहीं
चेतना सबरवाल ने कहा कि कई बच्चे गणना में बहुत तेज होते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वह बहुत अच्छा शिक्षक या गणितज्ञ है। कई बार बच्चों को उनके अभिभावक या दादा-नाना टेबल (पहाड़े) सिखा देते हैं। यह कुछ हद तक मदद कर सकता है लेकिन गणित सीखने के लिए यही काफी नहीं है।
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