Ambedkar Jayanti Speech : बाबासाहेब अंबेडकर जयंती पर दें यह छोटा और सरल भाषण
Ambedkar Jayanti Speech : अंबेडकर जयंती पर स्कूल, कॉलेज, विभिन्न कार्यालयों, सार्वजनिक जगहों पर कार्यक्रम होते हैं। अगर आप इन कार्यक्रमों में भाषण देने जा रहे हैं तो नीच दी गई स्पीच से उदाहरण ले सकते
Ambedkar Jayanti Speech: 14 अप्रैल को भारतीय संविधान के निर्माता व शिल्पकार और देश के दलितों एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के मसीहा डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती है। बाबासाहेब के नाम से मशहूर अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन भारतीय समाज के पिछड़े वर्गों, दलितों और गरीबों के उत्थान के लिए न्योछावर कर दिया। वह एक प्रख्यात अर्थशास्त्री, कानूनविद और राजनेता थे। उन्होंने सिर्फ सामाजिक न्याय व सामाजिक असमानता के खिलाफ ही लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि उन्होंने महिला सशक्तिकरण, महिलाओं को बराबरी का अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण, यूनिफॉर्म सिविल कोड, मौलिक दायित्व की भी बात की। बाबासाहेब कहा करते थे कि किसी समाज की प्रगति मैं उस समाज में महिलाओं की प्रगति से आंकता हूं। अपने प्रगतिशील विचारों के चलते वह आज करोड़ों भारतीयों के प्रेरणास्त्रोत हैं।
पूरा देश बाबासाहेब को उनकी जयंती पर याद कर रहा है। देश की इस महान विभूति को श्रद्धांजलि दे रहा है। इस मौके पर स्कूल, कॉलेज, विभिन्न कार्यालयों, सार्वजनिक जगहों पर कार्यक्रम होते हैं। अगर आप इन कार्यक्रमों में भाषण देने जा रहे हैं तो नीच दी गई स्पीच से उदाहरण ले सकते हैं -
बीआर अंबेडकर जयंती पर भाषण ( Speech on Ambedkar Jayanti in Hindi )
माननीय प्रधानाचार्य, उपाध्यक्ष, शिक्षकगण और मेरे प्रिय मित्रों – आप सभी को मेरा नमस्कार!
आज हम यहां बाबासाहेब अंबेडकर जयंती के अवसर पर उन्हें याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्रित हुए हैं। आप लोगों ने मुझे भारत रत्न डॉ. बीआर अंबेडकर जैसी महान विभूति पर अपने विचार व्यक्त करने का मौका दिया, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक दलित परिवार में हुआ था। वह महार जाति से ताल्लुक रखते थे जिसे उस समय अछूत समझा जाता था। इसके चलते बचपन से ही अंबेडकर को समाज में काफी भेदभावपूर्ण व्यवहार सहना पड़ा। दलित होने के चलते करियर में आगे बढ़ने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। अपने स्कूल में वह अकेले दलित छात्र थे। उन्हें अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था जो उनसे बात करने से बचते थे।
भेदभाव व असमानता का सामने करते हुए अंबेडकर ने मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की। इसके बाद एमए के लिए अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहीं से पीएचडी की। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमएससी, डीएससी, ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ) किया। वह भारत में अपने समय के सबसे पढ़े-लिखे लोगों में से एक थे। अंबेडकर विदेश से डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय थे।
खुद के साथ हुए छुआछूत व असमानता वाले बर्ताव के बाद वह कम उम्र में ही भारतीय समाज से इन बुराइयों को मिटाने की ठान चुके थे। पढ़ाई के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन दलित व समाज के पिछड़े वर्गों को उत्थान में लगा दिया। उनके अधिकारों के लिए लड़े।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कटु आलोचना करने के बावजूद बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक महान विद्वान और कानूनविद की थी। यही कारण था कि आजादी के बाद उन्हें देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया। उन्हें भारतीय संविधान निर्माण की सबसे अहम जिम्मेदारी दी गई। उन्हें संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। संविधान निर्माण के लिए उन्होंने कई देशों के संविधान का अध्ययन किया। उन्हें संविधान जनक व संविधान निर्माता कहा जाता है। वह महान अर्थशास्त्री थे। आरबीआई की परिकल्पना उनके विचारों पर ही आधारित थी।
अंबेडकर सिर्फ दलित वर्ग के लिए नहीं बल्कि महिलाओं व श्रमिकों के अधिकारों के लिए भी लड़े। वह चाहते थे कि महिलाओं को समाज में बराबरी का हक मिले। वे कहते थे कि मैं किसी समाज की प्रगति का आकलन यह देखकर करूंगा कि वहां की महिलाओं की स्थिति कैसी है।
उनके जन्मदिन को देश के कई हिस्सों में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। उनके अनुयायी आज भी 'जय भीम' के नारे के साथ उनका सम्मान करते हैं। आज के दिन हमें बाबासाहेब के प्रेरक विचारों को जिंदगी में उतारने का संकल्प लेना चाहिए।'
धन्यवाद।
जय हिंद। जय भारत।
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