गजब खेल : MA और PhD एक साथ करके बन गए असिस्टेंट प्रोफेसर
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए चयनित अभ्यर्थियों के टॉप-10 में स्थान पाने वाले एक अभ्यर्थी के चयन पर...
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए चयनित अभ्यर्थियों के टॉप-10 में स्थान पाने वाले एक अभ्यर्थी के चयन पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। शिकायत हुई है कि वह इस पद की शैक्षिक अर्हता पूरा नहीं करता है। साथ ही पीएचडी के दौरान एमए करते हुए दोनों डिग्री एक ही वर्ष 2015 में ली है।
कुछ अभ्यर्थियों की ओर से शिकायत मिलने के बाद आयोग ने प्रकरण की जांच शुरू कर दी है। आयोग ने विज्ञापन संख्या 47 में अर्थशास्त्र के 33 असिस्टेंट प्रोफेसर चुने हैं। चयनितों की वरिष्ठता सूची में इस अभ्यर्थी का नाम टॉप-10 में है। उसके आवेदन पत्र से स्पष्ट है कि उसने अर्थशास्त्र से एमए और पीएचडी की डिग्री 2015 में ली है। एमए बलरामपुर के एक कॉलेज से किया और पीएचडी लखनऊ विश्वविद्यालय से बताई जा रही है।
पीएचडी में प्रवेश एमए करने के बाद मिलता है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि उसने एमए से पहले पीएचडी में प्रवेश कैसे प्राप्त कर लिया? शिकायत करने वालों ने आयोग को बताया है कि इस अभ्यर्थी ने पहले एमबीए किया था। एमबीए के आधार पर पीएचडी में दाखिला लिया और इसी दौरान उसने अर्थशास्त्र से एमए भी कर लिया। अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए व्यावसायिक अर्थशास्त्र में 55 प्रतिशत अंकों के साथ परास्नातक (एमए), नेट/जेआरएफ या पीएचडी होना अनिवार्य है। स्पष्ट है कि इस अभ्यर्थी की पीएचडी अर्थशास्त्र से नहीं है जबकि यह अनिवार्य शैक्षिक अर्हता है। आरोप है कि इंटरव्यू से पूर्व लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों के अभिलेखों के सत्यापन के वक्त इस अभ्यर्थी के अभिलेखों जांच में लापरवाही की गई। आयोग के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने बताया कि इस प्रकरण को गंभीरता से लिया गया है। प्रारंभिक छानबीन के बाद आरोपित को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया है। उसका पक्ष सुनने के बाद आगे कार्रवाई की जाएगी। अगर मामला सही पाया गया तो उसका चयन निरस्त कर प्रतीक्षा सूची में शामिल अभ्यर्थी को चयनित किया जाएगा।
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