69000 शिक्षक भर्ती: इस मामले में जल्द फैसला लेना चाहती है कोर्ट, इसलिए निस्तारण तक रोज होगी सुनवाई
उत्तर प्रदेश सहायक शिक्षक के 69 हजार पदों पर भर्ती मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष राज्य सरकार की ओर से बुधवार को लगातार तीन घंटे तक बहस की गई। इस दौरान न्यायालय ने परीक्षा परिणाम न घोषित...
उत्तर प्रदेश सहायक शिक्षक के 69 हजार पदों पर भर्ती मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष राज्य सरकार की ओर से बुधवार को लगातार तीन घंटे तक बहस की गई। इस दौरान न्यायालय ने परीक्षा परिणाम न घोषित करने के सम्बंध में 17 जनवरी को पारित अंतरिम आदेश को याचिकाओं के निस्तारण तक बढ़ा दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि वह इस मामले में जल्द फैसला लेना चाहती है, लिहाजा मामले की निस्तारण तक प्रतिदिन सुनवाई चलेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान आदि की ओर से दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया। बुधवार को मामले की सवा दस बजे सुनवाई शुरू होने पर सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्रा ने पक्ष रखना शुरू किया। उन्होंने लगातार तीन घंटे तक बहस की और 6 जनवरी की लिखित परीक्षा के बाद सरकार द्वारा अर्हता अंक तय करने के निर्णय का बचाव किया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के ऑब्जर्वेशन का जिक्र करते हुए कहा कि राइट टू एजुकेशन में राइट टू क्वालिटी एजुकेशन समाहित है। उन्होंने दलील दी कि सरकार की मंशा है कि योग्य अभ्यर्थियों का चयन हो।
उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षामित्रों के खिलाफ नहीं है, लेकिन क्वालिटी एजुकेशन के अपने दायित्व को निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार की ओर से यह भी दलील दी गई है कि 25 जुलाई 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों की सहायक शिक्षकों के रूप में नियुक्ति को रद्द करते हुए उन्हें दो बार भर्ती में वरीयता देने की जो बात कही है, उसका तात्पर्य यह नहीं है कि मेरिट से समझौता किया जाए। सरकार यह दलील भी दे चुकी है कि बड़े पैमाने पर अभ्यर्थियों के शामिल होने के कारण अर्हता अंक नियत करना आवश्यक हो गया था।
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