यूपी बोर्ड रिजल्ट्स 2018: हिन्दी में फेल हो गए 11 लाख से ज्यादा छात्र
यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में अनिवार्य विषय हिन्दी में 11 लाख से अधिक छात्र-छात्राएं फेल हो गए हैं। 29 अप्रैल को बोर्ड ने जब परिणाम घोषित किया तो हर कोई इस सोच में पड़ गया कि आखिर...
यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में अनिवार्य विषय हिन्दी में 11 लाख से अधिक छात्र-छात्राएं फेल हो गए हैं। 29 अप्रैल को बोर्ड ने जब परिणाम घोषित किया तो हर कोई इस सोच में पड़ गया कि आखिर क्या कारण हैं कि इतनी बड़ी संख्या में परीक्षार्थी अपनी मातृभाषा में ही फेल हो गए। हाईस्कूल की परीक्षा में सम्मिलित 3028767 परीक्षार्थियों में से 780582 (25.77 प्रतिशत) यानि एक चौथाई फेल हो गए। 12वीं में परीक्षा देने वाले 2604093 छात्र-छात्राओं में से338776 (13 फीसदी) हिन्दी विषय में फेल हो गए हैं।
हिन्दी शिक्षकों का मानना है कि मातृभाषा की उपेक्षा के कारण यह दुर्दशा हो रही है। अभिभावक तथा छात्र-छात्राएं की यह मानसिकता की हिन्दी तो अपनी मातृभाषा है, कम समय देने पर भी इसकी तैयारी ही जाएगी। कुछ हद तक हिन्दी के अध्यापक भी इसी मानसिकता के चलते शिथिलता बरतते दिखाई पड़ते हैं। विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे विषयों की तुलना में हिन्दी विषय पर कम ध्यान दिया जाता है। सोशल मीडिया, कम्प्यूटर आदि के बढ़ते उपयोग से भी विद्यार्थियों में स्वयं हाथ से लिखने की आदत कम हुई है। इसकी अपेक्षा वे की-बोर्ड पर टाइप करते हुए लिखने की अंधी दौड़ में लगे हैं।
जिसका नतीजा यह हुआ है कि लिखने की गति धीमी पड़ गयी है और सुलेख पर भी बुरा असर पड़ा है। साथ ही वर्तनी दोष से युक्त अशुद्ध भाषा के साथ जब परीक्षा कक्षा में बालक उत्तरपुस्तिका में अपना उत्तर लिखने बैठता है तो परिणाम पर प्रभाव पड़ना तो तय है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
यूपी बोर्ड पाठ्यक्रम समिति के सदस्य डॉ, दिलीप कुमार का कहना है कि- अधिकांश छात्र हिन्दी को सरल विषय मान लेते हैं तथा यह सोचते हैं कि परीक्षा का समय नजदीक आने पर तैयारी कर लेंगे। वे अपेक्षाकृत कठिन विषयों जैसे गणित, भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान आदि पर अधिक ध्यान देते हैं। उनकी वर्तनी प्राइमरी से ही कमजोर रहती है। मोबाइल, व्हाट्सएप के कारण लेखन बहुत कम होता है। व्याकरण कमजोर होने के कारण छात्र असफल हो रहे हैं।
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