JEE Main 2025 की तैयारी के लिए लेना चाहते हैं ड्रॉप ईयर, पहले पढ़ लें इसके माइनस, प्लस प्वाइंट,एक्सपर्ट से जानें Plan B
ड्रॉप ईयर लेने के कुछ प्लस प्वाइंट भी हैं और कुछ माइनस प्वाइंट भी हैं। यहीं नहीं यहां एक्सपर्ट आपको इसको लेने का सही तरीका और प्लान भी बता रहे हैं।
आईआईटी जेईई मेन एग्जाम देने की तैयारी कर रहे हैं और लग रहा है कि अभी तैयारी पूरी नहीं है, या फिर अपनी पसंद के कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाया, ऐसे में अधिकतक स्टूडेंट्स ड्रॉप ईयर लेने के तरफ टर्न करते हैं। ड्रॉप ईयर लेने के कुछ प्लस प्वाइंट भी हैं और कुछ माइनस प्वाइंट भी हैं। यहीं नहीं यहां एक्सपर्ट आपको इसको लेने का सही तरीका और प्लान -बी भी बता रहे हैं।
एक्सपर्ट से जानें
1 साल की मेहनत सब कुछ बदल सकती है
ड्रॉप ईयर को लेकर ही अलख पांडे ने फिजिक्स वाला- जेईई वाला के यूट्यूब चैनल पर एक मोटिवेशनल स्टोरी शेयर की। उन्होंने किसी स्टूडेंट्स का उदाहरण देते हुए बताया कि एक स्टूडेंट ने पहले साल में पेपर भी नहीं दिया, वो इतना डर गया था कि वो पेपर देने ही नहीं गया, उसे लगा कि उसके 40-50 मार्क्स ही आएंगे। अपने बाथरुम मे शॉवर लेकर रोता था। इस साल 99.2 पर्सेंटाइल लेकर आया। उन्होंने बताया कि 1 साल की मेहनत सब कुछ बदल सकती है।
कितना सही है ड्रॉप ईयर लेना और प्लान भी होना चाहिए तैयार
करियर काउंसलर आशीष आदर्श के अनुसार ड्रॉप ईयर का फैसला लेने से पहले स्टूडेंट्स को खुद अपना आंकलन कर लेना चाहिए। जैसे मान लिया जाए कि जिस लेवल तक आईआईटी और एनआईटी में कितने मार्क्स पर एडमिशन हुआ है, उससे लास्ट स्कोर से हम कितना दूर हैं। अगर हम बहुत दूर हैं, तो छोड़ देना चाहिए, लेकिन अगर हम कम नंबर से चूक गए हैं, तो हमें ड्रॉप ईयर लेना चाहिए। इसके अलावा इसका सुरक्षित तरीका है कि हम ड्रॉप ईयर भी ले लें और साथ में किसी ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन भी लें । इसलिए हमें अपना प्लान बी लेकर चलना चाहिए, इसके लिए आप इग्नू में एडमिशन ले सकते हैं, इग्नू की डिग्री की वैलिडिटी वैसी ही जैसे रेगुलर कोर्स की डिग्री की। इग्नू में कोर्स में दाखिला लेने से आपको तैयारी का पूरा टाइम मिलेगा और अगर किसी कारण जेईई मेन में आपका नहीं हो पाया तो आपका साल बच जाएगा और आप उसी को लेकर आगे की प्लानिंग कर सकते हैं।
JEE main ड्राप ईयर लेने के प्लस प्वाइंट
दरअसल अधिकतर स्टूडेंट्स के दिमाग में यह बात होती है कि एक ड्रॉप इयर लेकर वो अच्छी रैंक लाकर अपने मनपसंद कॉलेज में एडमिशन पा लेंगे।
कई बार स्टूडेंट्स एग्जाम की सही तरीके से तैयारी नहीं कर पाते हैं, खासकर बेकार टाइम मैनेजमेंट, सिलेबस पूरा न हो पाने और किसी कॉन्सेप्ट की अच्छी समझ न होने के कारण स्टूडेंट्स ड्रॉप इयर लेना चाहते हैं।
बोर्ड एग्जाम और जेईई की तैयारी को हर स्टूडेंट नहीं झेल पाता। दोनों परीक्षाओं के तनाव के कारण उनकी जेईई की तैयारी अच्छी नहीं हो पाती है। वो दोनों में बैलेंस नहीं बना पाते हैं।
जो स्टूडेंट्स अपने पहले अटेंप्ट में क्वालीफाई नहीं कर पाते हैं, वो स्टूडेंट्स दूसरा चांस लेते हैं, जिससे वो सफल हो सकें।
जो स्टूडेंट्स समझते हैं कि उनकी फिलहाल की तैयारी में गाइडेंस की कमी है, ऐसे में वो अच्छी कोचिंग और अच्छी तैयारी के साथ एक और चांस लेना चाहते हैं और ड्रॉप इयर लेते हैं।
अगर आपको लगता है कि आपकी मेहनत अच्छी से नहीं हुई और आप आगे और बहुत अच्छा कर सकते हैं, या आपको लगता है कि मुझे इसी कॉलेज में जाना है, तो आपके लिए ड्रॉप ईयर लेना सही है।
अगर आप 12वीं क्लास पढ़ रहे हैं, तो 12वीं पर फोकस करें, लेकिन ऐसा नहीं है कि जेईई को बिल्कुल छोड़ दें, उसकी भी तैयारी करें, ड्रॉप इयर के भरोसे ना रहें। पहले की तैयारी भी मायने रखती है।
रैंक को लेकर आपको लग रहा है कि आपकी रैंक अच्छी आ सकती हैं, तो आप ड्राप ईयर ले सकते हैं।
ड्राप ईयर का मतलब है कि पूरे तरीके से ड्राप ईयर लेना है या फिर एडमिशन लेकर फिर पहले ईयर में अच्छी रैंक के लिए तैयारी करें।
JEE main ड्रॉप ईयर लेने के माइनस प्वाइंट
ड्रॉप ईयर लेने से कई स्टूडेंट्स का तनाव भी बढ़ सकता है। उनको ऐसा लगता है कि अब यह आखिरी चांस है, इसमें किया तो सही वरना फिर कुछ नहीं, ऐसा भी कुछ स्टूडेंट्स अनुभव करते हैं और कई स्टूडेंट्स को एंजायटी भी होती है।
कई बार ड्रॉप ईयर लेने से स्टूडेंट्स एक साल अपने साथ पढ़ने वालों से कॉलेज और ग्रेजुएशन में पीछे हो जाते हैं। इससे उनके एकेडमिक ईयर का लॉस होता है।
कई बार रिजल्ट आपके पक्ष में आता है। कई बार ड्रॉप ईयर लेने के बाद भी रिजल्ट आपके फेवर में नहीं आता, ऐसे में ड्रॉप इयर लेना सफलता की गारंटी नहीं, आप कैसे पढ़ते हैं और आपकी क्या तैयारी है, इस पर आपको अच्छे से सोचना चाहिए।
जेईई की तैयारी के साथ प्लान बी बनाना जरूरी है। अगर ड्रॉप ईयर के बाद भी सफलता नहीं मिलती, तो आपको दूसरे ऑप्शन पर विचार करना जरूरी है। इसके अलावा तैयारी के साथ-साथ भी आप इस ऑप्शन पर काम कर सकते हैं।
रिस्क फैक्टर: एक ही स्टडी मैटेरियल को एक साल से दूसरे साल तक दोबारा दोहराने में थकान और प्रेरणा की कमी हो सकती है। आपकी रुचि कम होने का जोखिम भी इसमें ज्यादा है।
अगर आप अच्छे कॉलेज के लिए दोबारा जेईई मेन देना चाहते हैं, तो इस बात का भी ध्यान रखें कि कुछ छात्र अपने पहले प्रयास में अच्छे कॉलेज ऑफर को नजरअंदाज कर सकते हैं, जो बाद में जरूरी नहीं कि वो उन्हें मिल ही जाएं।
आपको बता दें कि जेईई मेन एग्जाम का कॉम्पिटीशन हर साल टफ हो रहा है। जिसमें परीक्षा पैटर्न, कटऑफ, मार्क्स स्कीम और कॉम्पिटीशन लेवल में बदलाव से कुछ निश्चित नहीं की अगले साल भी अच्छी पर्फोर्मेंस आ जाए।
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