Hindi Newsबिज़नेस न्यूज़Like Gandhiji this entrepreneur was forced off the train and what he did is exemplary

गांधी जी की तरह इस उद्यमी को भी ट्रेन से जबरन उतार दिया गया और उसने जो किया वह मिसाल है

नौकरी छोड़कर निकला था चैन से दुनिया देखने, लेकिन यह क्या? एक लड़की से बातचीत की ऐसी खतरनाक सजा? यह कैसी सरकार है, जो नहीं करना चाहिए, वही कर रही है। सरकार ऐसी भी मुंहचोर हो सकती है?

Drigraj Madheshia हिन्दुस्तान ब्यूरो, नई दिल्लीSun, 29 Jan 2023 06:56 AM
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Story Of Narayan Murthy:  रेल यात्रा की बात ही अलग है। रेल जितनी तेज दौड़े, उतनी ही तेजी से खिड़की के बाहर पेड़, जंगल, पहाड़, कस्बे गुजरते हैं, मानो कहीं भाग रहे हों। किसी भी रेल यात्रा में थोड़ा सा ही कुछ पास बचा रहता है, बाकी सब पीछे बीत जाता है। जो बीत गया, उसी पर हम नहीं ठहरते, आगे की मंजिलों पर ठहरते हैं और सोचते हैं, तो पाते हैं कि जिंदगी सफर ही तो है। यूं तो एक जगह रहिए, तो आसपास के दृश्य बहुत आहिस्ता बदलते हैं, लेकिन रेल में रहिए, तो दृश्य पल भर में कई बार बदलते हैं। वह 27 वर्षीय युवा भी रेल में बैठा, सर्बिया के आकाश, मैदान, वादियों पर नजरें बिछा और समेट रहा था। इस देश में न जाने फिर कब गुजरना होगा, शायद कभी नहीं, तो जो दिख रहा है, देख ले।

उस नौजवान के आगे ही एक लड़की बैठी थी, सर्बियन थी, उसके साथ एक साथी भी था। रेल यात्रा में यही होता है, कुछ पल के लिए ही सही पास बैठे यात्रियों से संवाद का सिलसिला बन जाता है। रेल यात्रा ने यह काम पूरी दुनिया में किया है। अक्सर लोग अपनी सारी कुल्फी, मलाई, दुनियादारी लिए सफर करते हैं, भाईचारे और इंसानियत को मजबूती मिलती है।

दक्षिण भारत का वह लड़का और वह विदेशी लड़की, दोनों के बीच आंखों से संवाद हुआ और उसके बाद परस्पर विभिन्न भाषाओं के लफ्ज टटोलते फ्रेंच पर आकर सेतु बना। दो युवा लगे बतियाने कि दुनिया में कहां कैसी जिंदगी है, भारत में कैसा है, सर्बिया में कैसा। पर एक दिक्कत हो गई, इस फ्रेंच संवाद सेतु से उस लड़की के साथी का गुजरना कठिन था। संवाद न समझ पाना शायद ईर्ष्या की वजह बन गया।

पुलिस का तो दुनिया में अवतार ही शक करने के लिए हुआ है

वह विदेशी लड़का, पुलिस बुला लाया। पुलिस का तो शायद इस दुनिया में अवतार ही शक करने के लिए हुआ है, पहली नजर में उसे हर ओर चोर-उचक्के नजर आते हैं। फिर क्या था, वामपंथी प्रभाव वाले देश की पुलिस ने भारतीय युवा को वहीं मय सामान उतार लिया। कोई समझाइश-सफाई काम न आई। तीन से भी ज्यादा यूरोपीय भाषा जानने वाले उस बहुत योग्य, व्यावहारिक भारतीय लड़के का पासपोर्ट और सामान तत्काल जब्त हो गया।

वाम विचारधारा वाले उस देश में एक फिजूल शिकायत भी संगीन हो गई। दुबले-पतले युवा को पुलिस घसीटती ले गई और एक छोटे से कमरे में पटक दिया। कमरे के कोने में ही शौचालय था, न बिछाने को कुछ, न ओढ़ने को। खूब सर्दी थी और सख्त फर्श पर किसी तरह सिकुड़कर बैठे-बैठे इंतजार करना था कि पुलिस वालों की इंसानियत कभी तो जागेगी। कभी कुछ तो खाने को देंगे, इंतजार करते दिन बहुत भारी बीत रहे थे। रात होती, तो लगता था कि प्राण पखेरू उड़ जाएंगे। उसे ही बहुत चस्का था घूमने-देखने का।

निकला था एक साथ 25 देशों का वीजा लेकर। पेरिस में शानदार नौकरी करते पैसे जमा किए थे और नौकरी छोड़कर निकला था चैन से दुनिया देखने, लेकिन यह क्या? एक लड़की से बातचीत की ऐसी खतरनाक सजा? यह कैसी सरकार है, जो नहीं करना चाहिए, वही कर रही है। सरकार ऐसी भी मुंहचोर हो सकती है?

सवाल करने की इच्छा मर चुकी थी

खैर, 120 घंटे बिना जल-भोजन गुजारने के बाद कैद के कपाट खुले। घसीटकर एक मालगाड़ी के गार्ड डिब्बे में बंद कर दिया गया। सोचने की क्षमता जवाब दे चुकी थी, सवाल करने की इच्छा मर चुकी थी, ऐसे देशों की तानाशाह सरकारें यही तो चाहती हैं। खैर, बता दिया गया कि तुम मित्र देश भारत के हो, इसलिए तुम्हें छोड़ रहे हैं, लेकिन इस देश में तुम्हें नहीं छोड़ेंगे, तुम्हें इस्तांबुल पहुंचाकर उतारा जाएगा, वहीं सामान और पासपोर्ट लौटाया जाएगा। तुम्हें छोड़ा जा रहा है, हमारी सरकार का शुक्र मानो।

पेट खाली था, लेकिन दिमाग को यथोचित खुराक मिल चुकी थी। विचारधारा का कायाकल्प हो चला था। जैसे कभी गांधीजी को भी रेल से उतार दिया गया था। नहीं, सरकारें ऐसी नहीं होनी चाहिए। सरकार ने यह क्या किया, क्यों किया, कैसे किया, क्या कानून है, क्या सुनवाई, न कागज-दस्तावेज, कैसी सजा और कैसी मुक्ति? 

इस घटना ने दुनिया के एक सफलतम उद्यमी पृष्ठभूमि तैयार कर दी

इस घटना ने दुनिया के एक सफलतम उद्यमी एन आर नारायण मूर्ति की पुख्ता पृष्ठभूमि तैयार कर दी। इस घटना ने उन्हें एक भ्रमित वामपंथी से एक दृढ़-निश्चयी पूंजीपति बना दिया। यूरोपीय साम्यवाद ने निराश कर दिया और शासन के ऐसे तरीके के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया, जो देश के विकास के लिए सबसे अच्छा हो। उन्होंने महसूस किया कि कोई देश सिर्फ नौकरियों के सृजन से ही समृद्ध हो सकता है। सरकार का काम रोजगार सृजित करना नहीं, उसका काम है, उद्यमियों के लिए अनुकूल माहौल बनाए, ताकि देश में युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिल सके, ताकि देश किसी तरह के बेकार भटकाव से बचा रहे, तेज प्रगति करे।

प्रस्तुति ज्ञानेश उपाध्याय

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