किसानों ने जीरे से गढ़ी कामयाबी की कहानी, कैसे हुए मालामाल, खुद बताया
ये किसान एनसीडीईएक्स आईपीटी ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आए थे। कार्यक्रम में किसानों ने बताया कि जीरे के लगातार बढ़ते भाव के बीच उन्होंने अपनी फसल कैसे संभाली है।
"जीरे की खेती हमारे लिए जुए की तरह है। लागत कई गुना बढ़ गई है और भाव हमेशा कम ही रहते थे। इसीलिए किसान जीरे का रकबा घटाकर सरसों और मेथी की बुआई करने लगे। अब पिछले कई साल में पहली बार इसने हमारा मुनाफा कराया है तो हम बहुत राहत महसूस कर रहे हैं। लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि यदि जीरे का भाव बढ़ने से किसानों को फायदा हो रहा है तो हर कोई इसके खिलाफ क्यों बोल रहा है। कम भाव की वजह से जब हमें इतने साल तक घाटा हो रहा था तब तो कोई नहीं बोला।" यह कहना है करशन भाई जाडेजा का, जो किसान भी हैं और गुजरात के राधनपुर जिले में करीब 1600 सदस्यों वाली बनास फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी ढएफपीसी) के सीईओ भी हैं।
जाडेजा उन 100 किसानों में से एक थे, जिन्होंने जीरे का भाव बढ़ने पर चिंता जताने वाली चर्चा के बीच अपनी खुशी और फिक्र दोनों जाहिर कीं। ये किसान एनसीडीईएक्स आईपीटी ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आए थे। कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि जीरे के लगातार बढ़ते भाव के बीच उन्होंने अपनी फसल कैसे संभाली है। मसाला बोर्ड, कोच्चि के निदेशक (मार्केटिंग) बी एन झा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
लागत 30,000 रुपये प्रति एकड़
चोराड एफपीसी के बाबूलाल भाई ठाकोर ने फसल की लागत के बारे में समझाते हुए कहा, "एक एकड़ में हमें औसतन 2 क्विंटल जीरा मिलता है, जबकि इसकी लागत 30,000 रुपये प्रति एकड़ है। ढुलाई, बोरे में भरने और मजदूरी का खर्च अलग से है। इस साल हमें अपनी लागत के ऊपर अच्छा मुनाफा हुआ है। अपनी जीरे की फसल से इस साल मुझे जो कमाई हुई है, उससे अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे का इंतजाम करने के बड़े बोझ से मुझे राहत मिल गई है।" चोराड एफपीसी बनासकांठा जिले में है और करीब 500 किसानों का प्रतिनिधित्व करती है।
वाडेयार एफपीसी से कनुबा भाई ने जीरे के भाव चढ़ने से सदस्य किसानों को इस साल हुए मुनाफे की बात की। उन्होंने कहा, "सरकार को केवल उपभोक्ताओं की चिंता रहती है। लेकिन मुझे एक बात बताइए, किसी घर में एक महीने में कितना जीरा इस्तेमाल होता है। 200 ग्राम से ज्यादा नहीं। तो कीमत 200 रुपये किलोग्राम से चढ़कर 1,000 रुपये किलो भी हो गई तो उपभोक्ता पर महीने में केवल 150 रुपये का बोझ बढ़ेगा। इसलिए मुझे समझ नहीं आता कि मीडिया और सरकार समेत हर कोई इसके असर की बात क्यों कर रहा है और किसी को भी किसानों की आय की कोई चिंता नहीं है।" वाडेयार एफपीसी पाटन जिले से आती है और करीब 500 किसान इसके सदस्य हैं।
लागत की समस्या पर उठाए सवाल
पाटन की लगभग 525 किसान सदस्यों वाली एक अन्य एफपीसी समी विस्तार के प्रतिनिधि के रूप में आए लक्ष्मण भाई ने किसानों के लिए लागत में बढ़ोतरी की बात उठाई। उन्होंने कहा, "उपज की लागत बहुत बढ़ गई है क्योंकि डीजल समेत खेती में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री के दाम पिछले कुछ साल में कई गुना बढ़ गए हैं। उदाहरण के लिए डीएपी का दाम 350 रुपये से बढ़कर 1,350 रुपये हो चुका है और 53 रुपये लीटर से बढ़कर डीजल 100 रुपये से ऊपर जा चुका है। इसलिए जीरे के भाव बढ़कर आज के स्तर पर आ गए हैं तो परेशानी नहीं होनी चाहिए।"
झा ने किसानों से अलग-अलग बात कर जीरे के भाव और खेती के दूसरे पहलुओं के बारे में भी जानकारी ली। उन्होंने किसानों से गुणवत्ता पर ध्यान देने को कहा और कयह भी कहा कि अपनी उपज का सीधा निर्यात करने के लिए वे मसाला बोर्ड से मदद मांग सकते हैं क्योंकि इससे उनकी आय बढ़ जाएगी।
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