मुश्किल समय में भारतीय बाजार ने दिया बेहतर रिटर्न, आगे क्या हैं संभावनाएं
Year Ender 2022: साल 2022 निवेश के लिहाज से उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के मुकाबले भारत में इक्विटी और डेट, दोनों ही मामलों में बेहतर परिणाम रहे हैं।
साल 2022 निवेश के लिहाज से उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के मुकाबले भारत में इक्विटी और डेट, दोनों ही मामलों में बेहतर परिणाम रहे हैं। जहां एमएससीआई से संबद्ध उभरते बाजारों के और वैश्विक सूचकांक में क्रमशः 18.9% और 16.6% की गिरावट आई, वहीं एमएससीआई भारत ने अब तक 3.8 फीसदी का रिटर्न दिया है। हालांकि, यह रिटर्न विश्व में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले भारत जैसे देश में आशा के अनुरूप में नहीं है। इसके बावजूद भारत से उम्मीदें बढ़ गई हैं।
रिटर्न को खा रही महंगाई
निवेश की दुनिया का सिद्धांत है- इक्विटी रिटर्न देती है और डेट सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन इसे 2022 में चुनौती मिली जब उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में इक्विटी और डेट दोनों की कीमतों में गिरावट आई। इससे निवेशकों को निराशा हुई है। वर्ष 2022 विभिन्न एसेट के लिए होल्डिंग पीरियड रिटर्न की तुलना में काफी उतार-चढ़ाव वाला वर्ष रहा।
परंपरागत भारतीय पोर्टफोलियो (60% इक्विटी और 40% डेट) से औसतन रिटर्न 5.6% रहा, जिसमें इक्विटी का 7.2% और डेट का 3.1% योगदान रहा है। इसमें सोना जोड़ दिया जाए तो मिश्रित रिटर्न औसतन 5.9% रहा है। हालांकि, इनमें से कोई भी कॉम्बिनेशन मुद्रास्फीति को नहीं हरा पाया। इसके विपरीत, एक साधारण बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट में 5% का सीधा रिटर्न मिलता है, जो इक्विटी से बहुत कम नहीं है।
मुद्रास्फीति सभी देशों के लिए चुनौती
वैश्विक स्तर पर निवेश बाजार में इस तरह की तंगी मुख्य कारण मुद्रास्फीति है। 2020 के दशक में अमेरिका में मुद्रास्फीति दो फीसदी के लक्ष्य से कम थी, जबकि भारत में यह अपने लक्ष्य चार से छह के दायरे के लक्ष्य से ज्यादा रही। भारत में मुद्रास्फीति औसतन चार फीसदी से अधिक थी। वहीं, 2022 में स्थिति बदल गई, क्योंकि अमेरिका में कीमतों में अधिक तेजी से वृद्धि हुई। बढ़ती मुद्रास्फीति और इसकी अस्थिरता के कारण फेडरल रिजर्व के लिए सख्ती जारी रखना और भी महत्वपूर्ण हो गया।
इक्विटी-बॉन्ड का बाजार में तेजी के आसार
बीते अक्तूबर में मुद्रास्फीति के आंकड़े भारत और अमेरिका दोनों देशों में कीमतों में नरमी का संकेत देते हैं। अपनी दिसंबर की मौद्रिक नीति में भारतीय रिजर्व बैंक ने 2023-24 की दूसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति घटकर 5.4% रहने का अनुमान लगाया है। यदि स्थितियां इस परिणाम की ओर जाती हैं तो इससे इक्विटी और बॉन्ड बाजारों को बढ़ावा मिलेगा।
मंदी से भारत में घट सकते हैं रोजगार
वैश्विक जीडीपी के तीन सबसे बड़े योगदानकर्ता- अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ में साल 2023 के दौरान मंदी की आशंका है। यह स्थिति भारत को भी कई तरह से प्रभावित करेगी। मंदी से निर्यात को नुकसान होगा, जो पहले से ही दबाव में है। 2021-22 में भारत का 40% निर्यात उत्तरी अमेरिका और यूरोप में था।
चूंकि इन अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन और आय धीमी है, तो वे कच्चे माल और तैयार माल के आयात में कटौती करेंगे। ऐसे में जोखिम से बचने वाले विदेशी निवेशक पीछे रह सकते हैं। बड़े पैमाने पर छंटनी से शहरी बेरोजगारों की संख्या बढ़ने की भी आशंका है, इससे वेतन भी कम होगा। यह स्थितियां इक्विटी रिटर्न को कम कर सकती हैं।
आगे क्या हैं संभावनाएं
साल 2023 में भी आर्थिक अनिश्चितता हावी रहने की संभावना है। बाजार के विश्वास को बहाल करने वाला कोई भी कारण फिलहाल नहीं दिख रहा है, जैसे रूस-यूक्रेन संकट का समाधान, मुद्रास्फीति में गिरावट इत्यादि। रूसी तेल पर कीमतों की सीमा, चीन और पश्चिम एशिया के बीच बढ़ते मेलजोल और कम आय वाले देशों के बीच बढ़ती संप्रभु चूक से अनिश्चितताएं और बढ़ी हैं।
यह बताता है कि निवेशक रुको और देखो की स्थिति में क्यों हैं। लेकिन, साधारण खुदरा निवेशक को बुनियादी निवेश नियमों को ध्यान में रखना चाहिए। एक अच्छा विविधतापूर्ण और संतुलित पोर्टफोलियो समय के साथ लगातार रिटर्न देता है।
रेपो रेट में वृद्धि से चुनौतियां बढ़ीं
मुख्य दरें (% में) पहले अब
- रेपो दर 04 6.25
- रुपया/डॉलर 74.3 82.21
- एमसीएलआर (एक साल) 7.25 8.05
- सावधि जमा (एक साल) 4.90-5.60 6.10-7.25
- सालाना कर्ज वृद्धि दर 9.81 15.99
- सालाना जमा वृद्धि दर 12.17 9.6
- 10 साल का जी-सेक यील्ड 6.47 7.32
(31 दिसंबर 2021 से 9 दिसंबर 2022 के आंकड़े)
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