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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कैसा रहा साल 2022? विस्तार से समझें हर एक बात

जब दुनिया की अर्थव्यवस्था मुश्किल में फंसी दिख रही है उस वक्त अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ जैसी दिग्गज वैश्विक संस्थाओं को भारत आर्थिक वृद्धि के क्षेत्र में एक चमकदार स्थान के रूप में दिख रहा

Tarun Pratap Singh सौरभ शुक्ल, नई दिल्लीMon, 26 Dec 2022 09:42 AM
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जब दुनिया की अर्थव्यवस्था मुश्किल में फंसी दिख रही है उस वक्त अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ जैसी दिग्गज वैश्विक संस्थाओं को भारत आर्थिक वृद्धि के क्षेत्र में एक चमकदार स्थान के रूप में दिख रहा है। वर्ष 2022 इसका गवाह बना। इस साल सितंबर में भारत ने ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल कर लिया। हालांकि, यह सब एक झटके में नहीं हुआ है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग और टैक्स के क्षेत्र में की बड़े बदलावों को अंजाम दिया है। इससे जरूरतमंदों के खाते में सीधे पैसे जा रहे हैं, भ्रष्टाचार घटा है और सरकार की कमाई बढ़ी है। इसका फायदा हर आम और खास को मिल रहा है। अब भारत की इस विकास यात्रा को दुनिया भी उम्मीद भरी नजरों से देख रही है।

ब्रिटेन को पछाड़ भारत बना दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था

देश लगातार कितनी तरक्की कर रहा है वर्ष 2022 इसका गवाह बना। इसी साल सितंबर महीने में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक जोश बढ़ाने वाली रिपोर्ट आई। उस रिपोर्ट में बताया गया भारत दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत ने इस मुकाम पर पहुंचने के लिए ब्रिटेन को पीछे छोड़ा है। और भारत से आगे अब केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं। दुनिया की पांचवी से चौथी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने की यात्रा में भारत ने कई आमूलचूल परिवर्तन किए। बीते कुछ सालों में भारत में बैंकिंग क्षेत्र का कायाकल्प किया गया और टैक्स वसूली के क्षेत्र में हुए बदलावों से भ्रष्टाचार घटा और सरकार की कमाई बढ़ी है। ये बदलाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के करों में देखने को मिला है। लोगों के पास सीधे बैंक खाते में पैसा जाने की वजह से भी भ्रष्टाचार घटा है और सरकार पैसे में लूट पर रोक लगनी शुरू हुई। इन्हीं कोशिशों का नतीजा रहा कि सरकारी खजाने में लोगों के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए बड़ी राशि जमा हुई। साथ ही इन सभी चीजों के सुचारु रूप से चलने का ही नतीजा रहा कि भारत का आर्थिक चक्र दुनिया के मुकाबले बेहतर तरीके से चलने लगा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के आंकड़ों में भारत की अर्थव्यवस्था 854.7 अरब डॉलर की आंकी गई, जबकि इस आधार पर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 816 अरब डॉलर की रही। पिछले एक दशक की बात की जाए तो भारत इस रैंकिंग में लगातार सुधार कर रहा है। भारत 11वें से सुधार करता हुआ 5वें पायदान पर पहुंचा है।

दुनिया की खस्ता हालात

विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर और खास तौर पर अमेरिका और यूरोप की आर्थिक हालत उनकी नीतियों की वजह से खस्ताहाल होती जा रही है। रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते वहां सस्ते ईंधन की सप्लाई पर रोक लगी है। पहले कोरोना और अब इस युद्ध ने कुल मिलाकर लंबे समय से वहां की आर्थिक हालात को खराब करना शुरू दिया था। इसका सीधा असर मांग, ट्रांसपोर्ट, जरूरी सामानों के उत्पादन, कृषि उत्पादों और बिजली उत्पादन पर पड़ता दिखाई दिया है। बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए वहां के रिजर्व बैंक को लगातार ब्याज दरों में इजाफा करना पड़ा है जिससे कर्ज भी महंगा होता जा रहा है। आलम यह है कि यूरोपीय संघ भी कहने लगा है कि उसके संघ से जुड़े देशों को लंबे समय तक खराब आर्थिक हालात का सामना करना पड़ सकता है। इन देशों के लिए इस साल के अलावा अगले साल के शुरुआती कुछ महीने भी परेशान करने वाले रह सकते हैं।

आईएमएफ का वृद्धि दर अनुमान

देश वर्ष 2022 2023
भारत 6.8 6.1

चीन 3.2 4.4
अमेरिका 1.5 01

जापान 1.7 1.6
जर्मनी 1.5 -0.3

ब्रिटेन 3.6 0.3
रूस -3.4 -2.3

फ्रांस 2.5 0.7
(वृद्धि दर (%में, समय अक्तूबर 2022)

भारत की नीतियों का असर

भारत की आर्थिक नीतियां ऐसी हैं कि जिससे उसने अपनी महंगाई पर पूरी दुनिया के मुकाबले पहले काबू पाया है। पिछले कुछ महीनों के आंकड़े बताते हैं कि महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक के कंफर्ट जोन में हैं जिसकी वजह से आने वाले दिनों में कर्ज को महंगा करने की रफ्तार में ब्रेक लग सकता है।

आर्थिक सुधारों से हुआ फायदा

देश में पिछले कुछ सालों में जो आर्थिक फैसले लिए हैं उन्हीं का परिणाम रहा है कि आर्थिक रफ्तार भी बढ़ी है। मिशन मेक इन इंडिया रहा हो या फिर डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया इन सभी ने मिलकर एक ऐसा कारोबारी माहौल बनाया जिसमें भारतीय उत्पादों को न केवल बड़ा बाजार मिला बल्कि वैश्विक पहचान भी मिली है। सरकार ने हाल ही में एक जिला एक उत्पाद योजना को भी बढ़ावा देना शुरु किया है। इसके जरिए देश में हर जिले में एक ऐसा उत्पाद चिन्हित किया जा रहा है जिसे वैश्विक बाजार दिलाया जाएगा। ऐसे में मुजफ्फरपुर की लीची लंदन तक में बिकने लगी है। ऐसा नजारा भारत के कई उत्पादों के मामले में देखने को मिल रहा है। साल 2022 में इन तमाम कीर्तिमानों में इजाफा देखने को मिला है।

आत्मनिर्भरता का मंत्र कारगर रहा

सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान भारत को विदेशी उत्पादों से आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया है। इसके लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन स्कीम का ऐलान किया गया है। कई क्षेत्रों में इसमें उत्पादन शुरू हो गया और कुछ अभी योजना के स्तर पर हैं। आने वाले दिनों में जब ये पहल अपनी पूरी शक्ति के साथ काम करेगी तब भारत की ताकत देखने लायक होगी।
इन क्षेत्रों में दिया जा रहा उत्पादन आधारित प्रोत्साहन

क्षेत्र राशि

आटोमोबाइल एवं आटो कंपोनेंट- 57,000 करोड़

मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग एवं इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट- 40,951 करोड़
चिकित्सा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग एवं फार्मास्युटिकल्स- 3,420 करोड़

फार्मा एवं ड्रग सेक्टर- 15,000 करोड़
टेक्सटाइल सेक्टर- 10,683 करोड़

टेलीकॉम नेटवर्क एवं इंफ्रास्ट्रक्चर- 12,000 करोड़
फूड प्रोडक्ट्स सेक्टर- 10,900 करोड़

सोलर फोटो वॉल्टिक सेक्टर- 4,500 करोड़
एडवांस केमिकल सेल बैटरी- 18,100 करोड़

इलेक्ट्रानिक टेक्नोलाजी प्रोडक्शन- 5,000 करोड़
स्पेशल स्टील- 6,322 करोड़

व्हाइट गुड्स (एसी एवं एलईडी)- 6,238 करोड़

इन सभी क्षेत्रों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन से देश में रोजगार के नए अवसर सृजित होने के साथ-साथ स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा मिलेगा और आयात पर होने वाला खर्च भी घट जाएगा। देश में ऐसे प्रयास से ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों का विकास भी निश्चित तौर पर होगा। ऐसे में गावों से शहरों की तरफ होने वाले पलायन पर भी लगाम लगने की संभावना है। बड़े पैमाने पर उत्पादन देश के भीतर होगा तो ऐसे में उम्मीद इस बात की भी है कि सामान के दाम भी किफायती होंगे।

आयात बिल घटाना लक्ष्य

केंद्र सरकार ने अपने आयात बिल को घटाने के मकसद से देश में आत्मनिर्भर भारत की मुहिम शुरू कर रखी है। इस मुहिम के माध्यम से रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल, मोबाइल उद्योग, दवा और चिप उत्पादन समेत तमाम क्षेत्रों में न केवल प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं बल्कि इनके आयात को भी महंगा किया जा रहा है ताकि भारत के बने उत्पादों को प्राथमिकता दी जा सके।

विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिलेगी

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में इससे न केवल रोजगार के क्षेत्र में बढ़त होगी बल्कि भारत की चीन जैसे देशों पर निर्भरता भी घटेगी। यही नहीं आयात भी कम होगा और उससे विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा।

आयात घटाने पर नजर

पूर्व सांख्यिकीविद और आर्थिक मामलों के जानकार प्रणब सेन के मुताबिक देश में उन्हीं उत्पादों की दिशा में आत्मनिर्भर बनने की कवायद की जा रही है जिन क्षेत्रों में हमारा आयात ज्यादा है। सरकार की ये पहल अच्छी है। खास तौर पर रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने से भारत की सुरक्षा मजबूत होगी। साथ ही आयात घटने से खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा भंडार की भी बचत होगी। उन्होंने ये भी कहा कि इस मिशन पर बड़ा फोकस उत्पादन की दिशा में हो रहा है जो निश्चित तौर पर देश की आर्थिक ताकत को बढ़ाएगा लेकिन इसके बारे में पूरी तरह से कोई राय बनाने के लिए कुछ सालों तक इंतजार करना पड़ेगा जब कई क्षेत्रों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानि पीएलआई योजनाओं को पूरी तरह अमली जामा पहनाया जा सकेगा। अभी इनमें से कई प्रयास बेहद शुरुआती स्तर पर हैं।

चीन पर निर्भरता कम करने पर जोर

आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र कुमार मिश्रा ने हिन्दुस्तान को बताया कि सरकार चीन से आयात किए जाने वाले उत्पादों से संबंधित उद्योगों को बड़ा प्रोत्साहन दे रही है। इस राहत का फायदा उठाकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे तमाम राज्य, केंद्र सरकार के साथ मिलकर उद्योग लगाने की कोशिश में हैं। इस मुहिम के जरिए सरकार का पूरा फोकस देश में उत्पाद बढ़ाकर आयात घटाने पर है। इसका फायदा भविष्य में देश में रोजगार बढ़ाने के साथ ही आर्थिक ताकत में भी इजाफा करने के तौर पर मिलेगा। उन्होंने ये भी कहा कि सरकार की तरफ से भारत में बनने वाली चीजों के आयात को महंगा करने की भी कोशिश हो रही है जो निश्चित तौर पर भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने वाला कदम है। यही नहीं भविष्य को देखते हुए मैन्युफैक्चरिंग उद्योग पर लगने वाली टैक्स की दरों को भी तर्कसंगत बनाया गया है। इससे न केवल वैश्विक स्तर के मुकाबले भारत काफी बेहतर है, बल्कि कारोबारियों के पास पूंजी भी बचेगी जिसका निवेश कारोबार में ही किया जा सकेगा। देश में स्टार्टअप का भी बड़ा नेटवर्क तैयार किया जा रहा है जिसके योगदान से भविष्य में भारत न केवल खुद के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर बड़ा निर्यातक होकर दुनियाभर में अपने उत्पादों का लोहा मनवा सकता है।

वैश्विक आर्थिक हालात के बीच भारत

कोरोना महामारी के बाद अमेरिकी और यूरोपीय देशों में छाई आर्थिक सुस्ती रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद धीरे-धीरे मंदी में बदलने लगी है। इसके नुकसान से वैसे तो पूरा विश्व ही प्रभावित हो रहा है लेकिन भारत कुछ मामले में बेहतर है। पिछले कुछ सालों में किए गए आर्थिक बदलावों की वजह से कई वस्तुओं के उत्पादन में भारत की क्षमता बेहतर है। यहां खुद का एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है जहां उत्पादन की खपत हो जाएगी और आर्थिक चक्र की गति पश्चिमी देशों के मुकाबले सुस्त नहीं होगा। वहीं जब वहां हालात सुधरेंगे तो निर्यात के मोर्चे पर भी भारत आगे रह सकता है।

देश में जिन उत्पादों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को शुरू किया गया है उनमें कई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का अहम हिस्सा हैं। दुनियाभर में बिना सेमीकंडक्टर के करीब-करीब सभी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की काम करना संभव नहीं होता है। भारत भी इस दिशा में काम करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है। एक बार देश में इसका उत्पादन युद्धस्तर पर शुरू हो गया तो उसके बाद निर्यात में बड़ा उछाल देखने को मिलेगा। भारत इसके और दूसरे तमाम उत्पादों के निर्यात की मजबूती से तैयारी भी कर रहा है। कई देशों के साथ करार पर बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है।

मुक्त व्यापार की दिशा में बढ़ते कदम

भारत ने करीब 13 देशों से मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। वहीं 6 तरजीही करार किए गए हैं। इसके जरिए भारत के उत्पादों को एक निश्चित बाजार मिलेगा जिसका मतलब ये होगा कि अगर देश में उत्पादन बढ़ाया जाएगा तो उसके निश्चित खरीदार दुनियाभर में मौजूद रहेंगे।

वैश्विक उत्पादों के मुकाबले भारत के उत्पाद किफायती हों इसका भी बाकायदा ख्याल रखा जा रहा है। देश को पांच ट्रिलियल डॉलर की इकोनॉमी बनाने के उद्देश्य से गतिशक्ति मिशन की शुरुआत की गई है। इसी में लॉजिस्टिक यानि उत्पादों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की व्यापक योजना तैयार करने के बाद उस पर काम शुरू कर दिया गया है। इसके पूरा हो जाने के बाद वैश्विक ग्राहकों को देश के किसी भी जिले से कोई भी सामान मंगाना आसान हो जाएगा और वो देख भी सकेंगे कि उनका सामान कब और कहां पहुंचा और कितनी देर में उनके पास पहुंच जाएगा। इस सब व्यवस्थाओं का मकसद उत्पादों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की लागत घटाना भी है। मौजूदा समय में ये देश की जीडीपी का 14 फीसदी है और इसे घटकर 10 फीसदी के नीचे लाने का लक्ष्य है। ऐसा हो गया तो भारतीय उत्पाद दुनिया के कई देशों के उत्पादों के मुकाबले सस्ते हो जाएंगे जो निश्चित तौर पर देश की कारोबार को बढ़ाएगा। कारोबार बढ़ने और आर्थिक हालात सुधरने की काम में न केवल बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होगा बल्कि लोगों का आर्थिक स्तर भी बेहतर होगा।

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