सोने का भविष्य कैसा है? क्या यह अगले वर्षों तक लाभ देता रहेगा? यहां जानें सभी सवालों के जवाब
भारतीय संस्कृति में स्वर्ण बेमिसाल है। इन दिनों उसकी कीमत में बहुत तेजी देखी गई है। कीमत उछलकर 50 हजार रुपये प्रति तोले के करीब पहुंच गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ? आज निवेश के बाकी क्षेत्रों की क्या स्थिति...
भारतीय संस्कृति में स्वर्ण बेमिसाल है। इन दिनों उसकी कीमत में बहुत तेजी देखी गई है। कीमत उछलकर 50 हजार रुपये प्रति तोले के करीब पहुंच गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ? आज निवेश के बाकी क्षेत्रों की क्या स्थिति है? सोने में ऐसा क्या है? सोना आखिर क्यों निवेशकों की पहली प्राथमिकता बन जाता है? ऐसे ही सवालों के जवाब खोज रही
विवेक कौल की रिपोर्ट..
क्या हुआ?
कोरोना के समय जब बाकी तरह के निवेश ज्यादा खतरा महसूस कर रहे हैं, तब सोने की मांग बढ़ी है। बैंकों की बचत योजनाओं पर मिलने वाले ब्याज में कमी आई है। शेयरों में ज्यादा कमाई नहीं है। संपत्ति में निवेश से भी कोई खास उम्मीद नहीं है। जाहिर है, सोना मांग में है।
क्यों हुआ?
मुद्रित धन की मात्रा दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से बढ़ी है। कागजी मुद्रा से अर्थव्यवस्था को भले संभाला जा सकता है, लेकिन उसमें तेजी लाने के तरीके और कारण दूसरे हैं। जैसे-जैसे धन की उपलब्धता बढ़ती है, वैसे-वैसे सोने की मांग तेज होती है।
- 4,990 रुपये है दिल्ली में प्रति ग्राम सोने की कीमत
- 52.6 रुपये है भारत में प्रति ग्राम चांदी की कीमत
- 2,936 रुपये है प्रति ग्राम प्लैटिनम की कीमत
- 3.25 लाख रुपये है प्रति ग्राम हीरे की कीमत
लू 16वीं सदी में पहली बार यूरोप पहुंचा था और उसकी पकड़ बहुत धीमी थी। कई ताकतों ने इसका विरोध भी किया था, जिसमें पादरी भी शामिल थे। उन्होंने आलू खाने से इसलिए मना किया था, क्योंकि बाइबिल में आलू का उल्लेख नहीं है। पर जब युद्ध हुआ, तो आलू उगाने वाले किसानों को इसकी खेती में सार दिखा। मैट रिडले हाउ इनोवेशन वर्क्स में लिखते हैं, ‘हमलावर सेनाओं ने संग्रहित अनाज और खलिहान लूट लिए। फसलों को रौंद दिया’। लेकिन विनम्र आलू इसलिए बच गया, क्योंकि वह जमीन के नीचे था। उसे उखाड़कर नष्ट करने में सैनिकों को बड़ी परेशानी थी। इसलिए युद्ध के दौरान भी जीवित बचा आलू बेहतर भोजन साबित हुआ, जिसके कारण किसानों के बीच आलू बोने की आदत फैलती गई।
साफ है, लोगों को आलू के महत्व का एहसास तभी हुआ, जब मुश्किल दौर आया। इसी धारा में आज लोग एक निवेश के रूप में सोने के महत्व को महसूस करते हैं। पीली धातु अर्थात स्वर्ण ने पिछले 18 महीनों में लगभग 53 प्रतिशत लाभ दिया है। सोने का पुराना भाव अब इतिहास की बात है। सोने का भविष्य कैसा है? क्या यह अगले वर्षों तक लाभ देता रहेगा? ऐसा होने की संभावना बहुत अधिक है। आइए, एक-एक कर इसके कारणों पर नजर डालते हैं।
सोने से अच्छी कमाई
सोने ने रुपये के रूप में हमेशा बेहतर लाभ दिया है। वर्ष 2001 के बाद से सोने ने प्रतिवर्ष 13 प्रतिशत लाभ दिया है। पिछले 15 वर्षों की बात करें, तो सोने ने प्रतिवर्ष 14.7 प्रतिशत का लाभ दिया है। पिछले 10 वर्षों में सोने ने प्रति वर्ष 10.1 प्रतिशत और पिछले पांच वर्षों में प्रति वर्ष 12.8 प्रतिशत का लाभ दिया है। इसलिए यह समझना आसान है कि पूंजी या बचत का एक हिस्सा स्वर्ण में ही लगता है। एक खूबी यह भी है कि इसमें निवेश से किसी का जीवन दांव पर नहीं लगता।
भारत में उत्पादन कम, मांग ज्यादा
साल 2018-19 में भारत ने सिर्फ 1,664 किलोग्राम सोने का उत्पादन किया था। इसका बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है। डॉलर देकर आया सोना भारत में रुपये में खरीदा-बेचा जाता है। विगत वर्षों में डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट आई है और इससे भी सोने की कीमत में तेजी रही है। देश के मुश्किल आर्थिक दौर में प्रवेश करने के साथ, डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य कम रहने की आशंका अधिक है।
नोट की ज्यादा छपाई
विश्व अर्थव्यवस्था के अनुमान अच्छे नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2020 में 4.9 प्रतिशत सिमट जाएगी। ध्यान रहे, महामारी के प्रकोप से पहले ही विश्व अर्थव्यवस्था धीमी हो गई थी। रोनाल्ड-पीटर स्टोफेरल और मार्क वलेक ने शोध रिपोर्ट ‘द डाउनिंग ऑफ द गोल्डन डिकेड’ में लिखा है, विश्व व्यापार सामान्य रूप से प्रतिवर्ष लगभग पांच प्रतिशत के हिसाब से बढ़ता है, जबकि पिछले साल इसमें लगभग 0.5 प्रतिशत की गिरावट हुई है। साल 1980 के बाद यह तीसरी गिरावट है। 1982 और 2009 की बड़ी मंदी के दौरान भी गिरावट देखी गई थी।
पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं नोट छापने की आदी रही हैं। वे इसे आसान मानती हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बात करें, तो उनकी बैलेंस शीट (खाते) 24 जून को 7.08 ट्रिलियन डॉलर की हो गई थी। वहां 26 फरवरी से 24 जून के बीच लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर के बराबर नोटों की छपाई हुई है। ठीक इसी तरह अप्रैल में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी खर्चे निकालने के लिए मुद्रा छापने का फैसला किया। बैंक ऑफ जापान भी दशक भर से मुद्रा की छपाई कर रहा है और उसके खाते या बैलेंस शीट का आकार 428 प्रतिशत बढ़कर 638.6 ट्रिलियन येन हो गया है। ऐसे केंद्रीय बैंकों द्वारा वैश्विक वित्तीय तंत्र में शामिल किए जा रहे नए व आसान पैसे के साथ सोने की कीमत आनुपातिक होती है। पैसा बढ़ता है, तो सोने की कीमत भी बढ़ती है।
महंगाई का कारक
स्टोफेरल और वलेक ने 2019 की अपनी रिपोर्ट ‘इन गोल्ड वी ट्रस्ट’ में दर्ज किया है, ‘मंदी के दौरान शेयर घाटे की भरपाई में स्वर्ण सबसे बेहतर रहा है’। यह बात छिपी नहीं है कि अमेरिकी शेयरों का असर दुनिया भर के शेयर बाजारों पर पड़ता है, इसलिए अगर अमेरिकी शेयर नीचे जाते हैं, तो यह सोने के लिए अच्छी खबर हो सकती है। इसके अलावा, 2008 के वित्तीय संकट के बाद हुई मुद्र्रा की छपाई का असर पारंपरिक रूप से मुद्र्रास्फीति में नहीं हुआ है। उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में तेज वृद्धि नहीं हुई है। लेकिन परिसंपत्ति मुद्रास्फीति (शेयर, अचल संपत्ति और बांड की उच्च कीमतें) दुनिया के बड़े हिस्सों में दिखाई पड़ी है।
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मॉर्गन स्टेनली के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रहे और वर्तमान में येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री स्टीफन रोच ने हाल ही में कहा है कि कोविड-19 के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सरकारों ने अपने खर्च बढ़ा दिए हैं और लोगों को बहुत आर्थिक सहायता दी जा रही है। इसलिए उपभोक्ता मांग अव्यक्त रूप से बढ़ती रहेगी। कोरोना के प्रभाव में कमी होते ही पश्चिमी दुनिया में उपभोक्ता मांग एक धमाके के साथ वापसी करेगी। इससे संभवत: महंगाई को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं रह पाएगी। ऐसा होने की संभावना को ध्यान में रखना होगा। सोने ने हमेशा मुद्रास्फीति के खिलाफ एक कवच के रूप में काम किया है। यह सोने की निरंतर बनी रहने वाली मांग का एक और कारण है।
अन्य निवेश का हाल
अभी अन्य निवेश राशियों का भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं दिख रहा है। सावधि जमा पर ब्याज मोटे तौर पर कम हुआ है। साथ ही, अन्य ब्याज दरें भी कम रहने की संभावना है, क्योंकि आने वाले समय में बैंक की ऋण वृद्धि में और कमी आएगी। बीएसई सेंसेक्स, भारत का प्रमुख शेयर बाजार सूचकांक, उस उच्च स्तर से लगभग 16 प्रतिशत नीचे है, जो उसने इस साल की शुरुआत में मध्य जनवरी में हासिल की थी। साथ ही, शेयर सूचकांक बहुत अस्थिर भी रहा है। 14 जनवरी को यह 41,952.63 अंक के उच्च स्तर तक पहुंच गया था, पर 23 मार्च तक 38 प्रतिशत तक की नाटकीय गिरावट आ गई, इससे शेयर निवेश से होने वाले लाभ में भारी कमी आई।
इसके बाद निवेश के लिए बचती है अचल संपत्ति। देश के कई हिस्सों में पिछले कुछ वर्षों में घरों की कीमतें गिर गई हैं। आरबीआई हाउस मूल्य सूचकांक को देखें, तो घरों ने दिसंबर 2016 और दिसंबर 2019 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 5.1 प्रतिशत लाभ दिया है। सभी लागतों को अगर मिलाकर देखें, तो कुछ वर्षों में देश के अनेक क्षेत्रों में आवास में निवेश से होने वाला लाभ नकारात्मक रहा है। जाहिर है, इससे भी स्वर्ण को फायदा हुआ है। सोने की खासियत रही है, यह तब भी लाभकारी होता है, जब बाकी निवेश अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं।
क्या है निष्कर्ष
1971 के बाद से वैश्विक मौद्रिक प्रणाली एक शुद्ध कागजी व्यवस्था पर आधारित है। जो मौ्र्रिरक प्रणाली 1971 से पहले अस्तित्व में थी, वह सोने और चांदी के समर्थन से चलती थी। अब केंद्रीय बैंकों के माध्यम से सरकारें मनचाहा पैसा बना सकती हैं। पहले यह संभव नहीं था। हम पहले चर्चा कर चुके हैं, 2008 के अंत से बड़े पैमाने पर दुनिया लगातार धन मुद्रण की आदी रही है। दुनिया के कुछ हिस्सों में अब नकारात्मक ब्याज दर देखी जा रही है। बैंक यह नहीं जानते कि उन सभी धन का क्या करना है, जो अभी उपलब्ध हैं। स्टोफरेल और वलेक का कहना है, ‘बचतकर्ता और निवेशक आने वाले समय में अपनी संपत्ति सुरक्षित रखने में मुश्किलों का सामना करेंगे। दुनिया को फिएट मुद्र्राओं की बाढ़ से खतरा है। पैसे के सुरक्षित ठिकाने दुर्लभ हैं। नकारात्मक ब्याज दरों के युग में सोना तेजी से बांड के साथ प्रतिस्पद्र्धा कर सकता है।’ जैसे यूरोपीय लोगों ने कभी विनम्र आलू के महत्व को महसूस किया, निवेशकों और बचतकर्ताओं को सोने के महत्व को महसूस करने की आवश्यकता है और हमेशा इसे अपनी निवेश योजना में रखना चाहिए।
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