'लाल सोना': मार्केट में बढ़ रही नए गोल्ड की डिमांड, आसमान छू रहीं कीमतें
What is Red Gold: तांबे को अब नया सोना या लाल सोना कहा जा रहा है। ऐसा इसलिए नहीं कि यह सोने की जगह लेगा, बल्कि इसलिए कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में इसकी अहमियत बढ़ती जा रही है।
तांबे को अब "नया सोना" कहा जा रहा है। ऐसा इसलिए नहीं कि यह सोने की जगह लेगा, बल्कि इसलिए कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में इसकी अहमियत बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे देश प्रदूषण कम करने (डीकार्बनाइजेशन) और नई तकनीकों की तरफ बढ़ रहे हैं, तांबे की मांग बिजली, क्लीन एनर्जी और डिजिटल दुनिया में छाई हुई है। यही वजह है कि निवेशकों की नजर अब सोने से हटकर तांबे पर टिक गई है।
सोना vs तांबा: दोनों के अपने-अपने दम
तांबे का इस्तेमाल हजारों सालों से हो रहा है। 19वीं सदी में इसकी बिजली चालकता (कंडक्टिविटी) ने टेलीग्राफ और बिजली के जमाने की शुरुआत की। आज अमेरिका में 70 लाख मील तांबे के तार बिछे हैं। वहीं, सोना हमेशा से पैसे की "सुरक्षित जगह" और महंगाई से बचाव का जरिया रहा है। तांबे को "डॉक्टर कॉपर" भी कहते हैं, क्योंकि यह दुनिया की आर्थिक सेहत का हाल बता देता है। 2022 में तांबे का बाजार 183 अरब डॉलर का था, जबकि सोना अप्रैल 2025 में 3358 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, क्योंकि दुनिया में तनाव, जंग और ट्रेड वॉर का डर था।
तांबा और सोना दोनों आसमान पर
केडिया कमोडिटिज के प्रेसीडेंट अजय केडिया के मुताबिक 2025 की पहली तिमाही में तांबा 5.29 डॉलर प्रति पाउंड (11,500 डॉलर प्रति टन) के रिकॉर्ड पर पहुंच गया यानी सालभर में 18% की छलांग। यह पहली बार था, जब तांबे ने 5 डॉलर का आंकड़ा पार किया। सोना भी पीछे नहीं रहा, उसकी कीमतों में 40% का उछाल आया। तांबे के भाव बढ़ने की वजह है, कोविड के बाद मांग बढ़ना, सप्लाई कम होना और देशों के बीच तनाव। 2024 में तांबे की कमी 1,18,000 टन रही, और जनवरी 2025 में हर महीने 19,000 टन की किल्लत हो रही है।
सप्लाई का संकट: खदानें घट रहीं, मांग बढ़ रही
केडिया बताते हैं कि चिली और पेरू, जो दुनिया का 40% तांबा पैदा करते हैं, अब पुरानी खदानों, मजदूरों की हड़तालों और पानी की कमी से जूझ रहे हैं। 2024 में खनन 4% बढ़ा, लेकिन 2027 तक फिर कमी शुरू होने का अंदेशा है। कंपनियां नई खदानें खोलने से डर रही हैं। एक नई खान लगाने में 16 साल लग जाते हैं। Ero Copper के CEO ने 2025 में चेतावनी दी: "तांबे का संकट आ गया है। अब या तो नई टेक्नोलॉजी चाहिए या फिर कीमतें आसमान छूएंगी।"
जियोपॉलिटिकल टेंशन: अमेरिका का टैरिफ, चीन की भूख
2025 में अमेरिका ने तांबे पर टैरिफ लगाने की धमकी दी, जिससे उसके घरेलू बाजार में भाव चढ़े। रूस-यूक्रेन जंग और लैटिन अमेरिका में "हमारे संसाधन हमारे" जैसे नारों ने भी सप्लाई चेन हिला दी है। वहीं, चीन, जो दुनिया का 50% तांबा खपत करता है, ने 2024 के अंत में अपनी अर्थव्यवस्था को उछालने के लिए कदम उठाए, जिससे तांबे की मांग और बढ़ी।
तांबे की असली ताकत अब नजर आ रही है
इलेक्ट्रिक वाहन (EVs): एक EV में पेट्रोल-डीजल कार से 2.4 गुना ज्यादा (53 किलो) तांबा लगता है। 2030 तक EVs और चार्जिंग स्टेशनों से 28 लाख टन सालाना मांग होगी।
सोलर-विंड एनर्जी: कोयले वाले प्लांट्स के मुकाबले हर मेगावाट बिजली के लिए 2.5 से 7 गुना ज्यादा तांबा चाहिए। एक विंड टर्बाइन में ही कई टन तांबा लग जाता है।
ग्रिड और स्मार्ट सिटी: 2050 तक सिर्फ बिजली ग्रिड के लिए 427 मिलियन टन तांबा चाहिए होगा।
2050 तक मांग दोगुनी होगी
एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2020 में 28 मिलियन टन मांग थी, जो 2040 तक 40.9 मिलियन टन हो जाएगी। BHP के मुताबिक, 2050 तक मांग 70% बढ़कर 50 मिलियन टन सालाना हो सकती है। वहीं, गोल्डमैन सैक्स ने चेतावनी दी है कि तांबा 15,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच सकता है यानी "कॉपर नया सोना बन जाएगा।"
सोना मंदी में सुरक्षित है, तांबा तरक्की में चमकता है
सोना मंदी में सुरक्षित है, तांबा तरक्की में चमकता है। पर अब दोनों एक-दूसरे के साथी बन गए हैं। जहां सोना बचाव का ठिकाना है, वहीं तांबा नई अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। EVs, AI, स्मार्ट सिटी, और रिन्यूएबल एनर्जी, इन सबके बिना आगे बढ़ना नामुमकिन है। तो अगर आप लॉन्ग टर्म की सोचते हैं, तांबे में अवसर सिर्फ अच्छा नहीं, बल्कि जरूरी है। जैसे कहते हैं, "तांबा नया सोना नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा है।"