गोल्ड लोन देने वाली कई बड़ी कंपनियों में आरबीआई ने खामियां पाईं, अब शिकंजा कसने की तैयारी
- आरबीआई ने आईआईएफएल फाइनेंस के गोल्ड लोन के कारोबार पर रोक लगा दी। माना जा रहा है कि अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर भी आरबीआई की कार्रवाई देखने को मिल सकती है और वे जांच के दायरे में आ सकती हैं।
गोल्ड लोन देने के मामले में कई खामियां सामने आने के बाद आरबीआई और सतर्क हो गए हैं। हालिया कार्रवाई में आरबीआई ने आईआईएफएल फाइनेंस के गोल्ड लोन के कारोबार पर रोक लगा दी। माना जा रहा है कि अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर भी आरबीआई की कार्रवाई देखने को मिल सकती है और वे जांच के दायरे में आ सकती हैं।
बताया जा रहा है कि आरबीआई ने न केवल आईआईएफएल बल्कि अन्य एनबीएफसी को भी 20 हजार रुपये से अधिक का नकद कर्ज देते हुए पाया है। कुछ मामलों में यह राशि एक लाख रुपये से भी अधिक भी रही है। नियमों के मुताबिक ऐसी कंपनियों को 20 हजार रुपये से अधिक का कर्ज नकद में देने की अनुमति नहीं है। इसका उल्लंघन करने पर आयकर विभाग और आरबीआई आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।
कई बड़ी कंपनियों ने नियमों का ताक पर रखा
बताया जा रहा है कि कई एनबीएफसी और गोल्ड लोन देने वाली कंपनियां अब भी नकद में लाखों रुपये दे रही हैं। इसमें कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने जरूरी नियमों को ताक पर रख कर लोगों को गोल्ड लोन उपलब्ध कराए हैं। इसके लिए नकली दस्तावेजों का भी इस्तेमाल किया गया है।
ब्याज दरों में भारी अंतर
आरबीआई ने यह भी पाया है कि बैंक और एनबीएफसी के गोल्ड लोन की ब्याज दरों और प्रोसेसिंग फीस में भारी अंतर है। सरकारी बैंक 8.65 से 11 फीसदी तक ब्याज पर पर कर्ज दे रहे हैं, वहीं कुछ निजी बैंक सालाना 17 फीसदी तक का ब्याज वसूल रहे हैं। वहीं, एनबीएफसी कंपनियों के लोन की ब्याज दरें 36 फीसदी तक जा रही हैं। प्रोसेसिंग फीस में भारी अंतर है।
दो कंपनियों का विशेष ऑडिट होगा
आईआईएफएल फाइनेंस लिमिटेड और जेएम फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड (जेएमएफपीएल) को नियामकीय उल्लंघन के मामले में एक विशेष ऑडिट का सामना करना पड़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ऑडिटर की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है। रिजर्व बैंक ने इन दोनों गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विशेष ऑडिट के लिए ऑडिटर की नियुक्ति के लिए दो अलग-अलग निविदाएं जारी की हैं।
इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय बैंक ने नियामकीय दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं करने पर इन दोनों इकाइयों पर अंकुश लगाया था। जेएम फाइनेंशियल के मामले में आरबीआई ने पाया था कि कंपनी विभिन्न प्रकार की हेरफेरी में शामिल थी। जिसमें उधार दिए गए धन का उपयोग करके अपने स्वयं के ग्राहकों के एक समूह को विभिन्न आईपीओ के लिए बोली लगाने में बार-बार मदद करना भी शामिल था।
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