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4 सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है मोदी सरकार, शेयर के उछले भाव

  • PSU Banks: वित्त मंत्रालय आने वाले महीनों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक में हिस्सेदारी कम करने के लिए मोदी कैबिनेट की मंजूरी मांग सकता है। इस खबर के बाद इनके शेयरों में उछाल है।

Drigraj Madheshia लाइव हिन्दुस्तानTue, 19 Nov 2024 12:34 PM
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मोदी सरकार देश के बाजार नियामक द्वारा अनिवार्य पब्लिक शेयरहोल्डिंग नॉर्म्स का अनुपालन करने के लिए चार सरकारी बैंकों में अल्पमत हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है। यह जानकारी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने एक सरकारी सूत्र के हवाले से दी है। सूत्र ने कहा कि वित्त मंत्रालय आने वाले महीनों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक में हिस्सेदारी कम करने के लिए मोदी कैबिनेट की मंजूरी मांग सकता है। इस खबर के बाद मंगलवार को पीएसयू बैंकों, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक के शेयरों में 4% से अधिक की तेजी आई।

आज इंडियन ओवरसीज बैंक के शेयर की कीमत में 4.4% तक की उछाल आई, जबकि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक के शेयरों में 3% से अधिक की तेजी आई।

किस बैंक में सरकार की कितनी हिस्सेदारी

बीएसई की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक सितंबर के अंत तक भारत सरकार के पास सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 93% से अधिक हिस्सेदारी थी। इंडियन ओवरसीज बैंक में 96.4%, यूको बैंक में 95.4% और पंजाब एंड सिंध बैंक में 98.3% हिस्सेदारी सरकार की थी।

कब और कैसे हिस्सेदारी बेचेगी सरकार

सूत्र ने कहा कि विचाराधीन योजना खुले बाजार में बिक्री के प्रस्ताव (OFS) के जरिए हिस्सेदारी बेचने की है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के तहत सूचीबद्ध कंपनियों के लिए 25% सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखना आवश्यक है, लेकिन उसने सरकारी स्वामित्व वाली फर्मों को अगस्त 2026 तक इन मानदंडों को पूरा करने से छूट दी है।

सूत्र ने इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की कि क्या सरकार नियामक की समय सीमा को पूरा कर पाएगी या क्या वह आगे विस्तार की मांग करेगी। अधिकारी ने कहा कि बिक्री का समय और मात्रा बाजार की स्थितियों के आधार पर तय की जाएगी। पहले भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पूंजी जुटाने के लिए क्यूआईपी शुरू किया है, जिससे सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम हो गई है।

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