स्टील आयात पर निर्भरता से बचने की जरूरत, सरकार की ओर से कंपनियों को सलाह
- स्टील सेक्रेटरी संदीप पौंड्रिक ने कहा कि एक प्राथमिकता अधिक क्षमता सृजित करना है। भारत में वर्तमान में करीब 20 करोड़ टन स्टील उत्पादन क्षमता है। चालू वित्त वर्ष में इसमें लगभग दो करोड़ टन की वृद्धि की गई है।
आयात पर निर्भरता से बचने के लिए भारत को अगले 6 साल के लिए स्टील मैन्युफैक्चरिंग कैपिसिटी में 10 करोड़ टन की वृद्धि का लक्ष्य रखना चाहिए। यह बात भारत सरकार के स्टील सेक्रेटरी संदीप पौंड्रिक ने कही है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर स्टील की मांग में गिरावट और क्षमता से अधिक उत्पादन ने घरेलू उद्योग को प्रभावित किया है। बता दें कि संदीप पौंड्रिक शुक्रवार को इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
क्या कहा स्टील सेक्रेटरी ने
संदीप पौंड्रिक ने कहा कि एक प्राथमिकता अधिक क्षमता सृजित करना है। भारत में वर्तमान में करीब 20 करोड़ टन स्टील उत्पादन क्षमता है। चालू वित्त वर्ष में इसमें लगभग दो करोड़ टन की वृद्धि की गई है। पौंड्रिक ने स्टील सेक्टर के नजरिये से 2047 में भारत के विकसित बनने के विषय पर आयोजित सत्र में कहा कि इसलिए हमें अगले छह वर्षों में 10 करोड़ टन क्षमता और जोड़नी होगी। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम मूल रूप से आयात पर निर्भर हो जाएंगे।
सरकार का भी लक्ष्य
राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) 2017 के अंतर्गत सरकार ने 2030 तक भारत की समग्र इस्पात विनिर्माण क्षमता को 30 करोड़ टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। सचिव ने कहा कि एक अन्य प्राथमिकता घरेलू इस्पात उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाए रखना है, क्योंकि चीन, अमेरिका और यहां तक कि यूरोप सहित अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में खपत स्थिर है तथा विश्व में उत्पादन क्षमता अत्यधिक है।
स्टील की कीमतें प्रतिस्पर्धी हों
उन्होंने कहा कि यदि हम अपने घरेलू उद्योग को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो घरेलू स्टील की कीमतें प्रतिस्पर्धी होनी चाहिए, ताकि स्टील इंडस्ट्री में पर्याप्त मुनाफा हो, ताकि वे क्षमता विस्तार में निवेश कर सकें। यदि उनके पास मुनाफा नहीं होगा तो निवेश कौन करेगा। पौंड्रिक ने कहा कि जैसे-जैसे विश्व कम कार्बन उत्सर्जन की ओर बढ़ रहा है, घरेलू उद्योग को भी ग्रीन स्टील मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया की ओर बढ़ना होगा। अधिकारी ने कहा कि अगर हम इस क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी बनना चाहते हैं, तो हमें कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले तरीकों और उत्पादन पद्धतियों को अपनाना होगा। इसलिए, यह दूसरी प्राथमिकता है।
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