रेपो रेट में कटौती से कैसे कम होती है आपकी EMI, क्या सस्ते होंगे लोन?
- Repo Rate Cut: आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 फीसद की कटौती की है। जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो इसका सीधा प्रभाव बैंकों की उधार लेने की लागत पर पड़ता है। चलिए समझते हैं रेपो रेट के कम होने से ईएमआई (EMI) कैसे कम होती है…

आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पहली बैठक में लिए गए फैसलों का ऐलान करते हुए रेपो रेट में 0.25 फीसद की कटौती की है। इससे आने वाले दिनों में आपको सस्ते लोन का तोहफा मिल सकता है। साथ में आपकी चल रही ईएमआई भी कम हो सकती है। बता दें रेपो रेट (Repo Rate) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा कॉमर्शियल बैंकों को उधार देने के लिए लगाया जाने वाला ब्याज दर है। जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो इसका सीधा प्रभाव बैंकों की उधार लेने की लागत पर पड़ता है। चलिए समझते हैं रेपो रेट के कम होने से ईएमआई (EMI) कैसे कम होती है...
1. कम होती है बैंकों की उधार लागत: जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो बैंकों को रिजर्व बैंक से पैसे उधार लेने की लागत कम हो जाती है। इससे बैंकों के पास अधिक सस्ता लोन उपलब्ध कराने का अवसर मिल जाता है।
2. बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कमी: बैंक इस सस्ते पैसे का लाभ अपने ग्राहकों को देते हुए होम लोन, कार लोन और अन्य लोन पर ब्याज दरों (लोन इंटरेस्ट रेट) में कमी करते हैं।
3. ईएमआई पर प्रभाव: बड़ौदा यूपी बैंक के ब्रांच मैनेजर शिवम पांडेय ने बताया कि जब लोन पर इंटरेस्ट रेट कम होता है, तो ग्राहकों की EMI (मासिक किस्त) भी कम हो जाती है। ईएमआई लोन की रकम, ब्याज दर और लोन की अवधि पर निर्भर करती है। ब्याज दर कम होने से ईएमआई की राशि कम हो जाती है, क्योंकि ब्याज का भुगतान कम होता है।
होम लोन की EMI पर कटौती का असर
ब्याज दर में 0.25% की कटौती का मतलब है कि होम लोन लेने वालों के पास दो विकल्प होंगे या तो EMI में कमी करवाएं या लोन चुकाने का टाइम कम करवाएं। 20 साल के लिए लिए गए 30 लाख रुपये के होम लोन पर अगर ब्याज दर 9% से घटकर 8.75% हो जाती है तो ईएमआई 26,992 रुपये से घटकर 26551 रुपये हो जाएगी। यानी ईएमआई 480 रुपये या 1.78% कम हो जाएगी।
मान लें कि आपने एक साल पहले 20 साल के लिए 9% पर 50 लाख रुपये का होम लोन लिया था। इस मामले में, लोन की अवधि के दौरान चुकाई गई कुल EMI लगभग 58 लाख रुपये होगी। रेपो रेट में कटौती का मतलब है कि अगर पूरी कटौती ट्रांसमिट हो जाती है तो, इस मामले में, आपका लोन पहले वर्ष में 9% पर है और उसके बाद दर में कटौती के अनुपात में कम हो जाता है।
अगर रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती होती है, तो आपका ऋण 8.5% पर रीसेट हो जाता है। आपका कुल ब्याज लगभग 8 लाख रुपये कम हो जाएगा। आपकी कुल अवधि घटकर 222 महीने रह जाएगी, जिसका अर्थ है कि आपका लोन 18 महीने पहले समाप्त हो जाएगा।
बैंक के पास लोन देने के लिए पैसे कहां से आते हैं
बैंक के पास लोन देने के लिए पैसे कहां से आते हैं तो मोटे तौर पर इस पैसे का सबसे बड़ा सोर्स होता है डिपॉजिटर्स का पैसा। आप हम पैसा सेविंग अकाउंट में जमा रखते हैं, जिस पर ब्याज का रेट कम होता है और बैंक यही पैसा लोन के जरिए ज्यादा रेट पर देते हैं।
बैंक ग्राहकों के डिपॉजिट के सारे पैसे लोन में नहीं दे सकते। बैंआरबीआई करेंसी जारी करने के अलावा बैंकों के नियम क़ायदे भी तय करता है। जहां रिजर्व बैंक कहता है बैंकों को एक निश्चित रकम वहां लगाना होती है। CRR यानी कैश रिजर्व रेश्यो और SLR यानी स्टेचुटरी लिक्विडिटी रेश्यो यही काम करते हैं।
डिपॉजिट और लोन के अनुपात में बैंकों को हमेशा निश्चित रकम कैश में रखना होती है (CRR) और कुछ रकम सरकारी बॉन्ड, सोने में। इन दोनों रेश्यो के पीछे आइडिया ये है कि बैंक डूब ना जाएं , रिजर्व बैंक इसे घटाता-बढ़ाता रहता है। मोटा अनुमान है कि सौ रुपये डिपॉजिट में लेने के बाद बैंक के पास ₹60 अपनी मर्जी से लोन देने के लिए बचते हैं।
महंगाई और ब्याज दरों में नाता
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार जब कर्ज सस्ता होता है तो ईएमआई होने की वजह से लोग कर्ज लेकर खुलकर खर्च करते हैं। लोन उपभोक्ताओं की खरीदने की क्षमता बढ़ा देता है। वहीं, जब रेपो रेट बढ़ता है तो कर्ज महंगा होता है। ऐसे में लोग बहुत संभलकर खर्च करते हैं। साथ ही कंपनियां भी विस्तार पर ज्यादा खर्च नहीं करती हैं। इससे मांग में नरमी के साथ महंगाई भी घटती है।
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