कच्चा तेल फेर सकता है ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद पर पानी
- RBI Monetary Policy: सब्जियों और दालों की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। वहीं, अब पश्चिम एशिया संकट के और बिगड़ने की संभावना है, जिसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा।
पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है। इसका असर आने वाले दिनों में घरेलू स्तर पर महंगाई बढ़ने के तौर पर दिख सकता है। माना जा रहा है कि इन स्थितियों को देखते हुए आरबीआई इस सप्ताह होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा की बैठक में प्रमुख ब्याज दर (Repo Rtae) को एक बार फिर यथावत रख सकता है।
पहले विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई थी कि अमेरिकी फेड द्वारा बहुप्रतीक्षित ब्याज दर में कटौती की शुरुआत के बाद आरबीआई भी यह सिलसिला जल्द शुरू कर सकता है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास 9 अक्टूबर को तीन दिन चलने वाली एमपीसी बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा करेंगे।
खाद्य महंगाई की चिंता बरकरार विशेषज्ञों का कहना है कि खुदरा मुद्रास्फीति बीते दो माह से आरबीआई के दायरे चार प्रतिशत के दायरे में बनी हुई है, लेकिन खाद्य महंगाई को लेकर चिंता बरकरार है। सब्जियों और दालों की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। वहीं, अब पश्चिम एशिया संकट के और बिगड़ने की संभावना है, जिसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि हमें रेपो दर या एमपीसी के रुख में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है। इसका कारण यह है कि सितंबर और अक्टूबर में मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से ऊपर रहेगी। इसके अलावा मुख्य मुद्रास्फीति धीरे-धीरे बढ़ रही है। खुदरा मुद्रास्फीति में खाद्य महंगाई का भार 46 फीसद है।
कच्चे तेल के बढ़ते दाम का ऐसे असर संभव
पिछले हफ्ते ब्रेंट क्रूड की कीमतें गिरकर 70-71 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई थीं, जो अगस्त के आखिरी हफ्ते में 80 डॉलर प्रति बैरल थी। इस बीच ईरान-इजरायल के बीच संघर्ष बढ़ने से कीमत बढ़कर 75 डॉलर पहुंच गई, जिसके और ऊपर जाने की आशंका है। देश के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में ईंधन का भार सात प्रतिशत है। ईंधन के दाम बढ़ने से महंगाई में उछाल का जोखिम बना हुआ है। आरबीआई कच्चे तेल की कीमतों पर लगातार निगाह बनाए हुए है।
इन देशों ने घटाई है ब्याज दर
हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.5 प्रतिशत की कमी की है और कटौती को आगे जारी रखने के संकेत दिए हैं। जापान ने भी ब्याज दरें घटाई थीं। इसे देखते हुए विशेषज्ञों का मानना था कि आरबीआई इसका अनुसरण कर सकता है, क्योंकि उसने फरवरी 2023 से रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा है।
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