जीवन में सफलता के लिए जरूरी है मेहनत, लगन और ईमानदारी : योगेश अग्रवाल
रिमझिम इस्पात आज देश के अग्रणी ब्रांड्स में से एक है। इसकी सफलता की कहानी भी अनोखी है। योगेश अग्रवाल के संघर्ष और सफलता की कहानी युवाओं के लिए काफी प्रेरक है।
रिमझिम इस्पात आज देश के अग्रणी ब्रांड्स में से एक है। इसकी सफलता की कहानी भी अनोखी है। योगेश अग्रवाल के संघर्ष और सफलता की कहानी युवाओं के लिए काफी प्रेरक है।
सफलता के लिए निरंतरता जरूरी : योगेश अग्रवाल
रिमझिम इस्पात लिमिटेड के सीएमडी योगेश अग्रवाल कहते हैं कि सफलता हर कोई चाहता है और इसके लिए जी तोड़ मेहनत भी करता है। मेहनत, लगन और ईमानदारी, ये तीन वो चीजें हैं जो सफल होने के लिए बहुत जरूरी हैं। सोशल मीडिया के जमाने में आज हर कोई रातों-रात करोड़पति-अरबपति बनना चाहता है। लेकिन वास्तविक जीवन इससे बहुत अलग है। सर्विस हो या बिजनेस, आज के युवा यदि पूरी मेहनत से काम करें और अपनी पूरी क्षमता से काम करें तो सफलता निश्चित ही कदम चूमेगी।
समाज सेवा में विश्वास
उद्योगपति योगेश अग्रवाल समाज सेवा में विश्वास रखते हैं। वह समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं। योगेश क्षेत्र के लोगों को शुद्ध जल, भोजन और गुणवत्तायुक्त चिकित्सा व शिक्षा आदि उपलब्ध कराने के लिए हर वक्त प्रयासरत रहते हैं। वह समाज को बेहतर बनाने के लिए कृतसंकल्पित हैं। जरूरतमंद लोगों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने और उनके खुशहाल जीवन के लिए योगेश अग्रवाल बेहद सक्रिय नजर आते हैं। बच्चों की शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए भी योगेश अग्रवाल बेहतर कार्य कर रहे हैं। कोरोना काल में भी उन्हीनें जरूरतमंदों की मदद की।
आइए जानते हैं योगेश अग्रवाल के सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी -
• कैसे शुरु हुआ सफलता का यह सफर ?
वर्ष 1986 में हमारी यात्रा शुरू हुई। हमने हमीरपुर जिला के भरुआ सुमेरपुर को चुना, जो नॉर्थ इंडिया के बैकवर्ड इलाके यानी बुंदेलखंड का हिस्सा है। 1987 में मेरठ से कानपुर आए। 1988 में सूखा पड़ा तो बिजली की दिक्कत आई। फिर भी मार्च 89 में प्रोडक्शन शुरू हो गया। इसके बाद पूरी मेहनत, लगन, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया और लोन को भी समय से चुकाया।
वर्ष 1990 में रोलिंग मिल की योजना पर कार्य किया और 1991 में वंदना स्टील में एक्सपैंशन कर लिया। 1992 में जूही और फिर 1994 में रिमझिम इस्पात की शुरुआत की जिसमें उत्पादन 1996 में शुरू हुआ। 1997 में स्टेनलेस स्टील का उत्पादन शुरू कर दिया। 2006 में हमने उन्नाव में फैक्ट्री लगाई और 2009 में रिमझिम इस्पात में उत्पादन शुरू कर दिया।
रिमझिम स्टेनलेस में हम वायर रोड बनाते हैं और एचआर क्वायल, सीआर क्वायल का उत्पादन करते हैं। आज हम स्टेनलेस स्टील वायर रोड के उत्पादन के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर हैं और भारत में नंबर वन हैं। हम भारत में स्टेनलेस स्टील के कुल उत्पादन में दूसरे स्थान पर हैं। नवंबर 2021 में हमने उड़ीसा में एक कंपनी बीआरजी आयरन एंड स्टील का अधिग्रहण किया, जिसका पिछले हफ्ते ही उत्पादन शुरू हुआ है। इससे हमारी प्रोडक्शन कैपेसिटी डबल हो जाएगी।
• इस दौरान दिक्कतें भी बहुत आई होंगी?
दिक्कतें बहुत आईं, लेकिन हम आगे बढ़ते रहे। हम लोग जब मेरठ से हमीरपुर आए तब काफी दूरी थी। न संचार माध्यम था, न कोई सुविधा थी और न ही कोई अनुभव था। अच्छा फाइनेंशियल सपोर्ट भी नहीं था, लेकिन हमने हार नहीं मानी। इंडस्ट्री में कई प्रतिस्पर्धी टांग खींचने में लगे रहते हैं। बाजार के बारे में सही जानकारी न देना, सरकारी विभाग में शिकायत करना, ये सब होता रहा । कुछ लोगों ने हमें पीछे करने की काफी कोशिश की, लेकिन हम समय के साथ आगे बढ़ते रहे।
• अगले 5 साल का लक्ष्य क्या है ?
हमारा लक्ष्य भारत में प्राइवेट इंडस्ट्री मैन्युफैक्चरिंग अनलिस्टेड कैटेगरी में अग्रणी बनना है। इसके अलावा पावर जेनरेशन में भी कार्य की योजना है। साथ ही और भी विविधतापूर्ण कार्य करेंगे।
जो स्टील स्क्रैप इस्तेमाल होता है, उसके प्रतिस्थापन के लिए हम स्पंज आयरन उत्पादन भी शुरू करना चाहते हैं। स्टेनलेस स्टील में हमें भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में नाम कमाना है। हम पूरे विश्व में एसएस का निर्यात करते हैं, जिसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा यूरोप में होता है रूस और यूक्रेन में भी जाता है। वर्तमान में रूस और यूक्रेन में चल रहे युद्ध की वजह से वहां के बाजार में अभी सामग्री नहीं जा पा रही है। हालांकि, हमें पूरी उम्मीद है कि युद्ध जल्दी खत्म होगा और निर्यात शुरू होगा। हम चाहते हैं कि निर्यात में हमारी कंपनी का योगदान यूं ही बढ़ता रहे। यह गर्व की बात है कि हम आज दुनिया के कोने-कोने में अपने उत्पाद भेज रहे हैं। हमारा फ्लैट उत्पाद रेलवे में काफी इस्तेमाल होता है। इसके अलावा 2 मीटर वाइड एसएस की प्लेट बनाने की सुविधा पूरे भारत में सिर्फ हमारे पास है।
• कोरोना काल में आपने मुफ्त में ऑक्सीजन सिलेंडर बांटे और कई तरह से चैरिटी की, इससे आपको कितना सुकून मिला ?
उस वक्त स्थितियां भयावह थीं। ऑक्सीजन की डिमांड बहुत ज्यादा थी।हमें लगा कि इस समय आगे आना चाहिए, मैं खुद कानपुर के कमिश्नर राजशेखर जी से मिला। हमारे पास लखनऊ से भी फोन आया कि आपके पास ऑक्सीजन प्लांट है तो मदद कीजिए, हमने ऑक्सीजन सिलेंडर भरने शुरू किए। सोशल मीडिया के जरिए इसे वायरल किया। तब एक सिलेंडर दस हजार तक बिक रहा था हमने करीब एक लाख सिलेंडर लोगों को मुफ्त दिए। जब हम समाज सेवा करते हैं तो मन में संतुष्टि का भाव आता है।
• स्टार्ट-अप करना कितना मुश्किल है? इस संबंध में युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
आज सोशल मीडिया का जमाना है। सभी चीजें गूगल/ इंटरनेट पर अवेलेबल हैं। ऐसे में पहले की तुलना में अब इंडस्ट्री या किसी बिजनेस की शुरुआत करना ज्यादा उन्नत हैं। आज सीए भी पहले की तुलना में ज्यादा पेशेवर हैं। फाइनेंसिंग के विषय में जानकारी लेना आसान है। पहले बहुत ज्यादा रेट ऑफ इंट्रेस्ट होता था। बैंक तो लोन देते ही नहीं थे। नॉर्मली पिक-अप या यूपीएफसी लोन देते थे। आज सरकारी और प्राइवेट बैंक के अलावा एनबीएफसी आसानी से फाइनेंस कर देते हैं।
हालांकि, स्टार्ट-अप का जो नारा है कि आप नौकरी दीजिए नौकरी मत करिए, इसमें मेरा विचार थोड़ा भिन्न है। स्टार्ट-अप करने से पहले साल-दो साल पहले अनुभव लेना जरूरी है, अगर आपके परिवार में कोई बिजनेसमैन नहीं है। अगर बिजनेस है तो आप वहां से अनुभव ले सकते हैं। इससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
• आज युवा मन में भटकाव की स्थिति देखी जा रही है। इस बारे में आपके क्या विचार हैं? बेहतर करियर कैसे बनाएं?
आज हर कोई रातों-रात करोड़पति बनना चाहता है।फिल्मों से बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन्हें लगता है कि जैसे 3 घंटे में फिल्म का हीरो अरबपति हो जाता है, वैसा वास्तविक जीवन में भी हो सकता है। मेरी राय कि युवा जो भी काम करना चाहते हैं चाहे वो बिजनेस हो या सर्विस, पूरी मेहनत से करें। धीरे-धीरे आप सफल हो जाएंगे। हमे दूसरे का जीवन नहीं, अपनी क्षमता और वित्तीय स्थिति देखनी चाहिए। रही बात बेरोजगारी की तो मेरा मानना है कि आज भी अच्छे स्टाफ की कमी है। मेहनती लोग नहीं मिलते। आखिरकार अगर हम इंडस्ट्री में जिम्मेदारी से काम नहीं करते होते तो इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंच सकते थे। बिजनेस छोड़कर बाकी दुनियादारी करते तो बिजनेस खत्म हो चुका होता। सफलता के लिए जिम्मेदारी, मेहनत, लगन और ईमानदारी बहुत जरूरी है।
• बिना किसी अनुभव के शुरुआत करना काफी मुश्किल रहा होगा?
हमारे परिवार में कोई बिजनेसमैन नहीं था तो ऐसा कोई अनुभव भी नहीं था। जब मैं यहां आया था, तब मेरी उम्र 21 वर्ष थी। जब हमने फैक्ट्री लगाने की योजना बनाई क, तब मेरे एक संबंधी जिनकी ऋषिकेष में स्टील की फैक्ट्री थी, वहां जाकर मैंने एक महीने काम किया, वहां कर्मियों के बीच रहकर मैंने काम सीखा। इस सीखने की प्रक्रिया में मेरी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई बेहद काम आई।
• मेक इन इंडिया में भागीदारी को कैसे देखते हैं?
सरकार का यह प्रोजेक्ट अच्छा है और हम उम्मीद करते हैं कि इस पर देश आगे बढ़ेगा। जिस तरह चाइना पूरी दुनिया में अपने उत्पाद निर्यात कर रहा है, उसी दिशा में भारत को भी आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि, इसके लिए सरकार का साथ बेहद जरूरत है। सरकार और बेहतर नीतियां बनाए और जो उत्पाद आयत हो रहे हैं, उन पर रोक लगे। भारतीय उद्योगों के उन्नयन के बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते। यदि हम धीमी गति से चलेंगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। जिन उत्पादों के आयात की जरूरत नहीं है, उन्हें रोका जाना चाहिए और यहां के उद्योग धंधों की सहायता करनी चाहिए।
• पेशेवर और निजी जीवन में परिवार का कितना सहयोग मिला?
परिवार के सहयोग के बिना इतनी लंबी यात्रा और इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था। जब हमने अपने व्यवसाय की शुरुआत की तो हमारे बड़े भाई मुकेश अग्रवाल साथ में थे। बाद में छोटे भाई ने भी सहयोग किया। अब बड़ा बेटा साथ में है। वो अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय दोनो स्टार पर व्यवसाय देखता है। इंडस्ट्री टेकओवर उसी की जिम्मेदारी है। इसके अलावा पत्नी और छोटे बेटे का भी सहयोग निरंतर मिलता है। मेरी बेटी गरिमा अग्रवाल भी व्यवसाय को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण राय देती है। हम सभी एक साथ छुट्टियों पर भी जाते हैं। सभी के बीच संबंध बेहद मधुर हैं।
• यदि उद्योगपति न होते तो जीवन में क्या कर रहे होते?
मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे। मेरे पास दो विकल्प थे। पहला बिजनेस और दूसरा सर्विस। हालांकि, इच्छा उद्योग लगाने की ही थी। वर्ष 1986 में उद्योग लगाने से पहले मैं दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था। तब एक बार सोचा कि सिविल सर्विसेज का एग्जाम देकर आईएएस बनूं। मगर, बाद में फैक्ट्री लगाने की योजना बन गई। इसके बाद हम उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ गए।
• मेरा यूपी बदल गया, कोई रोक नहीं सकता विकास : योगेश अग्रवाल, एमडी, रिमझिम इस्पात
(निवेश 2000 करोड़, रोलिंग प्लांट, स्टेनलेस स्टील सीड्स)
योगेश अग्रवाल बताते हैं कि स्टेनलेस स्टील सीड्स का रोलिंग प्लांट हैं। सीड्स से रोलिंग बार, पाइप सहित सारा निर्माण होगा। साथ में 200 मेगावाट का सोलर प्लांट भी लगेगा। सरकार 2018 में औद्योगिकीकरण को लेकर गंभीर थी। इस बार ये सफर और आगे निकल गया है। योगी जी ने 32 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की है जो भारत में किसी प्रदेश में सबसे ज्यादा है। अब जरूरत है कि निवेश को धरातल पर उतारने के लिए अफसरों को कमर कस लेनी चाहिए। ईज आफ डुइंग पर अच्छा काम हो रहा है जिसमें लगातार सुधार की जरूरत है। वैसे भी नीयत से ही नियति तय होती है।
प्रोफाइल : योगेश अग्रवाल
पेशा : उद्योगपति
फर्मः रिमझिम इस्पात लिमिटेड
शिक्षा : मैकेनिकल इंजीनियरिंग
जन्मः मेरठ
पत्नी : हिमा अग्रवाल
पुत्र : रोहित अग्रवाल, जयेश अग्रवाल
पुत्री : गरिमा अग्रवाल
अस्वीकरण : इस लेख में किए गए दावों की सत्यता की पूरी जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति/ संस्थान की है ।
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