युद्ध और संयुक्त राष्ट्र
युद्ध शुरू हो चुका है। अब बस यह देखना बाकी है कि यूक्रेन पर रूस का हमला कब और कैसे खत्म होगा? किसी भी युद्ध में आक्रांताओं की गिनती से परे, आक्रोश और प्रतिशोध के दानवों को जब एक बार लड़ने के लिए छोड़...
युद्ध शुरू हो चुका है। अब बस यह देखना बाकी है कि यूक्रेन पर रूस का हमला कब और कैसे खत्म होगा? किसी भी युद्ध में आक्रांताओं की गिनती से परे, आक्रोश और प्रतिशोध के दानवों को जब एक बार लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, तो फिर वे बहुत आसानी से दोबारा काबू में नहीं आते। दुनिया विनाश के पलों को देखती रह जाती है, और फिर निरंतर चुभने वाला एक एहसास उभरता है कि कमजोरियों का ही प्रतिफल होता है युद्ध। इसे यूं नहीं होना चाहिए था।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्व सोवियत संघ को फिर से संगठित करने की अपनी पुरानी मंशा के तहत एक संप्रभु देश को रौंदने के लिए रूसी सेना भेजी है। पोलैंड, स्लोवाकिया और बाल्टिक देश आशंकित हैं कि क्या पुतिन उन्हें भी निगलने का इरादा रखते हैं, हालांकि उन्हें नाटो का सुरक्षा कवच हासिल है। इस विशुद्ध रक्षात्मक संगठन (नाटो) को इससे पहले कभी रूसी खतरे का सामना नहीं करना पड़ा था। हाईस्कूल में प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध को पढ़ चुके बुजुर्ग अमेरिकी हैरान हैं कि क्या वे अगले वैश्विक संघर्ष का आगाज देख रहे हैं? वैश्विक शांति की कई पहल के साथ पूरी जिंदगी बिताने वाले अमेरिकियों ने सोचा नहीं होगा कि वे ऐसे पलों के गवाह बनेंगे। राष्ट्रपति बाइडन ने उनके भय को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। बस बयान दे दिया कि ‘राष्ट्रपति पुतिन ने एक पूर्व नियोजित युद्ध चुना है, जो मानव जीवन को त्रासद नुकसान पहुंचाएगा।’ यह बहुत स्वाभाविक बयान है। उनके आर्थिक प्रतिबंधों का तो पुतिन ने अब तक उपहास ही उड़ाया है।
जहां तक संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस की बात है, तो उन्होंने भी अपनी पूरी ताकत आक्रांता राष्ट्रपति के खिलाफ ट्विटर पर ही खर्च की। अपने वजूद में आने के बाद ज्यादातर समय तो संयुक्त राष्ट्र धरती के अधिनायकों से सशस्त्र टकराव से बचने की गुहार ही लगाता रहा। कहीं-कहींं उसने अपने फैसले को लागू कराने के लिए शांति सैनिक भी भेजे, लेकिन हाल के वर्षों में इस वैश्विक संस्था की मुख्य चिंता जलवायु परिवर्तन से धरती की सुरक्षा रही है।
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