संकट को जटिल बनाना

कुछ देश इस बात की पुरजोर कोशिश करते हैं कि मध्यस्थता के जरिये युद्धरत पक्षों को बातचीत की मेज पर लाकर संघर्षों का अंत कराया जाए, ताकि शांति एवं स्थिरता कायम हो सके, लेकिन कुछ संकटों और युद्धों में...

Neelesh Singh  द पेनिन्सुला, कतर , Mon, 7 March 2022 10:34 PM
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संकट को जटिल बनाना

कुछ देश इस बात की पुरजोर कोशिश करते हैं कि मध्यस्थता के जरिये युद्धरत पक्षों को बातचीत की मेज पर लाकर संघर्षों का अंत कराया जाए, ताकि शांति एवं स्थिरता कायम हो सके, लेकिन कुछ संकटों और युद्धों में विभाजन इतना गहरा हो जाता है कि वह लड़ाई को एक अलग ही स्तर पर लेकर चला जाता है, जैसा इस वक्त रूस-यूक्रेन युद्ध में हो रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस युद्ध के मुख्य शिकार आम नागरिक और बेकसूर लोग हैं, जो अपनी जान, संपत्ति गंवा रहे हैं। दस लाख से अधिक यूक्रेनी अब तक दर-बदर हो चुके हैं या पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन गए हैं। 
वैसे, युद्ध के खास पीड़ितों में एक पीड़ित ‘सत्य’ भी होता है, और यूक्रेन में जारी जंग इसका अपवाद नहीं है। इस युद्ध में मीडिया ने अपनी साख और अपना पेशेवर चरित्र गंवा दिया है। उसके गहरे विभाजन ने कोई ‘ग्रे एरिया’ छोड़ा ही नहीं है। और इस विभाजन ने उन्हें गलत सूचना फैलाने व व्यापक दुष्प्रचार का हथियार बना दिया है। जब मीडिया घराने लोगों को सत्य से भरमाने वाले उपकरण में तब्दील हो जाते हैं, तब लोगों के लिए सच को जानना-समझना वे और मुश्किल बना देते हैं। दृश्य मीडिया जहां खौफनाक दृश्यों के साथ भयानक कहानियां बताता है, तो वहीं दूसरा पक्ष जो देखा-सुना गया है, उसे किसी अन्य समय और जगह का बताकर खारिज कर देता है। इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये ऐसे कई वीडियो फैलाए जा रहे हैं, जिनमें रूस और यूक्रेन, दोनों युद्ध के मैदान में अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इस युद्ध ने डिजिटल और पारंपरिक मीडिया के अनेक नकारात्मक पहलुओं को उजागर किया है, क्योंकि युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों के विभाजन और उनके द्वारा आंखें मूंदकर एक या दूसरे पक्ष का समर्थन करने के कारण मीडिया भी बंट गया है और वह आग में घी डालने का काम कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के संगठनों ने पड़ोसी देशों में सुरक्षित पनाहगाह की तलाश में भाग रहे अफ्रीकी, अरब और भारतीय लोगों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव के कई मामलों का खुलासा किया है।

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