महाभियोग पर चर्चा करें
प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव को आए कई हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन सांसद अब तक इस विषय पर चर्चा शुरू करने में नाकाम रहे हैं, यहां तक कि उनके खिलाफ लगे 21...
प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव को आए कई हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन सांसद अब तक इस विषय पर चर्चा शुरू करने में नाकाम रहे हैं, यहां तक कि उनके खिलाफ लगे 21 आरोपों की जांच के लिए समिति भी गठित नहीं कर सके हैं। 13 फरवरी को ही सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-माओइस्ट सेंटर और सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट के 98 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें प्रधान न्यायाधीश पर यह आरोप लगाया गया है कि वह न्यायपालिका की शुचिता को अक्षुण्ण रखने में नाकाम रहे हैं और पिछले साल जुलाई में प्रतिनिधि-सभा की बहाली के पक्ष में फैसले के बदले उन्होंने कार्यपालिका से सत्ता साझा करने की मांग की थी। संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद ही प्रधान न्यायाधीश को उनके पद से निलंबित कर दिया गया है। संसदीय सचिवालय में महाभियोग प्रस्ताव की स्वीकृति के सात दिनों के बाद इस पर बहस शुरू हो जानी चाहिए। संविधान के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव का अध्ययन करने और तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विपक्ष सहित एक से अधिक पार्टियों के संासदों की 11 सदस्यीय जांच समिति गठित की जानी चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ। विपक्षी सीपीएन (यूएमएल) के सांसदों द्वारा बाधा डाले जाने के कारण बुधवार की बैठक नहीं हो सकी।
सीपीएन (यूएमएल) प्रतिनिधि-सभा के अध्यक्ष अग्नि सपकोटा पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए सदन की कार्यवाही में बाधा डालती रही है कि वह माधव कुमार नेपाल सहित 14 यूएमएल सांसदों के निष्कासन की पुष्टि नहीं कर रहे। दरअसल, ये सांसद अब एक नई पार्टी सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट के सदस्य हैं। इसलिए सीपीएन (यूएमएल) चाहती है कि सदन के बैठने से पहले स्पीकर इस्तीफा दें। बहरहाल, संसद राणा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को हफ्तों तक आगे नहीं बढ़ा पाई, यह उनके साथ घोर अन्याय है। या तो संसद को उन पर महाभियोग चलाना चाहिए या फिर उन्हें आरोपों से मुक्त करना चाहिए।
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