Hindi Newsओपिनियन तिरछी नज़रHindustan Tirchchi Nazar Column What should I call these authors 26 May 2024

इन लेखकों को किस नाम से पुकारूं

सोशल मीडिया पर दिन-रात कुछ न कुछ लिखने वाले आज के लेखकों को मैं किस नाम से पुकारूं? उनको क्या नाम दूं कि सबका नाम बन जाए? आप भी मानेंगे कि यह मेरी ही नहीं, बल्कि आज की आलोचना मात्र की समस्या है और ...

Monika Minal सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार, Sat, 25 May 2024 10:06 PM
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इन लेखकों को किस नाम से पुकारूं

सोशल मीडिया पर दिन-रात कुछ न कुछ लिखने वाले आज के लेखकों को मैं किस नाम से पुकारूं? उनको क्या नाम दूं कि सबका नाम बन जाए? आप भी मानेंगे कि यह मेरी ही नहीं, बल्कि आज की आलोचना मात्र की समस्या है और इस तरह आलोचक मात्र की समस्या है।
देर-सबेर सोशल मीडिया के ये लेखक पूछेंगे ही- हे आलोचको, समीक्षको, समालोचको या तुम जो भी हो, यह तो बताओ कि हम आपके हैं कौन? आप हमारे हैं कौन? हम लेखक हैं कि नहीं? हम जो इतना ढेर लिखे हैं, वह आपकी नजर में क्या है? हमारी भूमिका क्या है? हमारा इतिहास क्या है? हमारे इस इतिहास को कौन लिखेगा? हमारा आलोचक कौन है? 
यह ‘मास लेखन’, यानी जन-लेखन का चैलेंज है, जो बहुत दिनों बाद आलोचना को मिला है। यह थोक लेखन का चैलेंज है और यही आलोचना की असली परीक्षा है। अपने दो-चार दोस्तों को आपने लेखक बना दिए तो क्या, इस नए लेखक को समझो, इसका मूल्यांकन करो, तब जानूं? 
सच! यह हिंदी की दंभी आलोचना के अवसान की घड़ी है। गनीमत है, अभी सोशल मीडिया के लेखकों ने आलोचकों से कुछ नहीं कहा है या हो सकता है कि वे आलोचक की जरूरत ही न समझते हों। बहरहाल, मैं तो मानता हूं कि आज का सोशल मीडिया लेखन एकदम बिंदास लेखन है। वह एकदम निडर-निर्भय और अपने आप में मगन मस्त लेखन है, जिसका न कोई संपादक है, न सेंसर। न इसका कोई गॉडफादर है, न कोई ‘कास्टिंग काउच’; न कोई दलाल है, न कोई एजेंट। इसका कोई गुरु नहीं, बल्कि ये स्वयं गुरुओं के गुरु और पूरे गुरु घंटाल हैं। 
यह परम स्वतंत्र न सिर पर कोई  वाली पीढ़ी है। यह लेखन का पहला उन्मुक्त जनतंत्र है, जिसे सस्ती तकनीक ने सबको दिया है। ये किसी धर्मयुग, सारिका, ज्ञानोदय या तारसप्तक के गिने-चुने लेखक नहीं, बल्कि ये अनंत हैं और अपने होने के अहंकार में किसी से कम भी नहीं। ये आज इतनी संख्या में हैं कि आप इनकी गिनती तक नहीं कर सकते!
एक बार फिर लेखन आगे है और आलोचना पीछे है। शायद इसीलिए, जो ‘साइबर स्पेस’ में चौबीस बाई सात के हिसाब से प्रकाशित-प्रसारित हो रहा है, जिसको ‘लाइक, व्यू, फॉलो और फॉरवर्ड’ करने वाले भी असंख्य हैं, उसके लिए हमारी आलोचना एकदम गैर-तैयार है। यह उसको एकदम अयोग्य व अक्षम दिखती है।
यूं हिंदी में आलोचकों की कमी नहीं। यहां एक से एक ‘कॉपी कैट’ हैं। कई रामविलास शर्मा की खराब कॉपी हैं, तो कई नामवर सिंह की और कई तो ऐसी कॉपी की कॉपी की कॉपी हैं। इनकी आलोचना भी  हमपियाला हमनिवाला वाली है। इनमें से कई की सीमित आलोचना-बुद्धि एक ठर्रे में फर्रे लिखती है और एक शेंपेन की बोतल में कैंपेन चलाती है। 
फिर भी, यह सवाल तो रह ही जाता है कि जिस समाज में फेसबुक पर लाखों रोज लिखते हों, जिनको उनके जुटाए ‘फ्रेंड्स क्लब’ सराहते और कराहते हों, जिनके यू-ट्यूब के वीडियो को अनंत लोग देखते हों, फॉलो करते हों, आगे बढ़ाते हों, जिनको दुश्मन ट्रोल करते हों, जो हर वक्त किसी न किसी वाट्सएप या इंस्टाग्राम ग्रुप में सक्रिय हों, जो बात-बात पर कमेंट करते हों, कविता-कहानी डालते हों, उनको क्या नाम दंू? 
इनको सोशल मीडिया लेखक कहूं या साइबर लेखक कहूं? ऑनलाइन लेखक कहूं या डिजिटल लेखक कहूं और इनकी फ्रेंड्स लिस्ट को इनका पाठक और इनके ‘व्यूअर्स’ या ‘फॉलोअर्स’ को इनकी नई आलोचनात्मक पदावली मानूं? यूं कोई इस पीढ़ी को ‘जेनरेशन नोव्हेअर’ कहता है, तो कोई इसे ‘अनएजूकेटेड पीढ़ी’ कहता है, तो कोई इसे ‘इलिटरेट लेखक पीढ़ी’ कहता है, लेकिन मेरी नजर में ये सभी पोस्ट लेखक हैं, ये ‘उत्तर लेखक हैं। उत्तर कवि, कथाकार और आलोचक हैं।’      

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