चौबीस बाई सात का सुनामी साहित्य
- एक ने बताया कि इस बरस आपकी महती कृपा से उसे चार सम्मान मिले हैं, बीस शहरों की उसने साहित्यिक यात्रा की है, दस जगहों पर रचना-पाठ किया है, सात जगह उसने बडे़-बड़ों के साथ मंच ‘साझा’ किया है और पांच जगह इंटरव्यू दिए हैं…
सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार
एक ने बताया कि इस बरस आपकी महती कृपा से उसे चार सम्मान मिले हैं, बीस शहरों की उसने साहित्यिक यात्रा की है, दस जगहों पर रचना-पाठ किया है, सात जगह उसने बडे़-बड़ों के साथ मंच ‘साझा’ किया है और पांच जगह इंटरव्यू दिए हैं, जो इस लिंक पर उपलब्ध हैं। लिंक भेज रहा हूं। कृपा करके एक नजर देख लें। आपका आशीर्वाद बना रहे, यही कामना है।
कई तो ऐसे हो गए हैं, जो अपनी जेब से पैसे खर्च करके यात्रा करते हैं और हर तरह के साहित्य-समारोह में अपना सम्मान कराते हैं, फिर फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, वाट्सएप ग्रुप आदि में फोटो, वीडियो या रील आदि के जरिये अपनी खबर भी देते हैं कि आपकी ‘महती कृपा’ से उन्हें कब, कहां, किसने साहित्य में उनके ‘विनम्र योगदान’ के लिए सम्मानित किया। यह देखकर आप भी चमत्कृत होते हैं कि आपकी महती कृपा किस-किस के साथ क्या-क्या गुल खिला रही है, जिसकी आपको खबर ही नहीं है!
इसी तरह, एक दिन नव्य नवोदित लेखक बता रहा था कि आप सबके आशीर्वाद से मेरी कविताएं इस-इस पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित हुई हैं, आपको भेज रहा हूं। आप एक नजर देख लेंगे, तो इसको मैं अपना परम सौभाग्य समझूंगा। एक बार फिर आपको ही खबर नहीं होती कि आपका आशीर्वाद कब-कब किस-किस को लेखक बनाए जा रहा है!
एक बता रहा है, ‘आदरणीय! इन-इन पत्र-पत्रिकाओं में और वेबसाइटों पर मेरी सात कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं, लगभग इतनी ही और छपने वाली हैं, वाट्सएप पर भेज रहा हूं, उन-उन ने सराहा है, आप पढ़ेंगे और सराहेंगे, तो अच्छा लगेगा।’ इस ‘कहन’ की अदा तो देखिए, यह प्रार्थना भी है और धमकी भी। अगर सराहना की, तो दूसरे नहीं जीने देंगे और नहीं की, तो यह प्रार्थी नहीं जीने देगा।
सच! अपने जैसे समीक्षकों का धंधा इन दिनों बड़ा ही ‘रिस्की’ है। इधर कुआं है, तो उधर खाई है। कोई-कोई तो साधिकार फोन करता है, मैं... बोल रहा हूं, क्या आपसे बात हो सकती है? मैं कहता हूं, कर लो, तो कहता है, आपने उस लेख में उन-उन का जिक्र तो किया, पर मेरा नहीं किया। आप भी भाई-भतीजावाद के शिकार लगते हैं। मैं कहता हूं, मैंने तो किसी का नाम नहीं लिया? जवाब आता है कि आपने उन-उन के बारे में इशारे तो किए हैं, मेरे बारे में भी कर देते, तो क्या बिगड़ जाता? यह साहित्य की नई धंसमार है।
एक लेखक जी फरमाने लगे कि आपके सहयोग से एक ऐसा ऑनलाइन ग्रुप बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें आप जैसे वरिष्ठ साहित्यकार रहेंगे। वक्त-वक्त पर हम बेहद जनतांत्रिक तरीके से समकालीन साहित्य के क्षेत्र में रचनात्मक हस्तक्षेप करेंगे और हरेक महत्वपूर्ण रचना व कृति की चर्चा करेंगे-कराएंगे, ताकि हिंदी साहित्य को सही दिशा में मोड़ा जा सके। आप अपने अन्य साथियों के नाम भी सुझाएं।
सच! सोशल मीडिया ने साहित्य को सर्वसुलभ कर दिया है, उसका जनतंत्रीकरण कर दिया है, अब हर कोई कवि, कथाकार और विचारक हो सकता है और विनम्रता के साथ इस-उस को धमका भी सकता है कि या तो मुझे पढ़ या मुझसे लड़। मेरी उपेक्षा की, तो फिर देखना! सोशल मीडिया में साहित्य चौबीस बाई सात की ऐसी सुनामी है कि कोई सुपर कंप्यूटर या सुपर एप या कृत्रिम बुद्धि (एआई) या चैटजीपीटी ही उसे समेट सकती है, किसी ग्रियर्सन या शुक्ल से यह संभव नहीं। यह ऐसा निराला जनतंत्र है, जहां हरेक लेखक एक अदाकार, ‘परफार्मर’ है; हर रचना अब एक अदाकारी, ‘परफॉरमेंस’ है और अधिकांश सोशल मीडिया पर है।
साहित्य अब सिर्फ एक निवेश है, ताकत की निर्मिति है, जो सेंत में नहीं, संसाधनों के निवेश से बनती है। आप जितने संसाधनों के स्वामी हैं, उतने ही बडे़ साहित्यकार हैं। इन दिनों साहित्य न साधना है, न संघर्ष है और न आत्म-संघर्ष। साहित्य अब सिर्फ मिडिल क्लास की मलाई है।
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