कोरोना डायरी-16 : इंसान और जानवर का फ़र्क़
9 अप्रैल 2020, रात 8 बजे । महामारी ने लोगों की मति मारनी शुरू कर दी है। सामाजिक रिश्ते तो अपनी जगह हैं, तमाम जगहों पर पारिवारिक और मानवीय संबंध भी उथले साबित हो रहे हैं। यह दौर अगर लंबा...
9 अप्रैल 2020, रात 8 बजे ।
महामारी ने लोगों की मति मारनी शुरू कर दी है। सामाजिक रिश्ते तो अपनी जगह हैं, तमाम जगहों पर पारिवारिक और मानवीय संबंध भी उथले साबित हो रहे हैं। यह दौर अगर लंबा खिंचा, तो यथार्थ की कटु कालिख तमाम उजले रिश्तों के चेहरे मलिन कर देगी। जमशेदपुर का एक किस्सा बताता हूं। एक व्यक्ति की मौत हो गई। डाक्टरों के अलावा नातेदारों को भी शक था कि कोरोना ने उसे काल -कवलित कर दिया। कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद मेडिकल टीम ने मृतक की पत्नी से कहा कि आप अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जा सकती हैं। कोरोना से कंपकंपाती उस महिला ने मना कर दिया। शव पड़ा रहा। मजबूरन जिला प्रशासन को दाह संस्कार की व्यवस्था करनी पड़ी।
बात यहीं तक रहती तो कोई बात नहीं पर आज तो जैसे उस परिवार पर आसमान फट पड़ा। सूचना मिली कि मरने वाले की जांच रिपोर्ट आ गई है, उसे कोरोना नहीं था। मौत की कोई अन्य वजह रही होगी। अब वह महिला किस संताप में जीती है, लोग उसे कैसे देखते हैं, इस पर चर्चा उचित नहीं होगी। संकट के इस समय में किसी को, किसी और के बारे में सोचने की फुर्सत कहां है? हम सब जिस तरह अपनों से अजनबी होते जा रहे हैं, वह त्रासदी डराती है। मैंने महामारियों के किस्से पढ़े हैं कि कैसे परिवारी जन तक लोगों को निस्सहाय छोड़ दिया करते थे !भारतीय परंपरा में ऐसा करना वर्जित है पर महामारी अपनी परंपराएं खुद गढ़ती है।
इस दौरान नई रवायतें गढ़ने के कुछ और किस्से सामने आ रहे हैं। लॉक्डाउन के कारण घरेलू सहायकों का आना या तो बंद हो गया है, अथवा सोसायटी/मोहल्ले वालों ने बंद कर दिया है। ऐसे में अधिकांश जगहों पर घर का काम-काज नई मुसीबत बन गया है। मझोले शहरों या महानगरों में कामकाजी दंपत्तियों में तमाम ऐसे हैं , जिन्होने ने जीवन में कोई घरेलू काम नहीं किया। अब झगड़े हो रहे हैं। पुलिस को फोन आ रहे हैं। कोई कच्ची रोटी पाने से खफा था, किसी को बर्तन मांजना नहीं आ रहा, तो कोई किसी और बात से नाराज है। पुलिस की एक महिला अधिकारी ने बताया कि काम-काज के सिलसिले में जब लोग बाहर जाते हैं, तो उन्हें ह्यआउटलेटह्ण मिलता है। वह आउटलेट बंद हो गया है। ऐसे में प्रेम, परिवार और दायित्व की समानांतर रेखाएं एक-दूसरे में गुंथ गई हैं। यह स्थिति तनाव बढ़ा रही है, कलह जन रही है।पहले से ही तमाम तरह के बंदोबस्त में जुटी पुलिस के लिए यह अनोखा संकट है।
सिर्फ इंसान इस आफ़त की चपेट में आए हों, ऐसा नहीं है। पशुओं के व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। कुछ दिन पहले हरिद्वार में पास के जंगल से हाथी घुस आए। सड़कों पर लगे वीडियो कैमरों ने उन्हें कैद किया कि किस तरह वे नगर पालिका की सड़कों पर विचर रहे थे और हर की पैड़ी का आनंद उठा रहे थे। पीलीभीत में आरक्षित वन के पास के कस्बों में वर्षों से हिरन नहीं आए थे, अब वे भी आमद दर्ज कराने लगे हैं। सड़कों पर कर्कश ध्वनि करने वाले वाहन नदारद हैं। इसलिए पशु-पक्षी अपनी प्रकृति को प्राप्त हो रहे हैं। जहां ,इंसानी व्यवहार की कलई खुलती जा रही है, जबकि पशु-पक्षी अपनी नैसर्गिक उन्मुक्तता को प्राप्त हो रहे हैं। हालांकि , कोरोना उनके लिए भी संकट का सबब है। जिम कार्बेट में इंतजाम किये गए हैं कि कहीं किसी बाघ ने एक बार भी खांसा तो उसे कैसे क्वारंटीन किया जाएगा। कोरोना के झपट्टे ने आदमी और जानवर को समान सफे पर ला दिया है। किसी ने सच ही कहा है कि इंसान भी अपनी तरह का जानवर होता है, इसलिए उसे जानवरों से अलग मानना ठीक नहीं। ज्यों-ज्यों 14 अप्रैल पास आती जा रही है, लोगों की उत्कंठा बढ़ती जा रही है। क्या लॉकडाउन बढ़ेगा? क्या उसे कुछ खास क्षेत्रों से हटाया जाएगा? देश के चार सौ जिलों में अभी तक इस बला ने आमद नहीं दर्ज कराई है। वहां क्या काम-काज हस्ब-ए-मामूल हो सकेगा? क्या कुछ परिवर्तनों के साथ हवाई, रेल और सड़क यातायात चालू हो सकेगा?
ये सवाल अपनी जगह हैं पर एक बात तय है कि महामारी अभी अपना क्रूर पंजा कसती जा रही है। नये हॉट-स्पॉट बढ़ रहे हैं, बीमारों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में सावधानी जारी रखने से परहेज कैसा?
आज के आंकड़ों पर गौर फरमाइए-
कुल मामले- 5865, डिस्चार्ज केस-477, कुल मौतें-169, माइग्रेटेड-1, उपचाराधीन - 5218, नए मामले -591, नई मौतें-20
सर्वाधिक संक्रमण वाले तीन राज्य- महाराष्ट्र-1135, तमिलनाडु-738, दिल्ली-669.
प्रमुख राज्यों की स्थिति- उत्तर प्रदेश-410, उत्तराखंड -35, हरियाणा-169, बिहार-39, झारखंड -13.
क्रमश:
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